विधानसभा क्षेत्र का प्रमुख इलाका प्रतापनगर, जो करीब आधा दर्जन कच्ची बस्तियों से घिरा हुआ है। दोपहर का वक्त। प्रतापनगर क्षेत्र का सेटेलाइट अस्पताल जहां चिकित्सकों के 11 पद स्वीकृत हैं लेकिन अस्पताल में केवल चार चिकित्सक ही सेवाएं देते नजर आए। करीब 800 से अधिक आउटडोर वाला एसएन मेडिकल कॉलेज के अधीन यह अस्पताल जगह-जगह से जर्जर हो रहा है। दीवारों में दरारें आ चुकी हैं। बारिश में जगह-जगह से पानी टपकता है। दो दशक से पीडब्ल्यूडी अथवा सीएमचओ या मेडिकल कॉलेज प्रशासन ने एक धेला तक मरम्मत के लिए नहीं दिया है। अस्पताल में कई सालों से नई एक्सरे मशीन सहित कई उपकरण धूल फांक रहे हैं। सिर्फ नाम के सेटेलाइट अस्पताल में निश्चेतना विशेषज्ञ, रेडियोलॉजिस्ट, पैथोलॉजिस्ट तक नहीं है।
सूरसागर विधानसभा क्षेत्र के सबसे प्रमुख अस्पताल में प्रसव सुविधा तक नहीं है। हर बुधवार को अस्पताल में नसबंदी ऑपरेशन होते हैं लेकिन यहां ऑक्सीजन सिलेंडर तक नहीं है। अस्पताल में डिजिटल सिस्टम नहीं होने से पर्ची भी हाथ से बनाकर दी जा रही थी। रोग जांच सुविधा के नाम पर कुछ भी नहीं है। जब अस्पताल के प्रभारी से बातचीत की तो उनका कहना था कि अस्पताल में 11 चिकित्सक के पद हैं। उनमें से कुछ डेपुटेशन पर तो कुछ लंबे अर्से से छुट्टियों पर हैं। वर्तमान में केवल चार चिकित्सक ही सेवारत हैं। अस्पताल से आगे बढ़ते है प्रतापनगर श्मशान शुरू हो जाता है।
बर्बाद हो रही है ऐतिहासिक नहर श्मशान की प्राचीन हाथी नहर जो बाईजी का तालाब तक थी उसे अतिक्रमण कर नेस्तानाबूद कर दिया गया। मलबे और कचरे से अटी ऐतिहासिक नहर के कुछ हिस्से को पाट कर उस पर खुलेआम प्रतिबंधित बजरी का व्यापार हो रहा है। क्षेत्र की पहाडिय़ां भूतेश्वर वन क्षेत्र का हिस्सा होने के बावजूद हजारों की संख्या में अतिक्रमण हो रखे हैं। जहां पेड़ पौधे और हरियाली से स्वच्छ वायु मिलनी थी वहां लेदर के उत्पाद निर्माण के बाद बचे वेस्ट के टुकड़ों को जलाया जा रहा है। इससे क्षेत्र के हजारों लोगों में आंखों की जलन व सांस संबंधी बीमारियां व परेशानियां बढ़ती जा रही हैं।
डम्पिंग स्टेशन में तब्दील हो रहा पार्क क्षेत्र में आगे बढ़े तो विधायक सूर्यकांता के पति उमाशंकर व्यास के नाम पर निर्मित पार्क डम्पिंग स्टेशन में तब्दील हो चुका है। प्लास्टिक और गंदगी से अटे पार्क में आवारा पशुओं की भरमार नजर आई। पार्क से चंद कदमों की दूरी पर ही राजकीय बालिका सीनियर सैकण्डरी स्कूल है, लेकिन स्टाफ के अभाव के साथ अभी तक साइंस स्टुडेन्ट्स के लिए लैब सुविधा तक नहीं है। स्कूल से कुछ आगे बढऩे पर सूरसागर मैन रोड कायलाना सर्किल है जहां पुरानी रेलवे लाइन पर लोगों ने अतिक्रमण कर रखे हैं। मैन रोड पर अंधाधुंध अतिक्रमण से रोड दिनों दिन सिकुड़ती जा रही है। नगर निगम के स्वामित्व का बोर्ड प्रशासन की नाकामी पर मुंह चिढ़ाता नजर आता है।
