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दैत्यराज बाणासुर ने की थी वाणेश्वर महादेव मंदिर की स्थापना

- नारायणपुर मंदिर में शिव की पूजा करने जाता था बाणासुर- जन्मेजय के पुत्र परीक्षित ने कराया जीर्णोद्धार- द्वापर युग के इस मंदिर में जलाभिषेक से दूर हो जाते हैं रोग

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Daitya Raj Banasur established temple of Visheshwar Mahadev

दैत्यराज बाणासुर ने की थी वाणेश्वर महादेव मंदिर की स्थापना

कानपुर देहात. सावन माह में वाणेश्वर महादेव मंदिर में हर रोज हजारों भक्त पहुंचते हैं। कानपुर देहात के रूरा नगर से उत्तर पश्चिम दिशा में 7 किलोमीटर दूर पर रूरा -रसूलाबाद मार्ग पर स्थित वाणेश्वर महादेव मंदिर की स्थापना दैत्यराज वाणासुर ने की थी। द्वापर युग में स्थापित इस मंदिर की बहुत मान्यता है। सावन महीने में मंदिर के विशालकाय शिवलिंग पर जलाभिषेक करने से सभी रोग दूर हो जाते हैं।

पौराणिक इतिहास है वाणेश्वर महादेव मंदिर का

पौराणिक वाणेश्वर महादेव मंदिर के बारे में इतिहास लेखक प्रो. लक्ष्मीकांत त्रिपाठी लिखते हैं कि सिठऊपुरवा (श्रोणितपुर) दैत्यराज वाणासुर की राजधानी थी। दैत्यराज बलि के पुत्र वाणासुर ने मंदिर में विशाल शिवलिंग की स्थापना की थी। श्रीकृष्ण वाणासुर युद्ध के बाद स्थल ध्वस्त हो गया था। परीक्षित के पुत्र जन्मेजय ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराकर वाणपुरा जन्मेजय नाम रखा था, जो अपभ्रंश रूप में बनीपारा जिनई हो गया। मंदिर के पास शिव तालाब, टीला, ऊषा बुर्ज, विष्णु व रेवंत की मूर्तिया हैं। यहां 1 मीटर ऊंचे आधार (अर्धा ) पर लगभग 50 सेंटीमीटर ऊंचा शिवलिंग स्थापित है जो अपने में अद्वितीय है। महाशिवरात्रि के अवसर पर इस देवालय पर पंद्रह दिवसीय मेले का प्रति वर्ष आयोजन होता है। इस अवसर पर जालौन ,बांदा ,हमीरपुर तथा कानपुर देहात के पैदल तीर्थ यात्री गंगा जल भर कर अपनी- अपनी कांवर के साथ जलाभिषेक के लिए लोधेश्वर महादेव जिला बाराबंकी जाते हैं और वापस आकर वाणेश्वर महादेव का जलाभिषेक करते हैं।

सुरंग रास्ते जाकर करता था शिव की पूजा

बताते हैं कि नारायणपुर सोडितपुर गांव में द्वापर युग में दैत्यराज बाणासुर का निवास था। यहां उसने विशाल किले का निर्माण करवाया था। यह किला 70 बीघे के क्षेत्रफल में फैला था। किले में बाणासुर का परिवार रहता था। बाणासुर भगवान शिव का बहुत बड़ा भक्त और पुजारी था। बाणासुर लंबी सुरंग के रास्ते पैदल चलकर बाणेश्वर शिव मंदिर जिनई बानीपारा में भगवान शिव को जलाभिषेक करने जाता था। आज भी बारिश के मौसम में शिवमंदिर को जाने वाली सुरंग खेतों में दिख जाती है। उस समय बाणासुर के महल के आसपास सैकड़ाभर से अधिक कुएं थे। उनमें से आज भी 41 कुएं मौजूद हैं। बाणासुर का किला तो अब ध्वस्त हो गया है लेकिन उसके अवशेष मौजूद हैं। बारिश के मौसम के यहां खेरे पर मानव कंकाल, टूटी-फूटी बहूमूल्य मूर्तियां, मिट्टी के बर्तन आदि देखने को मिल जाते हैं। मंदिर के पास एक विशाल तालाब भी हुआ करता था। इतिहास के पन्नों में दर्ज सोणितपुर अब नारायणपुर के नाम से जाना जाता है। लेकिन, प्रशासनिक अनदेखी के चलते यह प्राचीन पौराणिक किला अब अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है।

कैसे पहुंचे वाणासुर महादेव

वाणासुर महादेव पहुंचने के लिए रूरा रेलवे स्टेशन से बस या टैक्सी के माध्यम से पहुंचा जा सकता है। अम्बियापुर रेलवे स्टेशन से उत्तर दिशा में 4 किलोमीटर की दूरी पर यह मंदिर स्थित है। झींझक रेलवे स्टेशन से उतर कर रोड द्वारा मिंडा का कुंआ से होकर वाणेश्वर महादेव मंदिर पहुंच सकते है। रसूलाबाद कस्बे से इस मंदिर की दूरी 20 किलोमीटर है। बिल्हौर रेलवे स्टेशन से उतर कर रसूलाबाद होकर इस मंदिर तक पहुंचा जा सकता है।