scriptज़ोधपुर में प्रथम चेटीचंड मेले के लिए मीरपुर खास से लाई गई थी ज्योत | Jyot was brought from Mirpur Khas for the first Chetichand fair in Zod | Patrika News

ज़ोधपुर में प्रथम चेटीचंड मेले के लिए मीरपुर खास से लाई गई थी ज्योत

locationजोधपुरPublished: Apr 15, 2021 12:05:09 am

Submitted by:

Nandkishor Sharma

 
दीवानों की हवेली में होता था चेटीचंड महोत्सव

ज़ोधपुर में प्रथम चेटीचंड मेले के लिए मीरपुर खास से लाई गई थी ज्योत

ज़ोधपुर में प्रथम चेटीचंड मेले के लिए मीरपुर खास से लाई गई थी ज्योत


जोधपुर. देश के विभाजन की त्रासदी के बाद जोधपुर में प्रथम चेटीचंड महोत्सव एवं पूज्य बहराणा साहिब घंटाघर साइकिल मार्केट में एक घर के बाहर छोटा सा टेंट लगाकर मनाया गया। उसके बाद दीवानों की हवेली में एक छोटी सी कोटरी के बाहर मनाया जाने लगा था। जोधपुर में पहले चेटीचंड मेले के लिए बाबा गुल्लुमल मीरपुर खास से ज्योत बहराणा साहिब लेकर आए थे। पूरा सिंधी समाज यहां एकत्र होता था और बहराणा साहिब की ज्योत को विधिवत गुलाब सागर में विसर्जित किया जाता था। बाबा चंदीराम के सान्निध्य में श्रद्धालुओं की निरंतर संख्या बढऩे के बाद समाज के लोगों के सहयोग से सोजतीगेट स्थित मंदिर में 1975 से चेटीचंड महोत्सव मनाए जाने लगा। बाबा नारूमल मंडली ने सोजतीगेट झूलेलाल मंदिर में मेले की शुरुआत की थी। बाबा चंदीराम के बाद उनके सुपुत्र बाबा नारूमल और उसके बाद बाबा जयरामदास ने मंदिर की व्यवस्था संभाली थी।

समाज के लोगों से चवन्नी-अठन्नी का चंदा कर मनाते थे चेटीचंड
वर्ष 1947 में जब सिंध छोड़कर जोधपुर आए तब हमारे पास न व्यापार था ना कोई आशियाना था। चेटीचंड उत्सव मनाने के लिए कोई स्थान तक उपलब्ध नहीं था। मीरपुर खास से आए बाबाजी गुल्लुमल ने अपने घर के बाहर टेंट लगाकर 1948 में अखंड ज्योत स्थापित कर चेटीचंड मेले की शुरुआत की थी। घंटाघर दीवानों की हवेली में हमारे समाज के लोग व्यापार करते थे। वहां हमें तीन गुणा चार फीट की छोटी सी जगह मिलने पर लोगों को असीम खुशी हुई थी। तब सिंधी समाज के लोगों से चंदा एकत्र करते समय 5 व 10 पैसे, चार आने व अठन्नी मिला करते थे। उसी पैसों से ही चेटीचंड मनाया जाता था। वह बहुत कठिन समय था। कोरोनाकाल ने एक बार फिर से उन दिनों की याद ताजा कर दी लेकिन आर्थिक स्थिति तब से कहीं बेहतर है।
बाबा जयरामदास, प्रमुख वरिष्ठ सेवादार, प्राचीन झूलेलाल मंदिर सोजतीगेट

गुलाब सागर में बहराणा साहिब की ज्योत विसर्जन अभी भी याद है..
देश के बंटवारे के समय जब हम गुजरात से होते हुए शरणार्थी के रूप में जोधपुर आए तब मैं 12 साल की थी। चेटीचंड उत्सव जब दीवानों की हवेली में होता था तब मुझे याद है मैं 12 साल की थी। तब हम नवचौकियां में किराए के मकान में रहने लगे थे। चेटीचंड उत्सव में हाथ प्रसादी खाने का अपना आनंद था। गुलाब सागर में बहराणा साहिब की ज्योत विसर्जन मुझे अभी तक याद है। तब न तो कोई संसाधन थे ना ही पैसा था फिर भी मन में उल्लास था आज जब सब कुछ है तो कोरोना महामारी ने उस उल्लास को छीन लिया।
कलावंती भिमानी, 86 वर्ष प्रतापनगर निवासी

ट्रेंडिंग वीडियो