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video राजस्थान दिवस पर राजस्थानी की मान्यता के स्वर हुए मुखर

राजस्थान दिवस पर जोधपुर के फिल्मकार रोमियो राठौड़ ने राजस्थानी फिल्म से राजस्थानी भाषा को मान्यता देने की मांग की है।

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जोधपुर

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MI Zahir

Mar 31, 2018

sunildutt in jodhpur

sunildutt in jodhpur on the occasion of rajasthani film festival

जोधपुर . राजस्थानी भाषा की मान्यता के लिए अब एक फिल्मकार ने राजस्थानी फिल्म बना कर भाषा की मान्यता की पुरजोर मांग की है।राजस्थान दिवस पर राजस्थानी भाषा की मान्यता के स्वर मुखर होने से एक बार फिर राजस्थानी भाषा की फिल्मों को महत्व मिलने की बात चर्चा में आ गई है।जोधपुर के फिल्मकार रोमियो राठौड़ ने राजस्थानी फिल्म से राजस्थानी भाषा को मान्यता देने की मांग की है। राजस्थानी भाषा बहुत समृद्ध है और इसे मामने वाले करोड़ों लोग हैं।सनसिटी के युवा फिल्म निर्माता रोमियो राठौड़ ने नई फिल्म के माध्यम से राजस्थानी भाषा को मान्यता दिलाने की मांग की है। राठौड़ ने फिल्म म्हारी मायड़ के माध्यम से भाषा के फायदे और उसकी उपयोगिता के बारे में जागरुक किया है। उन्होंने बताया कि इस भाषा को सवैंधानिक मान्यता नहीं मिलने के कारण युवा बेरोजगार बैठे हैं।

युवाओं ने ली मान्यता दिलाने की शपथ
इस फिल्म से प्रेरित होकर युवाओं ने शपथ लेते हुए सरकार से इसे मान्यता दिलाने की मांग की। फिल्म में दिनेश राजपुरोहित व मुस्कान डाबर सहित उन्होंने मुख्य भूमिकाएं निभाई हैं। निर्देशन दिनेश राजपुरोहित व मुकेश चौहान ने किया है। गीतकार मनोज भूरिया व सम्राट वर्मा हैं। फिल्म निर्माता जब्बरसिंह, गायक दीपक चौहान व सम्राट वर्मा और फोटोग्राफर अक्षय हैं। इसमें सिमरन खान, आयुषी हालदार, चित्रा सिंह, निधि दोहरे, अमृत प्रजा‍पत, ललित, प्रकाश, अशोक कुमार, दिनेश अग्रवाल, सोनू, विशाल, खीवराज, अनूप शर्मा, विकास शर्मा व सोहन धनारी का भी योगदान है।

वो सुनहरी यादें फिर से ताजा हैं

वो सुनहरी यादें फिर से ताजा हैं जब जोधपुर में राजस्थानी फिल्म फेस्टिवल का आयोजन किया गया था। पहला राजस्थानी फिल्म महोत्सव 12 मार्च 1993 से 15 मार्च 1993 तक जोधपुर के तत्कालीन दर्पण सिनेमा में आयोजित किया गया था। भारतीय सिनेमा के इतिहास का पहला राजस्थानी फिल्म महोत्सव जोधपुर के तत्कालीन दर्पण सिनेमा में आयोजित किया गया था। राजस्थान दिवस ? है तो उस फिल्म फेस्टिवल की खूबसूरत और हसीन यादें फिर से ताजा हो उठीं। यह फेस्टिवल कला त्रिवेणी संस्थान की पहल का नतीजा था। तब जहां दर्पण सिनेमा था, अब वहां एक शॉपिंग कॉम्पलैक्स है। उस फे स्टिवल के बाद जोधपुर में कभी भी राजस्थानी फिल्म फेस्टिवल नहीं हुआ। अगर हम यूं कहें तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि फिल्म इंडस्ट्री के इतिहास में यह फेस्टिवल संगे मील और एक लंबी लकीर की सी हैसियत रखता है।

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ये थे शीर्ष अभिनेता

उस फे स्टिवल में बॉलीवुड के जिन तीन अजीम फनकारों ने शिरकत की थी, वे तीनों ही अब इस दुनिया में नहीं रहे। ये थे जोधपुर मूल के शीर्ष अभिनेता और कवि महीपाल, अपनी फिल्म रेशमा और शेरा की जोधपुर के ओसियां में शूटिंग करने वाले महान अदाकार सुनील दत्त और सार्थक सिनेमा के अजीम अदाकार फारूक शेख़। फेस्टिवल में उस दिन अदाकारा दिव्या भारती को भी आना था, लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था और 12 मार्च 1993 को ही उनका मुंबई में निधन हो गया था।