तालाब में बढ़ता जा रहा है अतिक्रमण कायलाना सर्किल से बायीं ओर आगे बढऩे पर कुछ ही दूरी पर अखेराज तालाब है। जहां शीतकाल में प्रवासी पक्षी आते हैं। प्राचीन तालाब पर कई जगह निजी संपत्ति के बोर्ड लगे हैं। तालाब के कैचमेंट एरिया में निर्माण कार्य बढ़ता जा रहा है। तालाब के सामने ही माचिया जैविक उद्यान है। जहां पहुंचने के लिए दो साल बाद भी आमजन अथवा पर्यटकों के लिए जिला प्रशासन की ओर से परिवहन की सुविधा तक नहीं है। उद्यान के नजदीक ही जोधपुर शहरवासियों को पेयजल आपूर्ति करने वाला जलाशय कायलाना है। जहां जगह-जगह गंदगी के ढेर लगे हैं। शहर का प्रमुख पर्यटक स्थल होने के बावजूद कायलाना पर्यटन स्थल पर इक्का-दुक्का पर्यटक ही पहुंचते हैं। पर्यटकों के लिए सुरक्षा छाया तो दूर मूलभूत सुविधा के इंतजाम तक नहीं है।
यातायात का बढऩे लगा है दबाव इसी विधानसभा क्षेत्र के सूरसागर रोड पर महिला पीजी महाविद्यालय, बीएड कॉलेज के पास निजी बस स्टैण्ड संचालित होता है। जहां से रोजाना 60 से 70 बसों का संचालन होता है। कमला नेहरू नगर को जोडऩे वाले तिराहे पर होने व शिक्षण संस्था के हजारों विद्यार्थियों के कारण यातायात का दबाव हमेशा बना रहता है। यातायात नियंत्रण के लिए कोई ट्रैफिक पुलिसकर्मी नहीं होने से अक्सर दुर्घटनाएं व यातायात बाधित होता है।
सडक़ों पर हो रही है पार्र्किंग कुछ ही दूरी पर विधानसभा क्षेत्र का सबसे व्यवस्ततम सर्किल आखलिया चौराहा है। जहां प्रतिदिन करीब 50 हजार से अधिक वाहन गुजरते हैं। आखलिया सर्किल पर जगह-जगह अतिक्रमण की बाढ़ सी आ गई है। कई निजी बैंक व फाइनेन्स कंपनियों के कारण वाहनों की पार्र्किंग आधी से अधिक सडक़ पर होने से कई बार जाम की स्थिति बन जाती है। दरअसल यह कागजों व आम बोलचाल की भाषा में चौराहा है जबकि हकीकत में तिराहा ही है। एक रास्ता पूरी तरह गायब होने के कारण वाहन चालकों को घूमकर मसूरिया पहुंचना पड़ता है।
क्षेत्र की प्रमुख समस्याएं
1. विधानसभा क्षेत्र में स्थित वन भूमि पर बसी 40 से अधिक कच्ची बस्तियों का नियमन।
2. क्षेत्र के सभी चिकित्सालयों में पर्याप्त चिकित्सकों का अभाव, प्राथमिक जांच तक की सुविधा नहीं है।
3. खनन श्रमिकों में होने वाली सिलिकोसिस बीमारी के लिए अभी तक कोई इंतजाम नहीं।
4. कच्ची बस्ती के श्रमिक परिवारों के बच्चों के लिए शिक्षा के पुख्ता प्रबंध नहीं।
5. पाकिस्तान से आए करीब 20 हजार से अधिक हिन्दू विस्थापितों की नागरिकता व उनके पुनर्वास की समस्या।
6. सूरसागर क्षेत्र के कई घरों के अंडरग्राउंड में पानी भरने की समस्या।
7. प्राचीन जलाशयों पर अंधाधुंध अतिक्रमण।