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ये कैसी प्रथा : अपनों की उपेक्षा का शिकार हुए लोग पितृ पक्ष में खुद करा रहे अपना श्राद्ध

इस समय चल रहे हैं पवित्र पितृ पक्ष के दिन. ऐसे में इन दिनों आपने लोगों को अपने पूर्वजों की आत्मशांति के लिए उनका श्राद्ध करते देखा होगा. इन खास दिनों में लोग श्राद्ध और तर्पण कर पूर्वजों के प्रति अपना लगाव भी दर्शाते हैं, लेकिन, क्या आप जानते हैं कि अब तमाम लोग अपनों से भरोसा टूटने पर जीते जी खुद का श्राद्ध करने के लिए घाट पर पहुंच रहे हैं.

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kanpur

ये कैसी प्रथा : अपनों की उपेक्षा का शिकार हुए लोग पितृ पक्ष में खुद करा रहे अपना श्राद्ध

कानपुर। इस समय चल रहे हैं पवित्र पितृ पक्ष के दिन. ऐसे में इन दिनों आपने लोगों को अपने पूर्वजों की आत्मशांति के लिए उनका श्राद्ध करते देखा होगा. इन खास दिनों में लोग श्राद्ध और तर्पण कर पूर्वजों के प्रति अपना लगाव भी दर्शाते हैं, लेकिन, क्या आप जानते हैं कि अब तमाम लोग अपनों से भरोसा टूटने पर जीते जी खुद का श्राद्ध करने के लिए घाट पर पहुंच रहे हैं. आपको भी ये सुनकर हैरानी होगी, लेकिन ये हकीकत है. वैसे आपको बता दें कि खुद गरुण पुराण में भी इस बात का जिक्र है.

ऐसी बताई गई है वजह
इस संबंध में पंडित एवं आचार्य उमेश शुक्‍ल बताते हैं कि कई बार उनके पास लोग खुद का श्राद्ध कराने के लिए आते हैं. इनमें से कुछ तो ऐसे भी होते हैं, जिनका इस दुनिया में कोई अपना नहीं होता. उन्हें इस बात की फिक्र होती है कि उनके मरने के बाद उनका श्राद्ध कौन करेगा. वहीं, दूसरी ओर कई ऐसे लोग भी होते हैं, जिनका भरापूरा परिवार है, लेकिन वो उनकी उपेक्षा का शिकार हैं. अपनों पर भरोसा न होने के कारण वो अपने जीते जी खुद का पूरे विधि विधान के साथ श्राद्ध करवाते हैं. पंडित के अनुसार इस तरह के श्राद्ध से भी वैसा ही फल मिलता है, जैसा कि किसी अपने के श्राद्ध करने से मिलता है.

ऐसी है पुरानी प्रथा
इस बारे में और जानकारी देते हुए पंडित शुक्‍ल बताते हैं कि खुद का श्राद्ध करने की भी पुरानी प्रथा है. उन्होंने बताया कि गरुण पुराण में इस बात का विस्तार से जिक्र भी है. ऐसा कोई व्यक्ति जिसकी संतान न हो या फिर वो संयासी हो गया है, अपने जीते जी खुद का श्राद्ध कर सकता है. वहीं दूसरी ओर वर्तमान समय में लोग अपने बच्चों के दूर चले जाने, उनके छोड़ जाने के कारण उनसे खफा होकर खुद का श्राद्ध कराने लगे हैं.

बताया है इसे घातक भी
वहीं दूसरी ओर पंडित शुक्‍ल ने अपनों से खफा होकर खुद के श्राद्ध की इस रीति को युवा पीढ़ी के लिए काफी घातक बताया है. उनका कहना है कि अगर जीते जी आपके माता पिता आपसे खुश नहीं रह पाए तो फिर उनकी मृत्यु के बाद उनके श्राद्ध का कोई फल नहीं मिलता है. उनके अनुसार मनुष्य के जीवन पर 3 ऋण होते हैं, जिसमें देवता, ऋषि और फिर पितृों का ऋण होता है. पितृ पक्ष में इन्हीं ऋणों का कुछ बोझ कम करने का प्रयास किया जाता है और सभी अपने सुख, समृद्धि की कामना करते हैं. उनका मानना है कि मन से किए गए श्राद्ध से खुश होकर पूर्वज अपना आशीर्वाद परिवार को प्रदान करते हैं.