चुनाव आयोग ने सबसे पहले वर्ष 2014 में इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीन में नोटा की सुविधा प्रदान की थी। इस मुख्य उद्देश्य मतदाताओं को एक ऐसा विकल्प प्रदान करना है जिसके तहत वह भले ही किसी प्रत्याशी को अपने प्रतिनिधि के रूप में न चुनें लेकिन मतदान प्रक्रिया का हिस्सा बनने के लिए मतदान केंद्र तक जरूर जाएं।
चुनाव आयोग से मिली जानकारी के अनुसार हरियाणा में पिछले पांच वर्षों के दौरान हुए चुनाव में बहुत कम लोग ऐसे हैं जिन्होंने नोटा का इस्तेमाल किया है। इसी साल मई माह के दौरान हुए लोकसभा चुनाव के दौरान 53.7 लाख के करीब मतदाताओं ने वोट नहीं डाले। इसके उलट हरियाणा में कुल 41 हजार 781 मतदाताओं ने नोटा का इस्तेमाल किया। मतलब साफ है कि 52 लाख से अधिक मतदाता पोलिंग बूथ तक नहीं पहुंचे।
लोकसभा चुनाव के दौरान अंबाला लोकसभा क्षेत्र में सबसे अधिक 7943 मतदाताओं ने और सबसे कम 2041 ने भिवानी-महेंद्रगढ़ लोकसभा क्षेत्र में नोटा का इस्तेमाल किया। हरियाणा में नोटा के इस्तेमाल की प्रतिशत्ता जहां 0.33 प्रतिशत रही वहीं देशभर में यह 1.04 प्रतिशत थी। इससे पहले वर्ष 2014 में हुए लोकसभा चुनाव के दौरान मतदान प्रक्रिया में हिस्सा लेने वाले हरियाणा के करीब एक करोड़ 15 लाख मतदाताओं में से 34 हजार 225 मतदाताओं ने नोटा का इस्तेमाल किया। आंकड़ों से साफ पता चलता है कि वर्ष 2014 में केवल 0.30 प्रतिशत मतदाता ही प्रत्याशियों को खारिज करने के लिए मतदान केंद्र तक पहुंचे। जबकि पिछले लोकसभा चुनाव में 45.9 लाख से अधिक मतदाता ऐसे थे जिन्होंने अपने मताधिकार का प्रयोग नहीं किया।
हरियाणा में वर्ष 2014 के दौरान विधानसभा चुनाव के दौरान हरियाणा में सबसे अधिक 53 हजार 613 मतदाताओं ने नोटा का इस्तेमाल किया। हरियाणा में पिछले साल हुए जींद उपचुनाव के दौरान केवल 345 मतदाताओं ने नोटा का इस्तेमाल किया जबकि मेयर चुनाव के दौरान महज 7546 मतदाताओं ने नोटा का प्रयोग किया। अतीत में हुए चुनाव के दौरान वोट प्रतिशत्ता और नोटा के इस्तेमाल के बीच के अंतर को देखते हुए आयोग का प्रयास है कि इस बार अधिक से अधिक संख्या में मतदाता मतदान केंद्र तक आएं।
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क्या है नोटा?
नोटा का पूरा नाम है नॅन ऑफ दी अबव अर्थात् ऊपर लिखे नामों में से कोई नहीं। यह उन मतदाताओं के लिए है जो किसी उम्मीदवार को वोट नहीं देना चाहते हैं। 2009 में सुप्रीम कोर्ट ने भारत के चुनाव आयोग से हर चुनावी बैलट पर इस विकल्प को उपलब्ध कराने को कहा था। लेकिन सरकार ने इसका विरोध किया था। 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि हर मतदाता को ‘नोटा’ वोट डालने का अधिकार है। तब से इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन में नोटा का भी विकल्प दिया गया है। 2014 के चुनावों से नोटा की शुरुआत हुई।
चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया था कि नोटा के वोटों की गिनती की जाती है,लेकिन उनको अवैध वोट माना जाता है। इसलिए नोटा के वोट का चुनाव के परिणामों पर कोई असर नहीं पड़ता है।
फिर नोटा की क्या जरूरत?
नोटा चुनाव लडऩे वाले प्रत्याशी के समक्ष मतदाताओं को अपना असंतोष प्रकट करने का मौका देता है। इससे ज्यादा से ज्यादा लोग वोट देने आएंगे, भले ही वह किसी भी उम्मीदवार को पसंद न करें। भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश पी.सदाशिवम के नेतृत्व वाली एक बेंच ने कहा था कि नेगेटिव वोटिंग से चुनाव के सिस्टम में बदलाव हो सकता है। उन्होंने कहा था कि इससे राजनीतिक पार्टियां साफ छवि वाले उम्मीदवारों को चुनाव में खड़ा करने के लिए मजबूर होंगी।
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चुनाव | नोटा | मतदाता प्रतिशत | कुल वोटिंग |
लोकसभा 2019 | 41,781 | 0.33 | 12681536 |
जींद चुनाव | 00,345 | 0.26 | 00130828 |
मेयर चुनाव 2018 | 07,546 | – | – |
विधानसभा 2014 | 53 ,613 | 0.04 | 12412195 |
लोकसभा 2014 | 34,225 | 0.30 | 11501305 |