कविता वस्तुत: स्व की अभिव्यक्ति उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा कि मेरे विचार से कविता वस्तुत: स्व की अभिव्यक्ति होती है, परन्तु यह स्व भी इस समष्टि का ही स्वरूप है। अत: वह समाज की अवहेलना नहीं कर सकता। न ही कवि आँख मूंद कर रह सकता है। कविता के लिए समाज का होना जरूरी है।आज के समाज में सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक, आर्थिक और सांस्कृतिक चुनौतियाँ हैं। अत: समकालीन कविता के विषय बदल गए हैं। आज घुटन ,दर्द व विरोध की कविता है। एक वाक्य में कहूँ तो समकालीन कविता सच की कविता है। आज की कविता रिश्तों को बचाने की कविता है।
वही कविता आज की बेहतर कविता चौहान ने कहा कि समकालीन कविता को चंद शब्दों में परिभाषित करना कठिन काम है। समाज में इतनी चुनौतियां कभी नहीं रहीं, जितनी आज हैं। आज आम आदमी उनसे जूझते जूझते खो गया है।आम आदमी की चुनौतियों को जो शब्द दे, स्वर दे, उसे हौले से सहलाते हुए अंधेरे से बाहर लाए, जो चोट भी करे और प्यार भी करे, वही कविता आज की बेहतर कविता होगी। जूझते मनुष्य की संवेदनाओं को जीवित रख सके,वही कविता सफल होगी। ऐसा मेरा मानना है। साहित्य में आलोचना का विशेष स्थान है।आलोचक की समीक्षा को पाजीटिव लेना चाहिए।लेखक को समीक्षा पर पैनी नजर रखनी चाहिए और उस पर चिंतन भी करना चाहिए।
समाज में फैली विद्रूपता उजागर करना है उन्होंने कहा कि चूंकि मैंने बाल साहित्य बहुत लिखा है। मेरे साहित्य का उद्देश्य नैतिकता व जीवटता को स्थापित करना है।मैं मानती हूँ कि बचपन में ही बालक में श्रेष्ठ विचारों का रोपण कर दिया जाए तो समाज की बहुत सी समस्याओं से निजात पाई जा सकती है। इससे आत्महत्या की प्रवृत्ति कम होगी। मुझे अपनी कहानियों से समाज में फैली विद्रूपता को उजागर करना है।
अभी बहुत कुछ लिखना बाकी है चौहान ने कहा कि मेरे पात्र स्थितियों से लड़ते हैं और विजयी होते हैं। अपनी कविताओं और$ गज़लों के माध्यम से भी यही कहना चाहती हूं। एक बेचैनी है जो निरंतर टीस देती है। शायद अंत तक संतुष्ट नहीं हो पाऊं। मुझे लगता है कि अभी तो मैंने सहित्य में कदम रखा है। बड़े- बड़े लेखकों कवियों, गीतकारों व शायरों को पढ़ती हूं तो लगता है कि अभी बहुत कुछ लिखना बाकी है।