इसी स्वरूप के कारण कहलाए ‘रसीलेराजÓ महाराजा मानसिंह ने होली को साहित्य की नजरों से परखा और होली से संबंधित कई फाग व होरिया लिखी जो आज भी जोधपुर ही नहीं मारवाड़ के विभिन्न हिस्सों में चाव से गाई जाती है। महाराजा मानसिंह के इसी स्वरूप के कारण उन्हें ‘रसीलेराजÓ भी कहा जाता था। महाराजा मानसिंह पुस्तक प्रकाश शोध केन्द्र के सहायक निदेशक डॉ. महेन्द्रसिंह तंवर के अनुसार महाराजा मानसिंह के समय विक्रम संवत 1879 में होली मनाने का उल्लेख मिलता है जिसमें होली के खेल के साथ-साथ महारानियां, रानियां महाराजा को मदिरा का प्याला पेश करती और मोहरों, गिन्नियों एवं चांदी के रूपयों की न्यौछावर होती जो वहां दासियों को दी जाती। जनाना ड्योढ़ी की दासियां महारानी के पांव के अंगूठे के नाखून पर रंग लगाकर होली की मर्यादा निभाती।
मारवाड़ में ‘राणाÓ की सवारी का कारण
हकीकत बहियों के अनुसार होली के दिन जोधपुर में किले से ‘राणाÓ निकालने की प्रथा रही थी। राव रिड़मल की मेवाड़ में षडय़ंत्र से हत्या कर दी गई थी। इस कारण मारवाड़ के लोग मेवाड़ से नाराज थे तथा उनके प्रति असंतोष था। इसी कारण होली के अवसर पर किले से ‘राणाÓ की सवारी निकाली जाने लगी और लोग उस पर असंतोष को प्रकट करने के लिए सात कंकर अपने और अपने बच्चों के सिर पर अंवार कर ‘राणाÓ पर फैंकते थे। ‘राणाÓ निकालने की प्रथा महाराजा विजयसिंहजी से लेकर महाराजा जसवंतसिंहजी द्वितीय तक थी तथा महाराजा उम्मेदसिंह के समय की बहियों में इसका उल्लेख नहीं मिलता है। वि.सं. 1970 तक की बहियों में ‘राणाÓ निकालने के उल्लेख मिलते हैं, परन्तु उसके बाद ‘राणाÓ निकलना कब और किसने बंद करवाया इसका उल्लेख नहीं है।
हकीकत बहियों के अनुसार होली के दिन जोधपुर में किले से ‘राणाÓ निकालने की प्रथा रही थी। राव रिड़मल की मेवाड़ में षडय़ंत्र से हत्या कर दी गई थी। इस कारण मारवाड़ के लोग मेवाड़ से नाराज थे तथा उनके प्रति असंतोष था। इसी कारण होली के अवसर पर किले से ‘राणाÓ की सवारी निकाली जाने लगी और लोग उस पर असंतोष को प्रकट करने के लिए सात कंकर अपने और अपने बच्चों के सिर पर अंवार कर ‘राणाÓ पर फैंकते थे। ‘राणाÓ निकालने की प्रथा महाराजा विजयसिंहजी से लेकर महाराजा जसवंतसिंहजी द्वितीय तक थी तथा महाराजा उम्मेदसिंह के समय की बहियों में इसका उल्लेख नहीं मिलता है। वि.सं. 1970 तक की बहियों में ‘राणाÓ निकालने के उल्लेख मिलते हैं, परन्तु उसके बाद ‘राणाÓ निकलना कब और किसने बंद करवाया इसका उल्लेख नहीं है।