scriptजेलों की ऊंची दीवारों और सींखचों के पीछे क्यों उबल रहा कैदियों का गुस्सा | Why the heat of prisoners boiling behind the high walls of the prisone | Patrika News

जेलों की ऊंची दीवारों और सींखचों के पीछे क्यों उबल रहा कैदियों का गुस्सा

locationजोधपुरPublished: Oct 11, 2018 03:25:20 am

Submitted by:

yamuna soni

जोधपुर और पाली की घटनाओं ने खोली प्रदेश की जेलों की हालत की पोल

Why the heat of prisoners boiling behind the high walls of the prisone

jodhpur central jail

यमुनाशंकर सोनी

जोधपुर की सेंट्रल जेल और पाली की जेल में हाल में हुए घटनाक्रम से पता चलता है कि जेलों की ऊंची दीवारों और सींखचों के पीछे सब कुछ ठीक नहीं है। यह उम्मीद भी टूट रही है कि जेलें सजा काटने की जगह नहीं, अपराधी को अपने किए पर पश्चाताप और उसकी मानसिकता में सुधार का अवसर देने के लिए हैं।
आए दिन होने वाली ऐसी घटनाओं से उन हजारों परिजन को कितनी पीड़ा होती होगी जो परिवार के एक सदस्य के जेल में होने से पहले ही सामाजिक, आर्थिक और मानसिक कष्ट भोग रहे होते हैं।
पहली घटना जोधपुर सेंट्रल जेल की है जहां मादक पदार्थ की तस्करी के मामले में जोधपुर जेल में बारह साल की सजा काट रहा कैदी जेल में जातिवाद, भ्रष्टाचार और कैदी व बंदियों के साथ भेदभाव के विरोध में 30 सितंबर से अनशन पर था।
सवाल यह है कि यह नौबत क्यों आई और जेल प्रशासन ने उसकी शिकायतों पर गौर क्यों नहीं किया? अनशन के दौरान उसकी तबीयत खराब हो गई और उसे अस्पताल ले जाया गया। अस्पताल में कैदी मल्लाराम ने संवाददाताओं को दो जेलकर्मियों का नाम लेते हुए उनसे जान को खतरा बताया। कैदी के भाई का आरोप है कि कुछ दिन पहले मल्लाराम का वजन करीब सौ किलो था जो घटकर करीब चालीस किलो रह गया है।
दूसरी, पाली कारागृह की है। वहां तीस से अधिक बंदियों ने जेल के कम्पाउण्डर व प्रहरियों पर हमला बोल दिया और जेल का दरवाजा तोडऩे का प्रयास किया। उन्हें काबू करने के लिए पुलिस बुलानी पड़ी। जेलर के अनुसार हत्या के मामले में बंद एक बंदी ने सुबह कम्पाउण्डर से नींद की गोली मांगी। कम्पाउण्डर ने मना किया तो बंदी ने उस पर हमला कर दिया और बीच-बचाव करने आए मुख्य प्रहरी व अन्य प्रहरी के साथ भी मारपीट की।

ऐसी घटनाएं जोधपुर और पाली ही नहीं, प्रदेश की कई जेलों में आए दिन होती रहती हैं। देशभर की जेलों का हाल भी इनसे अलग नहीं है। यही वजह है कि सुप्रीम कोर्ट की गत 30 मार्च को सख्त टिप्पणी ने देश का ध्यान खींचा। सुप्रीम कोर्ट का कहना था, ‘जेल में कैदियों को जानवरों की तरह नहीं रखा जा सकता। उनके भी मानवाधिकार हैं। आप उन्हें ठीक तरह नहीं रख सकते तो बाहर कर दीजिए।’ सुप्रीम कोर्ट ने हैरानी जताई कि एक हजार से अधिक जेलों में कैदियों की निर्धारित संख्या से डेढ़ सौ से छह सौ प्रतिशत तक कैदी ज्यादा हैं।
क्षमता से अधिक बंदी/कैदी और इनके मुकाबले प्रहरियों व अन्य स्टाफ की कम संख्या के साथ पर्याप्त संसाधनों की कमी जेलों में अव्यवस्था की मुख्य वजह है। जेल महानिदेशालय की 28 फरवरी तक की रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश की नौ सेंट्रल जेल, 26 जिला जेल और 60 सब जेलों सहित 96 जेलों में 36 ऐसी हैं जिनमें क्षमता से कहीं ज्यादा बंदियों को ठूंस-ठूंस कर रखने की मजबूरी है।
इन जेलों में कुल 20540 बंदियों की क्षमता है। लेकिन कई जेलों में क्षमता से डेढ़ सौ से दो सौ फीसदी कैदी हैं। एक तथ्य यह भी है कि सजायाफ्ता से विचारधीन बंदियों की संख्या ज्यादा है। उदाहरण के लिए पाली जेल में 69 बंदियों को रखने की क्षमता है, लेकिन वहां 150 बंदी बंद हैं।
एक तरफ जेलें बंदियों से ठसाठस भरी हैं, दूसरी तरफ प्रदेश में 15 कैदियों पर एक प्रहरी तैनात है। प्रहरियों की नई भर्ती के बाद 11 कैदियों पर एक प्रहरी हो जाएगा, तब भी प्रहरियों के छह सौ पद रिक्त ही रहेंगे। प्रदेश में नई जेलें बनाने का मामला भी घोषणाओं से आगे नहीं बढ़ पा रहा। सरकार को समय रहते इस समस्या का समाधान करना होगा अन्यथा हालात और बेकाबू हो जाएंगे।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो