18 वीं सदी में मिलता है श्रावण मास में गोठ परम्परा उल्लेख मारवाड़ का खानपान भौगोलिक परिस्थितियों व जलवायु और वैज्ञानिक आधार पर धर्म को जोड़कर प्रचलित किया गया है । यहां पर प्रत्येक ऋतु और त्योहार पर भिन्न भिन्न व्यंजनों को खाने की परंपरा रही है। श्रावण मास में अलग अलग सामाजिक संगठनों, कर्मचारी संगठनों, मोहल्लों, बस्तियों, मित्रों, रिश्तेदारों की गोठ करने की परम्परा रही है। इन गोठ आयोजन में दाल बाटी चूरमा, गोविंद गट्टे की सब्जी, गुलाब जामुन की सब्जी, केर काजु दाख की सब्जी, कबूली और चूंटीयो की चक्की खाने का प्रचलन रहा है। भोगिशैल पहाडिय़ों में स्थित धार्मिक स्थलों में होने वाली गोठ इस बार कोरोना संक्रमण के कारण नहीं हो पाएगी।
जोधपुर में गोठ मनाने की परम्परा जोधपुर महाराजा तख्तसिंह की ख्यात 1843 से 1873 में मिलती है जिनमें श्रावण मास में शहर के बाहर आमोद प्रमोद के साथ भोजन किया जाता था। इसमें महाराजा व अन्य सभी लोग धार्मिक स्थलों की मर्यादा का पालन करते थे।