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# भाजपा के इन लालकृष्ण आडवानी को आखिर क्या मलाल है !

पार्टी के वफादारों के अन्दर पैदा हो रही तिरस्कार की भावना आने वाले 2017 के उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव के लिए ये कोई शुभ संकेत नहीं कहा जा सकता है।

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vikas vajpayee

Sep 10, 2016

there are too many lal krishna adwani in BJP

there are too many lal krishna adwani in BJP

विकास वाजपेयी

कानपुर – कभी शहर और
प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी ही नहीं जन संघ की रीड़ की हड्डी होने वाले भारतीय
जनता पार्टी के जुझारू कार्यकर्ता आज पार्टी के आन्दर पनप रहे नए राजनीतिक समीकरण
में पिछे ढ़केले जा रहे है। हलांकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा के
राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के लिए पार्टी के वफादारों के अन्दर पैदा हो रही
तिरस्कार की भावना आने वाले 2017 के उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव के लिए ये कोई
शुभ संकेत नहीं कहा जा सकता है।

मोदी युग से शुरू हो
गयी पार्टी के अन्दर दो विचारधारा ?

1984 की चन्द सीटों
से 300 का आकड़ा पार कराने में जितना राम मंदिर का मुद्दा जिम्मेदार है उतना ही
पार्टी के उन कार्यकर्ताओं की लगन और मेहनत का नतीजा रहा जिन्होने प्रतिकूल
परिस्थितियों में भी कभी पार्टी का दमन नहीं छोड़ा।

हलांकि प्रधानमंत्री
नरेन्द्र मोदी के सत्तासीन होने के बाद भी यदि सबसे ज्यादा खुशी किसी को हुई तो वो
भारतीय जनता पार्टी के उन कार्यकर्ताओं को जिनके जीवन में पार्टी की विचारधारा
हमेशा पनपती रही।

एक समय राधेश्याम
पाण्डेय, कौशल किशोर दिक्षित, विजय सिहं सेंगर, सुरेश गुप्ता, राकेश सोनकर ,
रामदेव शुक्ला, दिनेश राय और रविन्द्र पाटनी शहर में पार्टी की रीड़ की हड्डी हुआ
करते थे।

हलांकि पार्टी में
अब ऐसे कई लोग है जो खुद को तिरस्क्रत महशूस कर रहे है, यहां तक कि पार्टी में आम
से लेकर खास होने वाले कार्यक्रम में भी इनको बुलाया नहीं जा रहा है और शायद
पार्टी को इन जुझारू कार्यकर्ताओं की शिथिलता आने वाले चुनावों में महगी पड़ सकती
है।

जनसंघ से लेकर
भारतीय जनता पार्टी तक

पार्टी के कई पुराने
जुझारू कार्यकर्ताओं का कहना है कि विधानसभा चुनावों की सारी तैयारियां हवा में की
जा रही है और चुनाव के समय में जब बाहर से आये लोगो को टिकट नहीं मिलेगा तो पार्टी
को मुसीबत उठानी पड़ सकती है।

शहर में कई ऐसे
पार्टी कार्यकर्ता है जो जनसंघ और छात्रसंघ के समय से पार्टी में काम कर रहे है।
एक कार्यकर्ता का कहना है कि यदि उनसे कोई काम नहीं लेकर उनका तिरस्कार किया
जाएंगा तो वो कहां जाएंगे।

पार्टी में पनप रही
नयी विचारधारा से पुराने कार्यकर्ता डरे सहमे है। शहर से मेयर का चुनाव जीतने वाले
रविनद्र पाटनी तो किसी पार्टी बैठक में दिखाई नहीं देते और ऐसे ही न जाने कितने
पार्टी के वफादार है जिनको दरकिनार करके मोदी युग का अहसास कराया जा रहा है।

स्वामी प्रसाद
मौर्या और दूसरे लोगो से पार्टी को क्या मिलेगा

पार्टी के कई
कार्यकर्ता अपने तिरस्कार की तुलना लाल कृष्ण आडवानी की दशा से करते है। हलांकि
ऐसी स्थित में 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में पार्टी के मंसूबे कैसे
परवान चढ़ेंगे।

पार्टी के एक जुझारू
कार्यकर्ता का यहा तक मानना है कि पार्टी में बिना काम किये जिस तरह से नये लोगों
को टिकट देने का समझौता किया जा रहा है उससे पार्टी की विचारधारा को आने वाले समय
में गम्भीर खतरा पैदा हो सकता है।

पार्टी में हो रहे
तिरस्कार से आहत एक वरिष्ठ नेता का तो यहां तक मानना है कि यदि 2017 के विधान सभा
चुनावों में पार्टी किसी दशा में सरकार बनाने की स्थित में नहीं पहुंची तो पार्टी
में सबसे पहले बगावत का बिगुल बाहर से आये नेता ही फूकेंगे।