खूबसूरत वेला, सुनहरी यादें

फेस्टिवल का उदघाटन दर्पण छविगृह में सुनील दत्त व संस्थान के संरक्षक पूर्व सांसद गजसिह ने किया था। तब राजस्थानी फिल्मों के 50 वर्ष हुए थे। पहली ब्लैक एंड व्हाइट राजस्थानी फिल्म नजऱाना हिन्दी व राजस्थानी में अनुपम फिल्म मुम्बई..निर्देशन व संगीत जी.पी कपूर कलाकार सुनयना, ललिता देवी,सेंसर बोर्ड से मारवाड़ी फिल्म के रूप में पारित हुई थी। उस यादगार आयोजन से पहले लगभग 25 गोष्ठियां हुई थीं।

साथ निभाया था

जोधपुर फिल्म सोसाइटी के तत्कालीन सचिव स्व. मोहनस्वरूप माहेश्वरी व जगदेव सिंह खालसा, निर्माता निर्देशक रामराज नाहटा व नाहटा बन्धु, अभिनेता महीपाल, निर्माता निर्देशक बोहरा ब्रदर्स फिल्म वितरक श्याम जालानी ने साथ निभाया था। उस वेला में राजस्थान की प्रथम फिल्म वितरक सिने संस्थान जार्ज सिने सर्किट भी बनी थी साक्षी।

फिल्में प्रदर्शित की गई थीं

फेस्टिवल के चार दिन के कार्यक्रम के दौरान तीन सत्र हुए थे। दर्पण सिनेमा हॉल में फिल्में प्रदर्शित की गई थीं। रोजाना तीन फिल्में दिखाई जाती थीं। जहां सिनेमाहॉल में फिल्में दिखाई जा रही थीं, वहीं टाउन हॉल में सांस्कृतिक कार्यक्रम हो रहे थे तो उम्मेद अस्पताल के मिनी ऑडिटोरियम में नियमित विचार गोष्ठियां हो रही थीं। फिल्म पे्रमी दर्शकों के लिए यह एक खूबसूरत, सुनहरे और यादगार लम्हे थे।

जो आज भी याद किया जाता है

तब तत्कालीन संभागीय आयुक्त ललित कोठारी, तत्कालीन जिला कलक्टर सुनील अरोड़ा, जिला पुलिस के अधिकारियों ,पत्रकारों व लगभग सभी कला प्रेमियों व कलाकारों के पूण सहयोग से यह महोत्सव एक यादगार प्रस्तुति रहा, जो आज भी याद किया जाता है। आयोजन में अध्यक्ष जे के व्यास, संस्थापक सचिव सुशील व्यास, संयोजक राजेन्द्र व्यास, स्वागत टीम ज्ञानेश बन्टी लक्ष्मीनारायण ने जो समां सजाया, वो आज भी भुलाए नहीं भूलता।

आपको आना है बार-बार

उस समय उम्मेद अस्पताल ऑडिटोरियम में आयोजित विचार गोष्ठी में अभिनेता फारूक शेख को मंच पर बुलाते समय आयोजक और मंच संचालक सुशील व्यास ने फिल्म उमराव जान के गीत का यह शेर पढ़ा था:

इस अंजुमन में आपको आना है बार-बार

दीवार-ओ -दर को गौर से पहचान लीजिए

फारूक शेख ने यह वादा निभाया और वे जोधपुर बाद में भी बार-बार आए। लेकिन फेस्टिवल के दरो-दीवार दुबारा नजर नहीं आए।
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तो राजस्थानी फिल्मों की दशा सुधर सकती है

बहरहाल राजस्थानी फिल्म निर्माता निर्देशक और दर्शक चाहते हैं राजस्थान सरकार मध्यप्रदेश फिल्म विकास निगम की तरह न केवल राजस्थान फिल्म विकास निगम बनवाए, बल्कि राजस्थानी फिल्मों के निर्माण और प्रदर्शन के प्रति भी सकारात्मक रुख अपनाए तो राजस्थानी फिल्मों की दशा और दिशा सुधर सकती है।