30 दिसंबर 2025,

मंगलवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

‘एंबुलेंस’ नहीं, ‘बस’ की गैरहाजिरी जानलेवा

ग्रामीण अंचल में बस ही जीवन रेखा, बिना बस हर सफर जोखिम, उमरियापान क्षेत्र के दर्जनों गांव बस की सुविधा से वंचित, देश के भौगोलिक केंद्र बिंदु के लिए भी नहीं बस

2 min read
Google source verification

कटनी

image

Balmeek Pandey

Dec 30, 2025

Bus

Bus

कटनी. सरकारी कागजों और बैठकों में स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर दावे बड़े हैं। 108 एंबुलेंस, जननी वाहन और ग्रामीण स्वास्थ्य ढांचे को मजबूत करने की योजनाएं हर मंच पर गिनाई जाती हैं, लेकिन उमरियापान से सटे दर्जनों गांवों की जमीनी हकीकत इन दावों की पोल खोल देती है। यहां समस्या एंबुलेंस की नहीं, बस की गैरमौजूदगी की है, जो अब सीधे तौर पर जानलेवा साबित हो रही है। इन गांवों में बस सिर्फ परिवहन का साधन नहीं, बल्कि बीमारों, गर्भवती महिलाओं और हादसों के शिकार लोगों के लिए पहली और सबसे भरोसेमंद एंबुलेंस है।
उमरियापान से करौंदी, सारंगपुर कटरा, कुदवारी, गढ़मास, भसेड़ा और भटगवां जैसे मार्ग आज भी बस सेवा से वंचित हैं। ये वही रास्ते हैं जो जंगल, पहाडिय़ों और आदिवासी बस्तियों से होकर गुजरते हैं। यहां एंबुलेंस पहुंचने में घंटों लग जाते हैं, कई बार तो पहुंच ही नहीं पाती। समाजसेवी प्रदीप चौरसिया बताते है कि निजी वाहन हर किसी के पास नहीं हैं और जो हैं, वे भी आपात स्थिति में तुरंत उपलब्ध हों, यह जरूरी नहीं। नतीजा यह कि बीमारी या दुर्घटना के समय परिवार खुद ही व्यवस्था बनाने में जुट जाता है।

प्रसव सडक़ पर, सिस्टम तमाशबीन

ढीमरखेड़ा तहसील के गौरी गांव में गत माह हुई कुसुम बाई (30) की घटना पूरे तंत्र पर सवाल खड़े करती है। प्रसव पीड़ा होने पर न गांव तक एंबुलेंस पहुंच सकी और न ही बस का कोई विकल्प था। परिजनों ने महिला को ‘झोली’ में उठाकर गांव से बाहर निकाला। उबड़-खाबड़ रास्तों में ही प्रसव हो गया। बाद में आशा कार्यकर्ता और स्थानीय युवाओं की मदद से मोटरसाइकिल पर जच्चा-बच्चा को जननी वाहन तक पहुंचाया गया। समाजसेवी दुर्गेश विश्वकर्मा अगर बस सेवा होती, तो महिला को इस तरह जान जोखिम में डालकर सफर नहीं करना पड़ता।

बुजुर्ग मरीजों के लिए सबसे अधिक समस्या

गढ़मास, भसेड़ा और भटगवां जैसे गांवों में बुजुर्ग मरीजों की हालत और भी चिंताजनक है। कई बार सीने में दर्द, सांस की तकलीफ या गंभीर बीमारी से जूझ रहे बुजुर्गों को चारपाई या डोली में गांव पार कराया जाता है। रहवासी प्रीतम सिंह, जितेन्द्र यादव, अशोक दाहिया ने बताया कि गढ़मास गांव के आगे तो एंबुलेंस तक नहीं पहुंच पाती। मजबूरी में मोटरसाइकिल या निजी वाहन का सहारा लिया जाता है। हाल ही में भसेड़ा निवासी एक बुजुर्ग मरीज को निजी वाहन से उमरियापान ले जाया गया, क्योंकि बस नहीं थी। रास्ते में समय ज्यादा लगने से मरीज की हालत बिगड़ गई।

हादसों के बाद भगवान भरोसे इलाज

रहवासी विजय पटेल, जितेन्द्र सोनी, सुशील राय ने बताया कि टोपी, घुघरा और परसेल जाने वाले मार्गों पर भी परिवहन सुविधा न के बराबर है। सडक़ हादसे हों या जंगल में काम के दौरान चोट लग जाए, घायलों को निजी वाहनों से ढोया जाता है। बरसात के दिनों में कच्चे रास्ते फिसलन भरे और जानलेवा हो जाते हैं। ऐसे में हर मिनट की देरी जान पर भारी पड़ती है।

बस के बिना शिक्षा और सुरक्षा भी अधूरी

किसान संघ के पारस पटेल व एडवोकेट मनमोहन मिश्रा बताते है कि बस न होने का असर सिर्फ स्वास्थ्य तक सीमित नहीं है। युवा उच्च शिक्षा से वंचित हो रहे हैं, महिलाएं और बच्चे यात्रा के दौरान खुद को असुरक्षित महसूस करते हैं। उमरियापान ही इन गांवों का प्रमुख केंद्र है, लेकिन वहां तक पहुंचना ही सबसे बड़ी चुनौती बन गया है। ग्रामीणों का कहना है कि एंबुलेंस योजनाओं की सफलता तब तक संभव नहीं, जब तक इन मार्गों पर बस सेवा शुरू नहीं होती।