
जोधपुर के मथानिया में एक खेते में मिर्च के पौधों को रोपते किसान। पत्रिका फोटो
Mathania Mirch : देश-विदेश में मशहूर मथानिया की मिर्च एक बार फिर सुर्खियों में है। वर्षों तक मिर्च की खेती से दूरी बनाने के बाद अब क्षेत्र के किसानों का रुझान दोबारा मिर्च की ओर बढ़ा है। इसकी मुख्य वजह है मथानिया मिर्च के ब्रांड नाम से जीआई टैग का आवेदन किया गया। जिससे न केवल उनकी बाजार में पहचान बढ़ी है, बल्कि मांग में भी जोरदार इजाफा हुआ है। साथ ही किसानों के उत्साह में भी बढ़ोत्तरी हुई है।
मथानिया, जोधपुर से करीब 40 किमी दूर स्थित है। मथानिया और आस-पास के गांवों में इसकी बड़े पैमाने पर खेती होती है। मथानिया कृषि क्षेत्र में 90 के दशक में हजारों हेक्टेयर भूभाग पर किसान मिर्च की खेती करते थे। लेकिन लागत मूल्य बढ़ने एवं मिर्च में कई तरह के रोगों व कीड़ों का प्रकोप के चलते पैदावार में कमी आई। जिससे किसानों का धीरे-धीरे मिर्च की ओर से मोह कम हो गया। फिर किसानों ने मिर्ची की खेती करनी छोड़ दी। अब जीआई टैग प्रकिया और नई बाजार संभावनाओं ने उन्हें फिर से जोड़ना शुरू कर दिया है।
मथानिया क्षेत्र के कई गांवों में इन दिनों मिर्च की पौध तैयार हो चुकी है। खेतों में रोपाई का कार्य शुरू हो चुका है। किसान मई-जून में बीज बोते हैं, जिससे 45 से 50 दिनों में पौध तैयार होती है। इसके बाद लगभग एक से डेढ़ फीट की दूरी पर खेतों में पौधों की रोपाई की जाती है।
उद्यान विभाग के सहायक कृषि अधिकारी बाबूलाल जोया के अनुसार इस वर्ष क्षेत्र में एक हजार हेक्टेयर भूभाग के करीब मिर्च की बुवाई का लक्ष्य है जो पिछले वर्षों की तुलना में ज्यादा है ।
क्षेत्र के प्रगतिशील किसान झूमर राम खोत ने बताया कि वह पिछले कई वर्षों से परंपरागत देसी तकनीक से मिर्च की पौध तैयार करते हैं। खेत में क्यारी बनाकर घरेलू जैविक विधि से बीज को अंकुरित किया जाता है। यहां पौधे रोग प्रतिरोधक और उत्पादन में बेहतर माने जाते हैं।
यह जानकर जोधपुर की जनता को गर्व महसूस होगा कि देश के पीएम नरेंद्र मोदी भी जोधपुर के होटल में मथानिया की लाल मिर्च का जायका ले चुके हैं।
लंबाई
6-7 इंच लम्बी
स्वाद
तीखा और हल्का मीठा
रंग
गहरा लाल रंग, 6 महीने तक नहीं पड़ता फीका
खाने को बनाता है आकर्षक ।
सुगंध
खास सुगंध, अन्य मिर्चों से देती है अलग पहचान।
खेती
जैविक तरीके से होती है खेती।
भाव
साबुत मिर्ची का भाव करीब ₹360 किलो।
राजस्थान बहुत सी वस्तुओं को जीआई टैग मिला है। जिनमें जयपुर की ब्लू पॉटरी, कोटा डोरिया, सांगानेरी हैंड ब्लॉक प्रिंटिंग, बगरू हैंड ब्लॉक प्रिंटिंग, मोलेला मिट्टी का काम, कठपुतली, थेवा कला, पोकरण पॉटरी, फुलकारी, केर सांगरी, सोजत की मेहंदी और बीकानेरी भुजिया शामिल है। अब मथानिया मिर्च भी इस लिस्ट में शामिल होने वाला है।
जीआई टैग ज्योग्राफिकल इंडिकेशन यानी भौगोलिक संकेत का संक्षिप्त नाम है। जीआई टैग मुख्य रूप से कृषि, प्राकृतिक उत्पाद या एक निर्मित उत्पाद हस्तशिल्प और औद्योेगिक सामान जो एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में उत्पन्न होता है। यह उस उत्पाद को दिया जाता है जो विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र में 10 वर्ष या उससे अधिक समय से निर्मित या उत्पादित किया जा रहा है। ये 10 साल के लिए मिलता है।
Published on:
02 Aug 2025 12:20 pm
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