पूरण के पिता रघुनाथराम गांव में लोगों के खेतों में मजदूरी करते थे। पूरण के छह भाई-बहन होने के बावजूद भी पिता सभी को पढ़ा रहे थे, लेकिन जब वह दसवीं कक्षा में आयी तो उसके पिता को कैंसर हो गया। ऐसे में कैंसर का इलाज महंगा होने से सभी भाई-बहनों को पढ़ाई छोडऩी पड़ी। लेकिन पूरण ने अपनी पढ़ाई जारी रखने की जिद्द पिता से कर डाली और पूरे परिवार के विरोध के बावजूद उसने हार नहीं मानते हुए खेतों में मजदूरी कर अपने खर्च पर पढ़ाई शुरू की। फिर जब उसने बारहवीं कक्षा में जिले में दिव्यांग की मेरिट में टॉप किया तो परिवार वालों की उम्मीद जगी। ऐसे में उसे इंदिरा प्रियदर्शनी पुरस्कार के रूप में एक लाख रुपए की आर्थिक सहायता भी मिली।
पूरण को जब पता चला कि दिव्यांगों के खेलों का आयोजन होता है और खेल प्रमाण पत्र के आधार पर सरकारी नौकरी भी प्राप्त होती है, तो उसने महज दो महीने में स्विमिंग सीखकर स्टेट लेवल पैरा एथलेटिक्स चैम्पियनशिप 2017 में 2 गोल्ड व 1 सिल्वर मैडल जीतने के साथ स्टेट लेवल पैरा स्विमिंग चैम्पियनशिप 2017 में 3 गोल्ड व 1 सिल्वर मैडल जीता। पूरण ने 17वीं नेशनल पैरा स्विमिंग चैम्पियनशिप 2017 में 2 गोल्ड और 1 सिल्वर मैडल भी प्राप्त किया। अब तक कुल 11 गोल्ड, 3 सिल्वर व दो ब्रॉन्ज मेडल अपने नाम किये हैं। पूरण ने बताया कि वह आरएएस बनना चाहती है। पिता के कैंसर का इलाज कराने के बाद उसने आरएएस की तैयारी शुरू भी की थी, लेकिन परीक्षा से कुछ समय पहले ही उसके पिता का एक्सीडेंट हो गया। जिससे उनका एक पैर फ्रैक्चर हो गया। इलाज में खर्च और पिता की देखभाल के कारण वह परीक्षा ही नहीं दे पाई। अब पिता के मजदूरी नहीं कर पाने के कारण 6 भाई-बहनों की जिम्मेदारी भी उस पर आ गई है। वह आज भी अपने जोश व जुनून से खेल व पढ़ाई के साथ-साथ अपने परिवार की जिम्मेदारी भी बखूबी निभा रही हैं।