scriptजैसलमेर में बड़ी संख्या में थे जुरासिक कालीन मांसाहारी डायनोसोर | There were large number of Jurassic carnivorous dinosaurs in Jaisalmer | Patrika News

जैसलमेर में बड़ी संख्या में थे जुरासिक कालीन मांसाहारी डायनोसोर

locationजोधपुरPublished: Nov 30, 2020 08:32:37 pm

Dinosaurs in Thar Desert
– थयात गांव की पहाडिय़ों पर मिले विश्व में सबसे पुराने पादप सदृश्य जंतुओं के दुर्लभतम जीवाश्म- प्री जुरासिक युग में थार में हुआ करता था छिछला समुद्र
 

जैसलमेर में बड़ी संख्या में थे जुरासिक कालीन मांसाहारी डायनोसोर

जैसलमेर में बड़ी संख्या में थे जुरासिक कालीन मांसाहारी डायनोसोर

गजेन्द्रसिंह दहिया/जोधपुर. जैसलमेर के थयात गांव की पहािडय़ों पर विश्व के अब तक के सबसे प्राचीन व दुर्लभतम पादप सदूश्य मोलस्का जंतुओं के जीवाश्म मिले हैं। यह करीब 20 करोड़ साल पुराने हैं। ये जीवाश्म मांसाहारी डायनासोर के युग के हैं। पहाड़ी पर लाखों की संख्या में ऐसे जीवाश्म इस बात का प्रमाण हैं कि जैसलमेर के पास छिछला समुद्र था। यहां मांसाहारी डायनासोर विचरण करते थे। इस शोध के बाद अब जैसलमेर में मांसाहारी डायनासोर के जीवन, उत्पति और विनाश के संबंध में अधिक प्रमाण मिलने की संभावनाएं बढ़ गई है। जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय के भू-गर्भ विज्ञान विभाग के शोध में यह खुलासा हुआ है। इस शोध पत्र को गत 6 सितम्बर को जियोलॉजिकल सोसायटी ऑफ इंडिया ने स्वीकृत कर दिया है।
जीवाश्म प्री-जुरासिक युग के
मोलस्का प्रकार के समुद्री जंतुओं के इन जीवाश्म को हिलीचनस एग्रीओनसिस नाम दिया गया है। ये प्री-जुरासिक युग के जीवाश्म हैं। इससे पहले केवल क्रिटेशियस युग (14.5 से 6.5 करोड़ वर्ष पहले) में ही ऐसे जीवाश्म मिलते रहे हैं। मोलस्का के इन जीवों में दो कपाट वाला ह्रदय होता था। शत्रुओं से बचने के लिए ये जंतु आगे-पीछे, ऊपर-नीचे चलते थे। इनकी चाल के कारण चट्टानों पर पादप जैसी संरचनाएं बन जाती थी। इससे पहले ये अर्जेंटीना के न्यूक्यून बेसिन के एग्रियों फॉर्मेशन में ही मिले हैं, लेकिन जैसलमेर के जीवाश्म विश्व के सबसे पुराने जीवाश्म साबित हुए हैं।
क्या है इनका महत्व
हिलीचनस एग्रीओनसिस इस बात का प्रमाण है कि जैसलमेर में जुरासिक युग में भारी संख्या में मांसाहारी डायनोसोर समुद्री जीवों को भोजन के रूप में ग्रहण करते थे। वर्ष 2016 में इसी स्थान पर जेएनवीयू के शोधकत्र्ताओं को डायनोसार के दो फुट प्रिंट भी मिले थे, लेकिन अब बड़ी संख्या में डायनोसोर की बात सामने आई है।

‘थयात गांव में विश्व के सबसे पुराने व दुर्लभतम जीवाश्म मिले हैं जो यहां डायनोसोर पाए जाने की बड़ी संख्या का संकेत देते हैं।’
– डॉ. वीरेंद्र सिंह परिहार, शोधकत्र्ता व असिस्टेंट प्रोफेसर, भू-गर्भ विज्ञान विभाग, जेएनवीयू जोधपुर
(शोध में डॉ एससी माथुर, डॉ शंकरलाल नामा व स्कोलर डॉ सीपी खीची व विष्णु मेघवाल का भी योगदान रहा।)
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