
करौली में 1912 से हुआ था स्वतंत्रता आंदोलन का आगाज
करौली में 1912 से हुआ था स्वतंत्रता आंदोलन का आगाज
करौली में स्वतन्त्रता आंदोलन का आगाज सन 1912 में कुंवर मदन सिंह ने शुरू किया। ठाकुर पूरणसिंह के सहयोग से राज सत्ता की दमनकारी नीतियों के खिलाफ अहिंसात्मक संघर्ष को भरतपुर के गंगाप्रसाद शास्त्री ने गति प्रदान की।
करौली के पंचायती मंदिर (गोविन्द देवजी मंदिर) में गंगाप्रसाद शास्त्री द्वारा दिए गए उद्बोधन के बाद अनेक लोग पूरणसिंह के संघर्ष में साथ हुए। इसी क्रम में 11 जुलाई 1915 को पूरणसिंह की अध्यक्षता में सलेदी भवन में हुई बैैठक में एक पुस्तकालय स्थापित करने का निर्णय लिया गया। बाद में इसका नाम साहित्य परिषद रखा गया। यह संस्था करौली में स्वतन्त्रता आंदोलन की सूत्रधार मानी जा सकती है । कुंवर मदन सिंह, ठाकुर नारायणसिंह , मुंशी त्रिलोकचंद माथुर, परमसिंह एवं पंडित हुकमचंद इस संस्था के सक्रिय सदस्य थे।
करौली में कुंवर मदन सिंह ने राजसत्ता के विरुद्ध संघर्ष के लिए कदम बढ़ाते हुए नवम्बर 1921 को सेठ जमना लाल बजाज की अध्यक्षता में राजपूताना-मध्यभारत की दिल्ली में आयोजित बैठक में भाग लिया। 9 दिसंबर 1923 को राजस्थान समाचार पत्र में मदनसिंह के प्रकाशित लेख 'करौली राज्य में कानून भंग ' से उस वक्त में तहलका मच गया था।इसके बाद 28 फरवरी 24 को रियासत का काला कानून तोडऩे का संकल्प लेकर मदन सिंह एवं उनकी पत्नी सरदार कंवर ने अनशन प्रारम्भ करने की घोषणा कर दी। दूसरी ओर मुंशी त्रिलोकचंद माथुर ने मदन सिंह के काम आने के बाद स्वयं को अनशन के लिए बैठने का संकल्प लिया। जन आंदोलन के दबाव के बाद तत्कालीन शासक तीनों मांगों को मानने का विश्वास दिए जाने पर अनशन समाप्त कर दिया गया।इसी क्रम में 1924 में त्रिलोकचंद माथुर ने करौली में राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना करके सदस्यता अभियान चलाया। अगस्त 1927 मेें मदनसिंह के निधन के बाद आजादी आंदोलन का नेतृत्व त्रिलोकचंद माथुर ने संभाल लिया। उन्होंने वर्ष 1932 में करौली में झण्डा सत्याग्रह किया। इस दौर में जनवरी 1932 में महात्मा गांधीजी को बंदी बनाए जाने के विरोध में मदनमोहनजी मंदिर से एक जुलूस निकाला गया। तब यहां के शासन ने देश भक्तों से झंडे छिनवाए। इसके विरोध में करौली का बाज़ार तीन दिन बंद रहा।इतिहास में दर्ज है कि उस दौरान गांधी का नाम लेना और फोटो लगाना अपराध था। ऐसे में एक भड़भूजे द्वारा अपनी दुकान पर महात्मा गांधी की तस्वीर लगाने के अपराध में उस समय में 51 रुपए का जुर्माना लगाया गया था।
त्रिलोक चंद माथुर ने सन 937 में करौली में राज्य सेवक संघ का गठन किया। राज्य सेवक संघ के सदस्य जनता की समस्याओं को लेकर राज्य के दीवान से मिले। अप्रेल 1939 में करौली में प्रजामंडल का गठन हुआ। ठाकुर ओंकार सिंह करौली प्रजामंडल एवं कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष चुने गए।
इतिहास के अनुसार 30 नवम्बर1939 को राजपूताने के राज्यों के राष्ट्रीय कार्यकर्ताओं का सम्मेलन मथुरा में हुआ, जिसके संयोजक त्रिलोक चंद माथुर थे। जनवरी 1941 में त्रिलोक चंद माथुर का निधन हो गया। 1942 में सम्पूर्ण देश मेँ भारत छोड़ो आंदोलन की धूम रही। इस समय करौली में भी ठाकुर ओंकार सिंह के नेतृत्व में सभाएं ,जुलूस ,एवं प्रभात फेरियों का आयोजन होता था। नवंबर 1946 में करौली के पड़ोसी राज्यों के राजनैेतिक कार्यकर्ताओं का एक सम्मेलन हुआ ,जिसमें उत्तरदायी प्रशासन की स्थापना सम्बन्धी मांग प्रस्तुत की गई। इस अवधि में चिरंजी लाल शर्मा ,चौथीलाल मसान , पंडित पोथी लाल, किशन प्रसाद भटनागर, कल्याण प्रसाद गुप्ता, ठाकुर रामसिंह , शिवराज सिंह, रामगोपाल गुप्ता, मुरारी लाल शर्मा, भगवती पाराशर, रामहेत वैद्य, बहरदा के बोहरे सुदर्शन लाल शर्मा, मंडरायल के छगन लाल, सपोटरा के झंडू महाराज, नरसिंह दास, मासलपुर के किंदूरी लाल, भैरों राम, चैनपुर के नबावसिंह, कोकसिंह , प्रतापसिंह एवं अटा के भगवतसिंह ने जनजागरण का महत्वपूर्ण कार्य किया। जुलाई 1947 में करौली राज द्वारा 11 सदस्यी एक प्रशासनिक सुधार कमेटी बनाई गई, जिसमें प्रजा मण्डल के दो सदस्य थे।
15 अगस्त ,1947 को देश आजाद हुआ तो करौली में सभी देश भक्तों ने मिलकर अनाज मंडी में पोस्ट आफिस के निकट भवन में जश्न मनाया। चिरंजी लाल शर्मा ने वहां तिरंगा झण्डा फहराया। मिठाई वितरण के बाद करौली नगर के बाजार में जुलूस निकाला गया। जनता में खुशी की लहर दौड़ गइ। करौली के साथ रियासत के प्रमुख कस्बों सपोटरा , मंडरायल एवं मासलपुर में आम जनता द्वारा चन्दा एकत्रित करके आजादी का उत्सव मनाया गया।
Published on:
15 Aug 2022 12:02 pm
बड़ी खबरें
View Allकरौली
राजस्थान न्यूज़
ट्रेंडिंग
