शब्द ज्योतिर्मय है इसलिए ब्रह्म है
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- जेएनवीयू हिंदी विभाग में व्याख्यानमामला

जोधपुर. जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग द्वारा आयोजित व्याख्यानमाला की 22 वीं कड़ी में ‘भाषा चिंतन की भारतीय परम्परा’ विषय पर व्याख्यान हुआ।
मुख्य वक्ता जबलपुर स्थित रानी दुर्गावती विवि के भाषा विज्ञान विभाग के प्रो त्रिभुवननाथ शुक्ल ने भाषा चिंतन की भारतीय परम्परा के वृहत्तर आयामों को सामने रखा। उन्होंने कहा कि भाषा, चिंतन की भारतीय परम्परा का गौमुख है। भाषा से सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। भाषा उत्पन्न कैसे होती है उसका चिंतन भारतीयों ने किया। यही कारण है कि पश्चिमी भाषा चिंतक अपने को भारतीय चिंतक का ऋणी मानते हैं और पाश्चात्य चिंतक को केवल झूठन मात्र समझते हैं लेकिन अफ़सोस की बात है कि आज तक हम व्याकरण के अंग्रेजी पैटर्न को एक लाश की तरह ढोते जा रहे हैं। शब्द और अर्थ का संबंध भारत में नित्य है जबकि पश्चिम में अनित्य, शब्द ब्रह्माण्ड में निरंतर गुंजायमान है। यदि शब्द की ज्योति न होती तो तीनो लोक घने अंधकार में डूबे रहते इसलिए शब्द को ब्रह्म कहा गया है।
जेएनवीयू हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो नरेंद्र मिश्र ने प्रारंभिक उद्बोधन दिया। संयोजक डॉ फत्ताराम नायक ने किया। डॉ महेंद्रसिंह व डॉ अरविन्द जोशी ने विचार रखे।
इस अवसर पर प्रोफेसर के एल रेगर अधिष्ठाता कला संकाय ,प्रो सरोज कौशल, प्रो. शिवप्रसाद शुक्ल, प्रो. छोटाराम कुम्हार, डॉ महिपाल सिंह राठौड़, डॉ कुलदीप सिंह, डॉ श्रवण कुमार ,डॉ कामिनी ओझा डॉ प्रेमसिंह डॉ कीर्ति माहेश्वरी डॉ कमला चौधरी, डॉ विनीता चौहान डॉ प्रवीणचंद डॉ. ज्योति सिंह, डॉ. रामकिंकर पांडेय,सहित देश विदेश के विशेषज्ञ शोधार्थी विद्यार्थी एंव शिक्षक शामिल हुए।
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