आरोपी को भगोड़ा घोषित करवाने की कार्यवाही में जुटी एसीबी ने राजस्थान हाईकोर्ट (rajasthan highcourt) में पेश जवाब में कहा कि जांच के अनुसार रिश्वत लेने का गठजोड़ एसआइ गजेन्द्रसिंह और हेड कांस्टेबल तेजाराम के बीच था।
एसीबी ने जांच में ऐसे किसी वार्तालाप सत्यापन का उल्लेख नहीं किया जिसमें थानाधिकारी द्वारा राशि की मांग की गई थी। एसीबी ने गत 10 मई को बासनी थाने के एसआइ गजेन्द्रसिंह को 20 हजार रुपए की रिश्वत लेते गिरफ्तार किया था। इस मामले में तत्कालीन थानाधिकारी बोथरा और हेड कांस्टेबल तेजाराम को भी नामजद किया गया।
तत्कालीन थानाधिकारी ने इसे चुनौती देते हुए राजस्थान हाईकोर्ट में एसीबी में दर्ज एफआइआर खारिज करने की याचिका दायर की थी। इस पर कोर्ट ने आरोपी को अपना प्रतिवेदन पेश करने और एसीबी को इसका विधिपूर्वक निस्तारण कर प्रत्युत्तर देने को कहा था।
एसीबी ने अपना जवाब पेश कर दिया है। इस पर 21 अक्टूबर को सुनवाई होगी। जवाब में एसीबी ने कहा कि ट्रेप कार्रवाई से पहले 8 मई को शिकायकर्ता, हेड कांस्टेबल तेजाराम और एसआइ गजेन्द्रसिंह के बीच रिश्वत की मांग के वार्तालाप का सत्यापन किया गया।
इसमें पता चला कि रिश्वत राशि की मांग करने का गठजोड़ गजेन्द्रसिंह और तेजाराम के बीच में था। सत्यापन में थानाधिकारी बोथरा की कोई भूमिका का उल्लेख नहीं है। एसीबी ने कहा कि बोथरा रोजनामचे में कोई एंट्री नहीं करते हुए बजरी से भरा डम्पर रुकवाया और उसे सुबह थाने लेकर लाए।
रोजनामचे में यह गलत एंट्री करना कि डम्पर शाम को पकड़ा गया और डम्पर छुड़वाने आए सुनील विश्नोई को बिना दस्तावेज हवालात में रखकर छोड़ने के कारण प्रथम दृष्टया प्रकरण बनता है। शिकायतकर्ता से 45 हजार रुपए की मंाग एसआइ गजेंद्रसिंह द्वारा करना प्रथम दृष्टया स्थापित होता है। प्रत्युत्तर में एसीबी ने आगे लिखा कि अनुसंधान और साक्ष्यों के अनुसार यह पाया गया कि तत्कालीन थानाधिकारी सुबह साढ़े छह बजे घटना स्थल पहुंचे और डम्पर को रुकवाया और एसआइ गजेन्द्रसिंह को कार्यवाही शुरू करने के निर्देश दिए।
लेकिन एफआइआर दस घंटे बाद दर्ज की गई। जबकि यह सुबह ही दर्ज हो जानी चाहिए थी। डम्पर की सूचना दोपहर दो बजे मिलने की बात कही गई, लेकिन इसे सायं 4.56 बजे दर्ज किया गया। जिसके पीछे अवैध फायदा लेने की मंशा थी। इसलिए प्रथम दृष्टया आइपीसी की धारा 119 का प्रकरण बनता है।