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स्वीकृत राशि से कम रेट पर निकाली निविदा, घटिया काम को सरकारी सह

Tender taken out at a rate less than the approved amount, substandard work will be supported by the government 20 से 22 प्रतिशत बिलो रेट पर पीडब्ल्यूडी कराएगी पांच सड़कों का निर्माण. गुणवत्ता पर उठेंगे सवाल

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स्वीकृत राशि से कम रेट पर निकाली निविदा, घटिया काम को सरकारी सह

स्वीकृत राशि से कम रेट पर निकाली निविदा, घटिया काम को सरकारी सह

हिण्डौनसिटी. सड़क निर्माण हो या भवन निर्माण। क्षेत्र में अधिकांश काम अनुमान से कम लागत पर पूरे कराए जा रहे हैं। विचार योग्य यह है कि गुणवत्ता के साथ यह समझौता नियमानुसार चल रहा है। जिम्मेदार भी यही मान रहे हैं कि यही सिस्टम है, लेकिन बिलो रेट (कम पैसे में) पर टेंडर और उसके बाद घटिया काम का खामियाजा सही मायने में आमजन को भुगतना पड़ता है।

बिलो रेट पर काम होने का यह प्रतिशत एक या दो नहीं बल्कि 20 से 30 प्रतिशत या इससे अधिक भी हो सकता है। काम होने के बाद संवेदक करीब 20 प्रतिशत राशि ही के कर्मचारी-अधिकारियों तक रिश्वत के रुप में बांटता है। आश्चर्यजनक बात यह है कि कुल इस्टीमेटेड रेट का 40-45 फीसदी हिस्सा सिर्फ बिलो राशि (कम पैसे में) और कमीशनखोरी में खर्च हो जाता है। फिर ठेकेदार गुणवत्तापूर्ण निर्माण कार्य कैसे कर सकता है, यह एक बड़ा सवाल है। राजस्थान पत्रिका की पड़ताल में यह पता चला है कि, इलाके की ज्यादातर सड़क, भवन, नाली, सौंदर्यीकरण या अन्य निर्माण कार्यों में बिलो राशि टेंडर हुए है। इसी का नतीजा है कि सड़के बनने के साथ ही उखडऩे लगती है। भवन बनने कुछ समय बाद ही जर्जर होकर गिरने लगते हैं। भ्रष्टाचार के इस सिस्टम को बदलने की जरुरत है, लेकिन जिम्मेदार अभियंताओं से लेकर अधिकारी और जन प्रतिनिधि इसके लिए संजीदगी नहीं दिखा रहे।

पीडब्ल्यूडी ने बिलो रेट पर जारी किए सड़क निर्माण के टेंडर-

सार्वजनिक निर्माण विभाग के हिण्डौन खण्ड कार्यालय ने हाल ही में शहर को सैंकडों गावों से जोडऩे वाले झारेड़ा मार्ग पर 5 किमी लंबी सड़क निर्माण के लिए
निविदा जारी की हैं। सूत्रों के अनुसार सड़क निर्माण के लिए स्वीकृत राशि 200 लाख रुपए हैं। लेकिन विभाग द्वारा की गई ऑनलाईन टेंडर प्रक्रिया में संवेदक ने 20.56 प्रतिशत बिलो (कम पैसे में)में इस काम को लिया है। इस पर विभाग की ओर से संवेदक को सड़क निर्माण के लिए 135. 85 लाख रुपए के कार्यादेश जारी किए गए हैं। इसके अलावा मुकंदपुरा रोड़ पर 2.9 किमी, आलावाड़ा रोड़ पर 1.5 किमी, हरीनगर व पीपलहेड़ा में 1-1 किमी लम्बाई में सड़कों के निर्माण के लिए 116 लाख रुपए की राशि स्वीकृत है, लेकिन विभाग द्वारा संवेदक को 21.99 प्रतिशत बिलो (कम पैसे में) में निविदा जारी की हैं। जिस पर संवेदक को चारों सड़कों के निर्माण के लिए 77.37 लाख रुपए के कार्यादेश जारी किए हैं।

