गांठ कोंड्रोसार्कोमा नामक कैंसर बीमारी निकली चिकित्सकों के मुताबिक बायोप्सी में कैंसर की गांठ कोंड्रोसार्कोमा नामक कैंसर की बीमारी निकली। मरीज़ को सर्जिकल ऑन्कोलॉजी विभाग के सह आचार्य डॉ जीवन राम विश्नोई की देखरेख में भर्ती किया गया। पहले सिटी स्कैन व बोन स्कैन करवा के ये निश्चित किया गया था कि कहीं और अंगों में फैला हुआ तो नहीं है। मरीज के इलाज का प्लान संस्थान निदेशक डॉ संजीव मिश्रा के दिशा-निर्देशन में डॉ जीवन राम विश्नोई, डॉ पुनीत पारीक, डॉ भारती देवनानी ने मिलकर के निर्धारित किया। इस परिस्थति में पांव को घुटने के ऊपर से काटने के अलावा सीमित विकल्प ही थे। मरीज़ के एमआइ व सीटी स्कैन का बारीकी से अध्ययन करके पैर को बचाने की सर्जरी प्लान की गई। सर्जरी के दौरान ही ब्रेकीथेरेपी कैथेटर लगाने का फ़ैसला किया गया। इस ऑपरेशन में पैर के फुबिला बोन के साथ में पैर के साइड व पीछे की मांसपेशियां व सॉफ़्ट टिश्यूज़, स्कीन व कुछ नसें भी निकाली गई। एम्स जोधपुर हॉस्पिटल अधीक्षक डॉ एमके गर्ग ने बताया कि इस तकनीक से ऐसे बहुत से मरीज़ लाभान्वित होंगे। उन्होंने पूरी टीम की सराहना की।
इन्होंने किया ऑपरेशन
ये ऑपरेशन डॉ जीवन राम विश्नोई की टीम ने किया। उनके साथ टीम में डॉ निवेदिता शर्मा, डॉ धर्माराम पुनिया, डॉ राजेंद्र, डॉ अल्केश, डॉ अरविंद , एनेस्थेसिया से डॉ प्रियंका सेठी , डॉ वैष्णवी,नर्सिंग में तीजो चौधरी, इबा खरनीयोर व राजेंद्र थे।
ये ऑपरेशन डॉ जीवन राम विश्नोई की टीम ने किया। उनके साथ टीम में डॉ निवेदिता शर्मा, डॉ धर्माराम पुनिया, डॉ राजेंद्र, डॉ अल्केश, डॉ अरविंद , एनेस्थेसिया से डॉ प्रियंका सेठी , डॉ वैष्णवी,नर्सिंग में तीजो चौधरी, इबा खरनीयोर व राजेंद्र थे।
ऑपरेशन के दौरान लगाए ब्रेकीथैरेपी कैथेटर ऑपरेशन के दौरान ही रेडियोथेरेपी विभाग में डॉ भारती देवनानी की टीम ने ब्रेकीथेरपी कैथेटर लगाए। उनके साथ डॉ अमित व डॉ सुजोय थे। सर्जरी के बाद में रेडियोथेरेपी विभाग में डॉ पुनीत पारीक, डॉ भारती देवनानी, डॉ आकांक्षा सोलंकी व फिजिस्टि सुमंता व जोस्मिन ने सीटी सिम्युलेशन करके बारीकी से ट्यूमर बेड के लिए उपयुक्त प्लान की संरचना की । इसमें अत्याधुनिक मशीन से इरिडीयम रेडीओऐक्टिव सोर्स से इंटस्र्टिशल ब्रेकीथेरेपी कैथेटर तकनीक द्वारा रेडियोथेरेपी दी गई। सर्जरी के पांच दिन बाद में लगातार तीन दिन तक सुबह व शाम को मिलाकर के 16 ग्रे मात्रा की रेडियोथेरेपी दी। उसके बाद में कैथेटर निकालकर डिस्चार्ज कर दिया गया । घाव भरने व टांके निकलने के बाद लगभग 1 महीने पश्चात बाह्य रेडीयोथेरेपी यानी इबीआरटी का प्लान किया गया है।