scriptअब गरीबों के घर में भी होंगे सागवान के फर्नीचर | Now teak furniture will be in the house of the poor | Patrika News

अब गरीबों के घर में भी होंगे सागवान के फर्नीचर

locationजोधपुरPublished: Sep 21, 2021 08:31:35 pm

– देश में पहली बार 3 पीजी मॉडल का प्रयोग सागवान के वनों पर सफल, केंद्रीय विवि अजमेर ने किया अध्ययन- राजस्थान, मध्यप्रदेश और गुजरात से लिए नमूने- वर्तमान में 51 देशों से आयात करते हैं सागवान की लकड़ी

अब गरीबों के घर में भी होंगे सागवान के फर्नीचर

अब गरीबों के घर में भी होंगे सागवान के फर्नीचर

जोधपुर. केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय अगर सागवान के वनों पर 3-पीजी (फिजिकल, प्रिंसिपल व प्रीडिक्शन ग्रोथ मॉडल) मॉडल लागू करता है तो भविष्य में सागवान के मामले में देश आत्मनिर्भर हो सकेगा। इससे जंगलों में सागवान लहलहाएंगे। गरीबों के घरों का कोना-कोना भी सागवान से महकने लगेगा। सागवान के वनों पर 3-पीजी मॉडल का सफल प्रयोग केंद्रीय विश्वविद्यालय अजमेर के पर्यावरण विभाग ने किया है। यह अध्ययन फ्रांस के जर्नल अनाल्स ऑफ फॉरेस्ट साइंस में प्रकाशित हुआ है। विशेष बात यह है कि देश में पहली बाद 3-पीजी मॉडल का प्रयोग किसी पौधे पर किया गया है।
वर्तमान में देश में सागवान की कमी है। वन विभाग जितने सागवान के पौधे लगाते हैं उसमें से करीब आधे मर जाते हैं। पांच साल में यह 2 से 3 फीट तक ही वृद्धि कर पाता है और पेड़ बनने में सालों लग जाते हैं। देश में जनसंख्या वृद्धि व शहरीकरण के कारण सागवान की लकड़ी की मांग निरंतर बढ़ती जा रही है। वर्ष 1980 में जहां 11 देशों से सागवान आयात होता था वहीं अब 51 देशों से मंगाना पड़ रहा है जो अरबों रुपए में पड़ता है।
तीन राज्यों के 14 स्थानों से लिए नमूने
केंद्रीय विवि अजमेर के पर्यावरण विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ लक्ष्मीकांत शर्मा और उनके स्कोलर रजीत गुप्ता ने राजस्थान, गुजरात और मध्यप्रदेश के 14 स्थानों से सागवान के नमूने लिए और इन पर 3-पीजी मॉडल लागू किया। वाष्पोत्सर्जन, तापमान, आद्र्रता, प्रकाश संश्लेषण व वृद्धि सहित करीब 50 फिजिकल पैरोमीटर पर सागवान का अध्ययन किया गया। अध्ययन के अनुसार 3-पीजी मॉडल लागू करने पर सागवान की उत्पादकता बढ़ाई जा सकती है।
क्या है 3-पीजी मॉडल
कनाडा़ के ब्रिटिश कोलम्बिया विवि के प्रो निकालेस सी बूबस और प्रो वारेन ने 1997 में यह मॉडल विकसित किया, जिसमें करीब 50 से 60 फिजिकल पैरामीटर है। जलवायु परिवर्तन, जंगलों की आग, शहरीकरण व जनसंख्या वृद्धि का का दबाव जैसे कारकों से खत्म हो रही वन सम्पदा के लिए यह मॉडल है जिससे भविष्य को सुरक्षित बनाया जा सकता है। केंद्रीय विवि अजमेर की ओर इकोलॉजिकल मॉडल के लिए किए गए वल्र्ड रिव्यू को ब्रिटिश कोलम्बिया विवि ने अपनी वेबसाइट पर स्थान दिया है। भारत में वर्तमान में 21 प्रतिशत वन है। 3-पीजी की सहायता से 33 प्रतिशत भू-भाग पर वन क्षेत्र का लक्ष्य हासिल किया जा सकता है।
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‘हमारे देश में सागवान का प्रबंधन समुचित नहीं है इसलिए हमने 3-पीजी के प्रयोग के लिए सागवान का चुनाव किया। यह सफल रहा। भविष्य में अन्य पौधों पर यह मॉडल लागू करके वनोत्पाद बढ़ाया जा सकता है।’
-डॉ लक्ष्मीकांत शर्मा, पर्यावरण विभाग, केंद्रीय विश्वविद्यालय, बांदरसिंदरी (अजमेर)
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