
छात्र राजनीति की सीढ़ी चढ़कर ही युवा नेता विधानसभा (Rajasthan Assembly Elections 2023) तक पहुंचने का सपना देखते हैं। इसके बीच नगर निगम पार्षद का पद बेहद अहम पड़ाव माना जाता है। इस पड़ाव पर पहुंचने के बाद राजनीतिक परिपक्वता आने साथ ही आगे का सफर कुछ आसान हो जाता है, लेकिन ये आंकड़े जोधपुर की राजनीति में काफी हद तक फिट होते नहीं दिख रहे हैं।
दरअसल शहर की राजनीति को समझने और उसके गुणा-भाग को जानने के लिए प्रथम पायदान पार्षद ही रहता है। उसके बाद नेताजी प्रदेश की राजनीति में आगे बढ़ते हैं। बात करें जोधपुर की तो करीब 5-6 ही ऐसे नेता हैं जो निगम की पाठशाला में तपकर विधायक बने। नगर निगम के पिछले तीन कार्यकाल में 290 पार्षद रहे। इनमें एक भी पार्षद ऐसा नहीं रहा जो विधानसभा तक पहुंचा। नगर निगम में वर्ष 2009 से 2014 तक कांग्रेस से महापौर रहे रामेश्वर दाधीच और 2014 से 2019 तक भाजपा के महापौर रहे घनश्याम ओझा इस बार चुनाव में सूरसागर विधानसभा से दावेदार थे। हालांकि भाजपा की ओर से प्रत्याशी घोषित होने के बाद ओझा सिर्फ दावेदार ही रह गए, जबकि दाधीच को अभी भी कांग्रेस की अगली सूची का इंतजार है।
दो चुनाव से है दो पार्षदों की दावेदारी
इधर, पार्षदों की बात करें तो दो विधानसभा चुनावों में भाजपा और कांग्रेस के लिए दो पार्षद निरंतर अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं। पार्षद सुरेश जोशी भाजपा से तथा सुनील व्यास कांग्रेस से सूरसागर विधानसभा से दावेदारी कर चुके हैं। जोशी के दो बार दावेदारी करने के बाद भी अभी तक सफलता नहीं मिली। जबकि व्यास को इंतजार है कांग्रेस की अगली सूची का।
पहले मंत्री और विधायक रहे, फिर बने पार्षद
शहर ही नहीं बल्कि प्रदेश की राजनीति समझने वाले भाजपा से वर्तमान में राज्यसभा सांसद राजेंद्र गहलोत, राजसिको के पूर्व अध्यक्ष मेघराज लोहिया 2014 में महापौर बनने का ख्वाब लेकर निगम के चुनावी दंगल में उतरे। इनके साथ ही कांग्रेस से जेडीए के पूर्व अध्यक्ष राजेंद्र सोलंकी भी दंगल में उतरे। पार्षद चुनावों में इन सभी नेताओं की जीत हुई। बोर्ड भाजपा का बना, लेकिन इन बड़े नेताओं में से एक भी महापौर तक नहीं पहुंचा। इधर, वर्ष 1994 की तो उस समय माधोसिंह कच्छावा पार्षद बनकर उपमहापौर बने, लेकिन उन्होंने वर्ष 1977 में सरदारपुरा विधानसभा से चुनाव लड़कर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को हराया था।
चार नेता पहुंचे विधानसभा
वर्ष 1971 में मानसिंह देवड़ा पार्षद रहे और वर्ष 1998 में वे सरदारपुरा से विधायक रहे। वहीं कांग्रेस के भंवर बलाई ने वर्ष 1982 में पार्षद रहे उसके बाद वर्ष 1998 में सूरसागर विधानसभा से विधायक रहे। इसके अलावा वर्तमान में शहर विधायक मनीषा पंवार वर्ष 2004 में कांग्रेस से पार्षद रही थीं। उसके बाद पंवार सक्रिय राजनीति से जुड़ी रही। इसके अलावा भाजपा की वरिष्ठ नेत्री सूर्यकांता व्यास भी विधायक निर्वाचित होने से पहले वर्ष 1970 में सहवृत पार्षद रहीं तथा 1982 में पार्षद निर्वाचित हुई उसके बाद वे तीन बार लगातार शहर विधानसभा तथा तीन बार सूरसागर विधानसभा से विधायक रही। व्यास एक बार कांग्रेस नेता जुगल काबरा से शहर विधानसभा से चुनाव हारी भी थी।
Published on:
31 Oct 2023 02:10 pm
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