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अपनी कलात्मक वैभव को खोने लगा है महामंदिर, सुधरे हाल तो बन सकता है प्रमुख पर्यटन स्थल

उचित देखरेख के अभाव में महामंदिर शिखर पर लगे कलश अब नाममात्र ही बचे हंै।

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नंदकिशोर सारस्वत/जोधपुर. अठारहवीं शताब्दी के मारवाड़ के नाथमय वातावरण की दास्तान को इतिहास के पन्नों में समेटे स्थापत्य कला का बेजोड़ स्मारक महामंदिर अपना कलात्मक वैभव खोता जा रहा है। मारवाड़ में करीब 40 साल तक राज करने वाले महाराजा मानसिंह (1803-1843 ई.) ने 40 लाख रुपए की लागत से मंदिर का निर्माण करवाया था। उस जमाने में एक पूरे शहर को समेटने वाला महामन्दिर जलन्धरनाथजी का है। इसके चौरासी खम्बे हैं तथा मन्दिर के गर्भगृह में 16 खम्बे बनाए गए। कुल 100 खम्बें मंदिर में बने हैं। मन्दिर गर्भगृह में 84 योगासनों और इतिहास प्रसिद्ध नाथ योगियों के चित्र बने हैं। दशकों से पर्यटकों की राह देख रहे महामंदिर के गर्भगृह में संगमरगर के सिंहासन पर जलंधरनाथजी की मूर्ति लगी हुई है। मन्दिर का शिखर भव्य है और छत पर कई छोटे शिखर पर कलश चढ़े हुए थे। उचित देखरेख के अभाव में महामंदिर शिखर पर लगे कलश अब नाममात्र ही बचे हंै।

महामंदिर को मिला था ठिकाने का दर्जा

मारवाड़ में नाथ सम्प्रदाय के विकास के प्रारंभिक वर्षों में जोधपुर के शासक महाराजा मानसिंह ने अपने इष्ट जलंधरनाथ के शिष्य आयस देवनाथ के लिए मंदिर का निर्माण करवाया था। मंदिर का निर्माण कार्य 9 अप्रेल 1804 को शुरू हुआ और 4 फरवरी 1805 में विशाल मंदिर बनकर तैयार हुआ। तत्कालीन महाराजा के मानसिंह के समय महामंदिर को ठिकाने का दर्जा प्राप्त था। तत्कालीन समय में जो भी राजस्व प्राप्त होता था उसमें एक चौथाई हिस्सा महामंदिर में जमा होता था। नाथ सम्प्रदाय के लिए विशेष न्याय प्राणाली थी। महामंदिर में आने वाले हर तरह के शरणार्थियों की प्राण रक्षा करना नाथों का धार्मिक कर्तव्य होता था। महामंदिर में नागपुर के शासक भी अंग्रेजों से बचकर महामंदिर में शरण ली थी। महामंदिर परिसर में इस आदेश से जुड़ा महत्वपूर्ण शिलालेख आज भी लगा है।

84 स्तम्भ पर टिकी है इमारत

कलात्मक महामन्दिर का पूरा क्षेत्र चतुर्भुज की आकृति लिए हुए है। जिसके चारों कोनों पर विशाल प्रवेश द्वार (पोल) बने हुए हैं। मुख्य प्रवेश द्वार के ऊपरी हिस्सों व कंगूरों, झरोखों में गजब की कलाकारी स्पष्ट नजर आती है। मंदिर परिसर में संगमरमर के तोरण द्वार हैं जिनके स्तंभों पर आकर्षक गरुड़ों की मूर्तियां हैं। मुख्य मन्दिर का निर्माण एक बड़े चबूतरे पर किया गया है। इस चबूतरे पर 84 स्तम्भ हैं। मन्दिर के पास नाथजी के निवास के लिए निर्मित महल की छत पर एक भव्य छजी बनी है। जहां से आयस देवनाथ नित्य सुबह अपने शिष्य जोधपुर महाराजा मानसिंह को दर्शन देते थे। महामंदिर के अगले भाग में सरकारी स्कूल चल रहा है। वर्तमान में कलात्मक इमारत नाथजी के वंशजों की निजी सम्पत्ति है।

संरक्षित हो मंदिर

वर्तमान में आयस देवनाथ की नौवीं पीढ़ी के सदस्य राजेश्वरनाथ ने पत्रिका से बातचीत में बताया कि महामंदिर को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की मंशा उनकी भी है। इस बारे में पर्यटन से जुड़े प्रमुख लोगों से बातचीत की जा रही है। इन्टैक जोधपुर चैप्टर के संयोजक डॉ. महेन्द्रसिंह तंवर ने बताया कि महामंदिर नाथ सम्प्रदाय और नाथ योग का बड़ा केंद्र रहा है। राजस्थान में ऐसा सौ स्तंभों वाला मंदिर नहीं है। इन्टैक जोधपुर का हमेशा प्रयास रहा है कि ये मंदिर संरक्षित स्मारक घोषित किया जाए।