इलाके के ग्रामीणों का मानना है कि, शिव मंदिर बहुत ही प्राचीन काल का है। 8वीं शताब्दी में भव्यता के साथ मंदिर का निर्माण हुआ था। ग्रामीण सुरेश कुमार लोधी बताते हैं कि, अंगेजों के शासनकाल में मंदिर को खंडित करने का प्रयास किया गया था। जब मंदिर की मूर्तियों को खंडित करने के लिए उसपर चोट पहुंचाई गई तो किसी से खून तो किसी से दूर की धार बह पड़ी थी। मूर्तिों पर आज भी चोट के निशान हैं। कहा जाता है कि, इस नजारे को देखखर अंग्रेज भी मंदिर से तुरंत भाग खड़े हुए थे।
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तो दोबारा हुआ मंदिर का जीर्णोद्धार
फिलहाल, मंदिर में स्थित कई मूर्तियां पन्ना संग्राहालय में रखवा दी गई हैं। यहां पर पीबी राजा रहते थे, उन्होंने भव्य मंदिर का निर्माण कराया था। भूमि प्रकट शिवलिंग हैं। हलनी पटेल ने दोबारा मंदिर का जीर्णाेद्धार कराया गया था और आज मंदिर में दर्शन-पूजन के लिए दूर-दूर से भोलेनाथ के भक्त पहुंचते हैं।
अद्भुत है यहां की नक्काशी
य विशेष मंदिर अपनी अद्भुत नक्काशी के लिए भी जाना जाता है। रोचक कहानियों से ये मंदिर भरा पड़ा है। मंदिर पुरातत्व विभाग के आधीन है। मंदिर का निर्माण स्थानीय पत्थरों से किया गया है। कारीगरों ने पत्थर को तराशकर मंदिर बनाया है। मंदिर की मोटी दीवारें, उन पत्थरों में धार्मिक, सांस्कृतिक आकृतियां लोगों को बड़ा ही आकर्षित करती हैं। मंदिर को देखने के लिए यहां लोग दूर-दूर से पहुंचते हैं।
तस्वीरें करती हैं आकर्षित
खजुराहो मंदिर की तर्ज पर मंदिर की दीवारों में बनी मूर्तियां आकर्षण का केंद्र हैं। कई देवी-देवाताओं, देवता जिनमें सवारी करते हैं उन पशु-पक्षियों की मूर्तियां अद्भुत हैं। मंदिर में देवीजी की भी स्थापना हैं, जिनके दर्शन-पूजन के लिए लोग पहुंचते हैं। यहां पर पत्थरों के सुंदर फूल, कलश बहुत ही बेहतर तरीके से बनाए गए हैं। शिलालेख भी यहां की खासियत हैं। मंदिर में तो वैसे प्रतिदिन सैकड़ों लोग दर्शन-पूजन के लिए पहुंचते हैं, लेकिन सावन में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ रही है।