scriptसदियों से दुर्लभ पक्षियों की पनाहस्थली बना हुआ है गढ़ मेहरान | The fortress of rare birds has been a fortress for centuries, Mehran | Patrika News

सदियों से दुर्लभ पक्षियों की पनाहस्थली बना हुआ है गढ़ मेहरान

locationजोधपुरPublished: Mar 04, 2021 10:54:41 am

Submitted by:

Nandkishor Sharma

वल्चर सहित हजारों पक्षियों व चमगादड़ों का भी आशियाना

सदियों से दुर्लभ पक्षियों की पनाहस्थली बना हुआ है गढ़ मेहरान

सदियों से दुर्लभ पक्षियों की पनाहस्थली बना हुआ है गढ़ मेहरान

जोधपुर. पक्षी की आकृति वाला जोधपुर का विश्वविख्यात गढ़ मेहरान 562 वर्षों से हजारों दुर्लभ पक्षियों की पनाह स्थली है। दुर्ग की जन्म कुण्डली के अनुसार किले का नाम चिंतामणी और दुर्ग के आकार आकृति के अनुसार किले का नाम ‘मयूर ध्वजÓ रहा है। आकाश की ऊंचाइयों से पंख फैलाए मयूर के समान नजर आने वाले मेहरानगढ़ में आज भी सरिसर्प अथवा सांप को नहीं मारने की आदेश की पालना होती है। मेहरानगढ़ के निर्माणकर्ताओं ने निर्माण के समय से ही नन्हीं चिडिय़ों से लेकर सभी तरह के पक्षियों के लिए महलों की दीवारों व पहाड़ी चट्टानें पर सुरक्षित आवास ‘जीव-रखाÓ के रूप में छोटे छोटे आवास बनवाए थे । आज भी विभिन्न प्रजातियों के पंछियों को उन सुरक्षित घरों में चहचहाते हुए सहज देखा जा सकता है । मेहरानगढ़ में ही संत चिडिय़ानाथ मार्ग पर स्थित पहाड़ी गिद्धों की प्रमुख व सुरक्षित आश्रय स्थली मानी जाती है। चिडिय़ों के घोंसले लोहापोल व अन्य दरवाजों की छत पर सहज देखे जा सकते हैं । मेहरानगढ़ के आसपास पक्षियों की देखरेख करने वाले विनोदपुरी के अनुसार सुरक्षित परिसर होने के कारण किले में कई दुर्लभ पक्षी भी आश्रय लेने आते है।
किले पर चील दिखना मंगलकारी

मां चामुण्डा की प्रतीक माने जाने वाली चीलों का किले के ऊपर दिखना बहुत मंगळमय माना जाता है । जब जोधपुर के संस्थापक राव जोधा के हाथ से राजसत्ता चली गई थी, तब ऐसा माना जाता है कि मां चामुण्डा ने चील के रूप में उन्हें दर्शन देकर राजसत्ता प्राप्त करने की प्रेरणा दी थी। सदियों से किले में चीलों को चुग्गा देने की परम्परा चली आ रही है।
जारी है पक्षियों के संरक्षण की परम्परा

मेहरानगढ़ के रक्षकों ने सदियों से पर्यावरण, पक्षियों,जल संरक्षण, पेड़-पौधों इत्यादि का पूर्ण संरक्षण किया है । मेहरानगढ़ के निर्माणकाल और उसके बाद भी सदियों से पक्षियों के संरक्षण की परम्परा को जारी है। -करणीसिंह जसोल, निदेशक मेहरानगढ़ म्यूजियम ट्रस्ट जोधपुर
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