जोधपुर जिले के अधिकांश किसान प्याज की देसी फसल लेते हैं, जो अप्रेल-मई में आती है। लेकिन इस बार किसानों ने सियाळू फसल ली। इसकी पैदावार तो अच्छी हुई, लेकिन भाव नहीं मिलने से औने-पौने दाम पर प्याज बेचने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। जिले के मथानिया, तिंवरी, लोहावट, ओसिया क्षेत्र के किसानों ने करीब 8 हजार हैक्टयर में पहली बार सियाळू प्याज की बुआई की थी और 1 लाख टन प्याज की पैदावार होने का अनुमान है। देसी प्याज की फसल की आवक मई में होगी। इससे पहले किसानों के समक्ष सियाळू प्याज को बेचने की चिन्ता है।
ज्ञात है कि हर साल फरवी-मार्च के माह जोधपुर के बाजार में सीकर के प्याज का बोलबाला रहता है। सीकर का प्याज 10 से 15 रुपए किलो बिकता रहा है। लेकिन इस बार जोधपुर में ही सीकर के प्याज की पैदावार होने से स्थिति उलट गई। अधिक पैदावार आने से प्याज के भाव औंधें मुंह गिर गए। मंडी में अच्छे भाव नहीं मिलने के कारण किसान टै्रक्टर ट्रॉली से जोधपुर शहर की सड़कों पर प्याज बेचने का मजबूर है।
3 से 4 किलो है थोक भाव- जोधपुर मंडी में स्थानीय प्याज के अलावा प्रतिदिन 10 से 15 ट्रक प्याज सीकर से आ रहा है। ऐसे में होलसेल के भाव 3 से 4 रुपए तथा रिटेल भाव 4 से 6 रुपए है। किसान नेता अजीत कच्छावाह का कहना है कि पहली बार सियाळू प्याज के उत्पादन का सरकारी राजस्व जमाबंदी और गिरदावरी में रिकार्ड होना चाहिए, ताकि किसान समर्थन मूल्य पर सरकारी खरीद की मांग कर सके। भारतीय किसान संघ के प्रगतिशील किसान विनोद डागा का कहना है कि मथानिया-ओसियां की मंडी में प्याज की तुलाई होनी चाहिए, ताकि किसान अपना प्याज व्यापारी को बेच सकें। इससे बिचौलियों से मुक्ति मिलेगी और जोधपुर ले जाना का भाड़ा भी बचेगा।