पहले 31 प्रतिशत बिलों में हुए टेंडर तो छोड़ भागा ठेकेदार-
सूत्रों के अनुसार मार्च माह में सार्वजनिक निर्माण विभाग द्वारा इसी झारेड़ा रोड़ पर सड़क निर्माण के लिए 1 करोड़ 71 लाख रुपए की ऑनलाइन निविदा आमंत्रित की गई थी। जिसके बाद खुली निविदा में संवेदक राकेश कुमार ने 31.91 प्रतिशत बिलो (कम पैसे में) 1 करोड़ 16 लाख रुपए में सड़क निर्माण करने की सहमति देकर टेंडर अपने नाम करा लिया था। लेकिन जब कार्यारंभ करने की बारी आई तो संवेदक को आभाष हुआ कि 31.91 प्रतिशत ब्लो यानि 54 लाख 56 हजार 610 रुपए कम पैसों में गुणवत्तापूर्ण सड़क निर्माण कैसे पूरा होगा। घाटे की आशंका में संवेदक ने स्वास्थ्य संबंधी बहाना बना सड़क निर्माण करने में असमर्थता जाहिर कर हाथ खींच लिए। यही कारण है कि विभाग को फिर से निविदा जारी करनी पड़ी है। लेकिन अबकी बार भी संवेदकोंं ने 20 से 22 प्रतिशत बिलो में टेंडर लिए हैं, तो सडक निर्माण की गुणवत्ता पर सवाल उठना तो तय है।

यह है बिलो रेट का गणित-
प्रतिस्पर्धा के कारण संवेदकोंं अनुमानित लागत से कम पर टेंडर भरते हैं। जिसका रेट सबसे कम होता है, विभाग उसे काम देता है। हिण्डौन में यह मूल लागत से 5 से लेकर 35 प्रतिशत तक कम है। जो निर्माण कार्यों की गुणवत्ता के लिए खतरनाक है। उदाहरण के तौर पर एक करोड़ रुपए में सड़क निर्माणकरना है। ठेकेदार ने 30 प्रतिशत कम रेट पर टेंडर डाला। बिलो होने पर उसे काम मिल जाएगा। 70 लाख रुपए में एक करोड़ का काम होगा। इसी 70 लाख रुपए में कमीशन बंटेगा। ठेकेदार अपना मुनाफा भी निकालेगा। बचे हुए 30 लाख रुपए विभाग के पास रहतें है। जिसे अन्य कार्य में खर्च किया जाता है। जो कि व्यवहारिक नहीं होता।

बिलो रेट ज्यादा हो तो काम करना मुश्किल-
नाम नहीं छापने की शर्त पर एक ठेकेदार ने बताया कि संवेदकों के बीच होड की वजह से बिलो राशि पर टेंडर होता है। 5-10 प्रतिशत बिलो राशि हो तो काम हो जाता हैै। अगर 15 से 20 या उससे अधिक 30 प्रतिशत बिलो हो तो काम करना मुश्किल हो जाता है। निर्माण कार्य की गुणवत्ता भी ठीक नहीं रहती। काम के नाम पर महज खानापूर्ति की जाती है।अधिकारी भी रिश्वत मिलने के कारण कोई कदम नहीं उठाते। ऐसे में बिलो टेंडर पर बनी हुई सड़क या भवन समय से पहले ही टूट जाते हैं।

इनका कहना है-
बिलो रेट पर संवेदक ने टेंडर लिया है, तो उसकी जिम्मेदारी है। हम तो सड़क निर्माण तय मापदंडों के मुताबिक और गुणवत्तापूर्ण ही कराएंगे। संवेदक को घाटा हो या फिर मुनाफा, इससे विभाग को कोई सरोकार नहीं।

-गजानंद मीणा, अधिशासी अभियंता, सार्वजनिक निर्माण विभाग, खण्ड- हिण्डौनसिटी।