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केवल जोधपुर में ही एक पखवाड़े तक धीगा गवर पूजन…..जानिए क्या है धींगा गवर पूजन का इतिहास

विधवा महिलाओं को भी गवर पूजने का अधिकार

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केवल जोधपुर में ही एक पखवाड़े तक धीगा गवर  पूजन.....जानिए क्या है धींगा गवर पूजन का इतिहास

केवल जोधपुर में ही एक पखवाड़े तक धीगा गवर पूजन.....जानिए क्या है धींगा गवर पूजन का इतिहास

जोधपुर. सुयोग्य वर की कामना और अखंड सुहाग के लिए गणगौर का परम्परागत पूजन तो पूरे प्रदेश में होली के दूसरे दिन से चैत्रशुक्ल तृतीया तक होता है , लेकिन इसके तुरंत बाद केवल जोधपुर में ही एक पखवाड़े तक धीगा गवर पूंजी जाती है ।

इतिहास के पन्नों में धींगा गवर

जोधपुर मेवाड़ के इतिहास पर सन् 1884 तक के महाराणाओं के विस्तृत वृत्तांत व आनुषांगिक सामग्री पर आधारित ' वीर विनोद ' ग्रंथ में महाराणा सज्जनसिंह के आश्रित राजकवि कविराज श्यामलदास ने मेवाड में धींगा गणगौर मनाए जाने का उल्लेख किया गया है । उदयपुर के महाराणा राजसिंह अव्वल ने नाराज अपनी छोटी महारानी को प्रसन्न करने के लिए पारम्परिक रीति के खिलाफ जाकर धींगा गवर को लोकपर्व के रूप में प्रचलित किया था , इसीलिए इसका नाम धींगा गणगौर प्रसिद्ध हुआ । छोटी महारानी का संबंध जोधपुर से ही बताया जाता है। ग्रंथ में कहा गया है कि धींगाई का अर्थ जबरदस्ती है ।

विधवा महिलाओं को भी गवर पूजने का अधिकार

संस्कृत के धिंग ( हठपूर्वक ) से ही धींगा शब्द बना है । जोधपुर में एक मत यह भी है कि धींगा गवर भीलणी के रूप में मां पार्वती का स्वरूप है । गवर पूजन में शिव - पार्वती के हंसी - ठिठोली की प्रसंग कथा भी है । कहा जाता है भगवान शिव रूप बदल कर पार्वती से हंसी ठिठोली के प्रत्युत्तर में मां पार्वती ने भी वन कन्या का रूप धर कर शिव से हंसी ठिठोली की थी । सूर्यनगरी में करीब छह दशकों से महिला सशक्तिकरण के उद्देश्य से मनाए जाने वाले अनूठे धींगा गवर लोकपर्व का सबसे सुखद पक्ष यह है कि इसमें विधवा महिलाओं को भी गवर पूजने का अधिकार दिया गया है ।

लालटेन की रोशनी में विराजित होती थी गवर

पांच छह दशक पूर्व तक चुनिंदा स्थलों पर गवर माता को लालटेन की रोशनी में विराजित किया जाता था। इनमें हटडि़यों का चौक में भी लालटेन की रोशनी में ही गवर दर्शन होते थे। धींगा गवर विदाई की रात सड़क पर पुरुष दिखाई नहीं देते थे । पर्व सादगी से मनाया जाता था । कोई स्वांग नहीं रचता था । महिलाएं पूजा करने के बाद गवर माता के दर्शन कर घरों को लौट जाती थी । स्वांग रचने की परम्परा एक दो दशकों में बढ़ी है। सुनारों की घाटी में चबूतरे पर गवर विराजित की जाती थी।


धींगा गवर फेक्ट फाइल

2 साल अंतराल बाद आयोजित हो रहा धींगा गवर मेला

17 से अधिक जगहों पर विराजित होगी गवर प्रतिमा

1 क्विंटल से अधिक स्वर्ण आभूषणों से लकदक होती है प्रतिमाएं15 किलो स्वर्ण आभूषण से सजती है सुनारों की घाटी की गवर प्रतिमा

6 दशक पुराना है जोधपुर का धींगा गवर मेला

4 बजे भोर में होती है गवर की भोळावणी

12 बजे बाद रात को मेला चढ़ता है परवान पर

1 लाख से अधिक महिलाएं व दर्शक होते है शामिल

25 से अधिक जगहों पर होंगे सांस्कृतिक कार्यक्रम व स्वागत

101 किलो मोई की प्रसादी वितरित होगी सिटी पुलिस चाचा की गली में