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जोधपुर. कुदरत जितने अभाव और तकलीफें दिव्यांगों को नहीं दे सकी, उससे ज्यादा उन्हें सरकारी तंत्र दे रहा है। विकलांग व्यावसायिक पुनर्वास केंद्र, जयपुर के निर्देश पर बाड़मेर की रहने वाली दिव्यांग महिला वाली बिश्नोई और दिव्यांग छात्रा शांति चौधरी यह सोचकर अपना परिवार छोड़ जोधपुर आई कि सरकार के कौशल विकास प्रशिक्षण कार्यक्रम से जुड़कर उनकी उम्मीदों को पंख लगेंगे। लेकिन पॉलीटेक्निक कॉलेज ने उन्हें नि:शुल्क आवास के नाम पर वीरान महिला छात्रावास में ठहरा दिया गया, जहां उन दोनों के अलावा कोई नहीं रहता।
छात्रावास में दिनभर चौकीदार के कमरे पर ताला लगा रहता है। खाने की कोई सुविधा नहीं है और पीने के पानी के लिए दिव्यांगों को टांके तक पैरों के बल घिसटते हुए जाकर पानी खींचकर लाना होता है। अब हालात को देख दोनों ने प्रशिक्षण छोड़कर घर जाने का मन बना लिया है। हालांकि कॉलेज प्रिंसिपल हॉस्टल में सारी सुविधाएं होने का दावा कर रहे हैं और इसे पूरी तरह सुरक्षित बता रहे हैं।
हवाई ख्वाब दिखा दिलाया प्रवेश
शांति चौधरी और वाली बिश्नोई ने बताया कि उन्हें विकलांग व्यावसायिक पुनर्वास केंद्र, जयपुर ने ड्रेस मेकिंग कोर्स के लिए मोटिवेट किया। उन्हें बताया गया कि कोर्स के दौरान आवास, भोजन की सुविधा नि:शुल्क मिलने के साथ स्कॉलरशिप दी जाएगी। अच्छे अंकों से कोर्स में पास होने पर सरकारी नौकरी मिलेगी, नहीं तो कोई रोजगार खुलवा दिया जाएगा। यह सोच दोनों ने जोधपुर महिला पॉलिटेक्निक कॉलेज के ड्रेस मेकिंग कोर्स में प्रवेश ले लिया। यहां पहुंचे पर एेसे हालात मिले। यहां रात के समय पूरे भवन में अंधेरा रहता है। चौकीदार कभी आता ही नहीं। छात्रावास के आस-पास जंगली जानवर घूमते हैं। नि:शुल्क प्रशिक्षण होने के बावजूद स्टेशनरी के नाम पर आठ हजार रुपए मांगे जा रहे हैं।
हमारा काम मोटिवेट करना
छात्राओं की समस्याओं को लेकर विकलांग व्यावसायिक पुनर्वास केंद्र, जयपुर के वोकेशनल इंस्पेक्टर दयाराम से बात की तो बोले- हमारा काम मोटिवेट करना था। आवास और सुरक्षा से लेकर खाने-पीने का इंतजाम करना कॉलेज प्रशासन के हाथ में है। स्कॉलरशिप नियमानुसार मिलेगी। नौकरी के लिए हमारी तरफ से वायदा नहीं किया गया है।
प्रिंसिपल बोले ऐसी कोई बात नहीं
अभी महिला छात्रावास की चार दीवारी का काम अधूरा है। लेकिन हमारे पास एक बड़ा हॉस्टल है। सुरक्षा का जहां सवाल है, चौकीदार हॉस्टल के अंदर नहीं गेट पर रहता है। हॉस्टल के लिए एक वार्डन है और एक असिस्टेंट वार्डन रखी हुई है। रात को हॉस्टल का ताला लगाया जाता है और सुबह खोल दिया जाता है। यदि लड़कियां नहीं रुकने की बात कर रही हैं तो मैं बात करता हूं कि समस्या कहां आ रही है।
बीएल धायल, प्रिंसिपल, राजकीय पॉलीटेक्निक कॉलेज, जोधपुर
Published on:
19 Sept 2017 03:54 pm
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