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कृष्ण ने करप्शन के खिलाफ छेड़ी लड़ाई, RTI टी स्टॉल के जरिए कर रहे हैं जागरूक

कृष्ण मुरारी हाइवे पर बैठकर गांववालों में RTI की क्रांति लाने में जुटे हैं। कभी खुद सरकारी नौकर रहे कृष्ण मुरारी करप्शन से परेशान होकर अब जरूरतमंदों को जागरूक कर रहे हैं।

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Sujeet Verma

May 05, 2016

RTI

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विनोद निगम
कानपुर.परिंदों को नहीं दी जाती तालीम उड़ानों की। वो खुद ही तय करते मंजिल आसमानों की, रखता है जो हौसला आसमान को छूने का, उसको नहीं होती परवाह गिर जाने की। दुनिया की हर चीज ठोकर लगने से टूट जाया करती है, एक कामयाबी ही है जो ठोकर खा के ही मिलती है। यह पंक्तियां शहर से 25 किमी दूर चौबेपुर ब्लॉक के कृष्ण मुरारी पर सटीक बैठती हैं।

कृष्ण मुरारी हाइवे पर बैठकर गांववालों में RTI की क्रांति लाने में जुटे हैं। कभी खुद सरकारी नौकर रहे कृष्ण मुरारी करप्शन से परेशान होकर अब जरूरतमंदों को जागरूक कर रहे हैं। वे हर रोज एक चाय की दुकान पर जाकर राइट-टू-इन्फोर्मेशन की चौपाल लगाते हैं। कानपुर के निवासी कृष्णा मुरारी यादव को उनके चाहने वाले एम भाई के नाम से बुलाते हैं।

मुरारी पिछले 3 साल से गांव-गांव जाकर युवाओं को सूचना के अधिकार की जानकारी दे रहे हैं। उनका मानना है कि इस जनहित कानून की जानकारी शहरी वर्ग तक सीमित है। इसी वजह से गांव में काम करने वाले किसान, छोटी दुकानवाले, सब्जी बेचने वाले और अन्य गरीब वर्ग के लोग इसका फायदा नहीं उठा पाते।

कृष्णा मुरारी ने इस काम के लिए चाय की दुकानों को अपना टारगेट बनाया है, जहां सबसे ज्यादा युवाओं की भीड़ होती है। कृष्णा मुरारी यादव आरटीआई टी स्टाल का मकसद है कि जो लोकतंत्र का कानून है, उसे समाज के सबसे निचले तबके तक ले जाया जाए। किसानों और मजदूरों के पास वक्त के साथ पैसा की भी कमी होती है। ऐसे में इन नियमों की जानकारी न होने से उन्हें काफी नुक्सान उठाना पड़ता है। मुरारी का मकसद है ऐसे लोगों को सूचना के अधिकार की जानकारी देना और उनकी समस्याओं का समाधान करना है।

करप्शन ने किया परेशान तो किया रिजाइन
मुरारी कानपुर यूनिवर्सिटी से पोस्ट ग्रेजुएट हैं। 2008-10 में उन्होंने राज्य सरकार के अधीन एन्ट्रेप्रिन्योर डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट में डिस्ट्रिक्ट कोऑर्डिनेटर के पद पर रहे। वहां पर करप्शन से परेशान होकर इन्होंने सरकारी जॉब छोड़ दी। नौकरी छोड़ने के बाद मुरारी ने यूपी में चलने वाले घूस का घूसा अभियान में कूद पड़े। इस बीच वे आरटीआई का भी अध्ययन करते रहे। 2013 से मुरारी ने अपना फोकस जनता में आरटीआई को प्रमोट करने पर कर दिया।

मुरारी ने शहरी इलाकों की जगह ग्रामीण इलाकों में प्रमोशन करने की ठानी। कृष्णा मुरारी ने अपने प्रोजेक्ट के बारे में बताया कि शुरुआत में गांव-गांव जाकर दौरा करता था। गांववालों के बीच आरटीआई के फॉर्म और भरने के तरीके व फायदे वाला पैम्प्लेट बांटता था। आज मेरे पास कानपुर जिले के साथ-साथ कई जिलों के लोग इस नियम की डीटेल्स जानने के लिए आते हैं।

पहले किया हमला, अब आरटीआई यूज करते हैं
प्रोजेक्ट की स्टार्टिंग में लोग इनके ऊपर हंसते थे। वे सोचते थे कि एक एप्लीकेशन देने से क्या होगा? जैसे-जैसे आरटीआई से लोगों को फायदा होने लगा, वे इसकी अहमियत समझने लगे। मुरारी ने बताया कि बीच में कुछ गांववालों ने उस पर हमला कर दिया था। मगर अब सभी मेरी बात मानते हैं और आरटीआई का यूज करते हैं।

आरटीआई की इस यूनीक चौपाल से गांववालों के साथ ही चाय की दुकानवालों का भी फायदा हो रहा है। महंगू राम नाम के टी-स्टॉल ओनर के यहां मुरारी संडे को चौपाल लगाते हैं। महंगू राम ने बताया, मुझे ये तो नहीं पता कि ये क्या करते हैं। बस इसी बात की ख़ुशी होती है कि हर रविवार इनके यहां आने से यहां कई घंटे तक ग्राहकों की लाइन लगी रहती है। वे घंटें तक लोगों को सूचना के बारे में बताते रहते है।

सराहनीय काम, महिलाओं भी आगे आएं
इस चौपाल में आए पेशे से इंजीनियर अशरफ खान ने बताया, इस चौपाल में आने से यह जानकारी मिली कि अगर हम सरकारी डिपार्टमेंट्स से किसी भी प्रकार की जानकारी निकलवा सकते हैं। इनका ये प्रयास बहुत अच्छा है। ज्यादा से ज्यादा लोगों को इनसे जुड़ना चाहिए।

अशरफ ने बताया कि गांव में अभी जागरूकता की कमी है। लोगों में शिक्षा की कमी है। लोग अपने अधिकारों के प्रति अभी जागरूक नहीं हैं। ग्रामीण जनता इनसब चीजों में निष्क्रिय होती है, उनको सक्रीय करना जरुरी है। मुरारी यादव के साथ शुरू से जुड़े किशन व्यास कोऑर्डिनेटर का काम करते हैं। इनके मुताबिक़ काफी लोग आगे आए है, मगर ग्रामीणों में थोड़ी समझ की कमी है। इस मुहीम में ग्रामीण महिलाओं की भागीदारी भी बिल्कुल नहीं है। इन्हें हम इस प्रोजेक्ट से जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं।

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