डॉ. भाटी ने कहा कि कविता के केंद्र में मानवीय संवेदनशीलता होती है। इस संवेदनशीलता के रूप विभिन्न रूपों में दिखाई पड़ते हैं। राजस्थानी और विशेषकर डिंगल में सदैव प्रतिरोध की संस्कृति महत्वपूर्ण रही है। महाराणा प्रताप, दुर्गादास, सुरताण देवड़ा और चंद्रसेन इस प्रतिरोध की संस्कृति के वाहक रहे हैं।
आधुनिक काल में जिन कवियों ने इसका उपयोग किया है, उन पाठकों और श्रोताओं ने सिर आंखों पर बैठाया है। इसलिए हमें अपनी संस्कृति की जड़ों पर खड़ा होना होगा। प्राचार्य जैनाराम नागौरा ने कहा कि छात्र-छात्राओं राजस्थानी कवि से रू-ब-रू करवाया, जिससे छात्रों को राजस्थानी कविता के बारे मे जानकारी मिले। महाविद्यालय की ओर से डॉ. भाटी को स्मृति चिह्न दिया गया।
इस अवसर जलदाय विभाग के सहायक अभियंता प्रकाश चौहान, उपशाखा शिक्षक संघ अध्यक्ष जगदीश प्रजापत, मुकेश आचार्य, डॉ. मीनाक्षी शर्मा, डॉ. शशिबाला, सहित छात्र-छात्राएं मौजूद थे।