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राजस्थान का रण : हाईटेक कैम्पेनिंग ने सब बदल दिया

locationजोधपुरPublished: Oct 14, 2018 06:34:43 pm

Submitted by:

M I Zahir

जोधपुर. पहले चुनावों में बैनर, पोस्टर और फ्लेक्स हाथ से पेन्ट होते थे। अब अब फ्लेक्स और बैनर का मशीनीकरण हो गया है।

RAJASTHAN KA RAN: Hitech election campaign changed all things

RAJASTHAN KA RAN: Hitech election campaign changed all things

जोधपुर. देश और राजस्थान में पिछले कुछ बरसों से हो रहे चुनाव हाईटेक हो चुके हैं। पुराने लोग पुराने समय में पुराने तरीके से होने वाले चुनाव आज भी याद करते हैं। उन चुनावों में बैनर और पोस्टर पेंट होते थे, मगर अब ये बैनर और पोस्टर कम्प्यूटर से बनते हैं। उन दिनों इन्हें बनवाने की भी जिम्मेदारी तय होती थी। हर शहर में हर पार्टी और निर्दलीय उम्मीदवार इन बैनर्स और पोस्टर्स के निर्माण पर नजर रखते थे। वक्त बदला तो रेडिमेड कैम्पेन के कारण ये सब काम एजेंसियों को दिए जाने लगे और एेसे कामों के लिए कार्यकर्ता गौण हो गया। अब तो पार्टियां और उम्मीदवार ये बनाने के लिए किसी ‌एजेंसी को काम दे कर बेफिक्र हो जाते हैं। इस वजह से पेंटरों को होने वाली आमदनी बंद हो गई।
रात भर जाग कर पेंट करते थे
एक समय था जब पेंटर घंटों पेंट कर के पोस्टर और बैनर बनाते थे। उन दिनों पेंटर आदि रात भर जाग कर चुनावी पेंटिंग बनाते थे। तब जोधपुर शहर में छापेखाने में पेम्पलेट छपते थे। यही नहीं, सरदार जी की सोजती गेट वाली दुकान से फोटो के लिए ब्लॉक बनाया जाता था। तब कार्यकर्ता स्टेंसिल लेकर निकलते थे और रात भर दीवारों पर उसका पेंट भरते थे, तब पता चलता था कि इन साहब को चुनाव का टिकट मिला है।
फोटो बनाने में पूरा दिन लग जाता था : हुसैन

पुराने दिनों के चुनावों के दौरान पेंटरों को रोजगार मिलता था। उनकी अच्छी खासी आमदनी हो जाती थी। उस काम में आमदनी और रोमांच दोनों से खुशी मिलती थी कि लोकतंत्र के उत्सव में हम भी थोड़ा सा योगदान दे रहे हैं। पेंटर जिगर हुसैन ने पत्रिका से मुलाकात में यह बात कही। उन्होंने बताया कि चुनावों के दौरान ये बैनर पोस्टर सन २००४ तक तो लिखे जाते थे, लेकिन 2009 से चुनाव के दौरान इनका चलन खत्म हो गया। बैनर हाथ से बनाते थे। ये कपड़े के बैनर होते थे और उस पर लकड़ी की कलम से लिखते थे। गिलहरी के बाल की कलम से कपड़े पर लिखते थे। ये बैनर लकड़ी के फ्रेम और लट्ठे के कपड़े से बनातेे थे। बैनर बनाने में आधा या एक घंटा लगता था। छोटा बैनर दो मीटर का होता था और बड़ा होर्डिंग 30 गुणा 10 का होता था। मैं भी बैनर लिखता था।

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