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थम गए झूले, फीके पड़े मेले

locationजोधपुरPublished: Jul 09, 2020 08:51:33 pm

Submitted by:

Nandkishor Sharma

कोरोना ने किया सावन का उल्लास सूना
जोधपुर की गोठ परम्परा और तीज त्योहार के रंग भी फीके

थम गए झूले, फीके पड़े मेले

थम गए झूले, फीके पड़े मेले

जोधपुर. जोधपुरवासियों के मन को हर्षित करने वाले श्रावण मास में इन दिनों उल्लास की जगह मायूसी और भय का माहौल है। शहर में लगातार बढ़ते कोरोना संक्रमण के मामलों ने श्रावण के उल्लास को फीका कर दिया है। मन को उमंग से भरने वाले सावन के झूले, पारम्परिक मेले, शिवालयों में धार्मिक अनुष्ठान और तीज त्योहारों पर भी कोरोना का साया है। प्रत्येक सोमवार को प्रमुख शिवालयों में भक्तों के मेले की जगह वीरानी और सन्नाटा पसरा है। श्रावण मास में ही मंडोर में लगने वाला वीर पुरी का मेला अब कोरोनाकाल मे खत्म होने को है। इस मेले के लिए पहले जोधपुर से मंडोर तक विशेष ट्रेन भी चला करती थी। श्रावण कृष्ण अमावस्या याने हरियाली अमावस्या को भोगिशैल पहाडिय़ों के धार्मिक स्थलों में होने वाले मेले भी इस बार नहीं हो पाएंगे। श्रावणी पूर्णिमा को रक्षाबंधन की तैयारियां भी एक माह पूर्व ही शुरू हो जाती थी। इस बार कोरोना महामारी के कारण दूरदराज के हिस्सों में रहने वाली बहनें भी कोरोना के बढ़ते मामलों को लेकर काफी चिंतित है।
18 वीं सदी में मिलता है श्रावण मास में गोठ परम्परा उल्लेख

मारवाड़ का खानपान भौगोलिक परिस्थितियों व जलवायु और वैज्ञानिक आधार पर धर्म को जोड़कर प्रचलित किया गया है । यहां पर प्रत्येक ऋतु और त्योहार पर भिन्न भिन्न व्यंजनों को खाने की परंपरा रही है। श्रावण मास में अलग अलग सामाजिक संगठनों, कर्मचारी संगठनों, मोहल्लों, बस्तियों, मित्रों, रिश्तेदारों की गोठ करने की परम्परा रही है। इन गोठ आयोजन में दाल बाटी चूरमा, गोविंद गट्टे की सब्जी, गुलाब जामुन की सब्जी, केर काजु दाख की सब्जी, कबूली और चूंटीयो की चक्की खाने का प्रचलन रहा है। भोगिशैल पहाडिय़ों में स्थित धार्मिक स्थलों में होने वाली गोठ इस बार कोरोना संक्रमण के कारण नहीं हो पाएगी।
जोधपुर में गोठ मनाने की परम्परा

जोधपुर महाराजा तख्तसिंह की ख्यात 1843 से 1873 में मिलती है जिनमें श्रावण मास में शहर के बाहर आमोद प्रमोद के साथ भोजन किया जाता था। इसमें महाराजा व अन्य सभी लोग धार्मिक स्थलों की मर्यादा का पालन करते थे।

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