‘मैं शुरूआती दौर में विजयनगर (विजयपाटन) नाम से प्रसिद्ध था, इसके बाद मैं पूरी तरह नष्ट हो गया। फिर विक्रम संवत् 1515 मैं सिद्धूजी कल्ला के यहां आगमन से फिर जीवंत हो उठा और मेरा नाम फलवृद्धिका हो गया। फलवृद्धिका से मेरा नाम फलोधी रख दिया गया। इसके बाद मैं फलोदी नाम से प्रसिद्ध हो गया और आधुनिकता के दौर में धार्मिक सौहाद्र्र व शांति का संदेश लेकर विकास की राह पर चल रहा हूं।’
अद्भुत शक्ति है मेरी जमीन में
मेरी जमीन ने शायद इतने बड़े ख्वाब ही नहीं देखे थे, जो आज मेरी जमीन पर हकीकत बनकर सज गए हैं और मेरी पहचान को विरासत में पिरोते हुए नई ख्याति दिला रहे हैं। मेरी जमीन आज हजारों की संख्या में खुदे नलकूपों के पानी से लहलहाती फसलों से समृद्धि की ओर अग्रसर हैं। मेरी जमीन सूर्य की तपिश को बिजली बनाकर लाखों घरों को रोशन कर रही हैं। आश्चर्य की बात है कि मैंने तो बचपन में आवागमन के लिए बैल गाड़ी देखी थी, मेरे संस्थापक कल्लाजी भी बैल गाड़ी लेकर यहां आए थे। लेकिन आज मेरे आसमान में सेना के हवाई जहाज उड़ते हैं, और जमीन पर रेलें व बसें फर्राटे भर रही है। इसलिए मैं कहता हूं कि मेरी आस्था स्थली लटियाल माता की असीम कृपा से इस जमीन में अद्भुत शक्ति हैं और यह शहर व यहां के लोग विकास के नित नए आयाम स्थापित कर रहे हैं और अब मैं कस्बे से विकसित हो कर जिले का हकदार बन गया हूं।
अभेद्य है किला
फलोदी में सन् 1545 में राव सूजा के पोते राव हमीर द्वारा पोकरण से यहां आकर ऐतिहासिक किले का निर्माण करवाया गया था। फलोदी का ऐतिहासिक किला सुरक्षा के लिहाज से अभेद्य होने के कारण इतिहास के पन्नों में आज भी अपनी महता कायम किए हुए है।
कई शासकों ने किया शासन
फलोदी परगने पर जोधपुर, बीकानेर, अजमेर, जैसलमेर के शासकों ने शासन किया तथा अंत में जोधपुर राज्य का महत्वपूर्ण हिस्सा बनकर महाराजा अजीतसिंह के अधिकार में रहा। जोधपुर राज्य के अधीन रहते हुए फलोदी का काफी विकास हुआ।
हुमायूं भी आया था फलोदी
मुगल बादशाह हुमायूं जब विक्रम संवत् 1599 में अपने शत्रुओं के डर से छिपता घूम रहा था, उस दौरान हुमायूं कुछ माह जोधपुर के मण्डोर में रहा फिर फलोदी आया था। इसके बाद वह जैसलमेर के अमरकोट पंहुचा।
फलोदी से जुड़ी है कई कहानियां
फलोदी के शासक राव हमीर के बाद उसका पुत्र रामसिंह यहां का शासक बना और संवत 1600 में जोधपुर के शासक राव मालदेव व शेरशाह के बीच युद्ध में रामसिंह द्वारा सहयोग नहीं करने से नाराज होकर मालदेव ने रामसिंह को जहर खिलाकर मौत के घाट उतार दिया। इसके बाद डूंगरसिंह फलोदी का शासक बना लेकिन मालदेव की फलोदी को फतह करने की तीव्र इच्छा के चलते मालदेव ने डूंगरसिंह को होली खेलने के बहाने जोधपुर बुलाकर कैद कर लिया और फलोदी को उसके हवाले करने की बात कही। इस दौरान धोखे से मालदेव ने अपनी सेना को फलोदी भेजकर किले पर आक्रमण कर दिया और उसके बाद मालदेव ने फलोदी पर 15 साल तक शासन किया। इसके पश्चात संवत 1703 में फलोदी परगना जोधपुर राज्य में शामिल कर लिया गया। संवत 1715 में विख्यात मुहणोत नैणसी फलोदी के हाकिम बने।