29 दिसंबर 2025,

सोमवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

अजब-गजब खेल: ‘दिलीप कुमार’ 3.85 हेक्टेयर जमीन खरीदने बन गया ‘आदिवासी’

आदिवासी बनकर कराई थी 1999 में रजिस्ट्री, राजस्व विभाग के अधिकारी-कर्मचारियों की सांठगांठ से 2024-25 में जातिनाम ‘कोल’ हो गया विलोपित

4 min read
Google source verification

कटनी

image

Balmeek Pandey

Apr 17, 2025

Serious corruption in buying tribal land

Serious corruption in buying tribal land

बालमीक पांडेय@ कटनी. गरीब आदिवासियों की बेसकीमती जमीन को कौडिय़ों के दाम खरीद-फरोख्त के बड़े मामले जिले में वर्षों से चले आ रहे हैं। कलेक्टर से अनुमति लेकर हजारों एकड़ जमीनों के वारे-न्यारे कर दिए गए हैं, जबकि ये जमीनें आदिवासियों के जीवन स्तर को ऊपर उठाने के लिए दी गई हैं। इन सबके बीच एक ऐसा चौकाने वाला मामला सामने आया है, जिसमें शासन को गुमराह करते हुए एक व्यक्ति लगभग 3.85 हेक्टेयर जमीन खरीदने के लिए आशुदानी से कोल बन गया है। हैरानी की बात तो यह है कि रजिस्ट्री के समय कोल और फिर 26 साल बाद जमीन की खरीद-फरोख्त करने के लिए राजस्व विभाग के अधिकारियों से सांठगांठ कोल शब्द खसरे से विलोपित करा लिया गया है।
कमलेश जैन निवासी जैन धर्मशाला के पीछे रघुनाथगंज वार्ड ने कलेक्टर को की गई शिकायत में बताया कि दिलीप कुमार आशुदानी (सामान्य जाति) वल्द हासानंद निवासी बिरला रोड सतना तहसील रघुराज नगर जिला सतना मप्र ने कटनी निवासी एक रिश्तेदार के साथ मिलकर आदिवासी बनने का छदमरूप धारण कर लिया। यह खेल 20 दिसंबर 1999 को किया गया, जिसका खुलासा अब जाकर शिकायत के बाद हुआ है। इसमें एसडीएम को मामले की जांच के आदेश हो गए हैं।

यह है मामला

ग्राम इमलिया नं.बं. 36, पटवारी हलका नंबर 35/44 तहसील कटनी में अनुसूचित जाति वर्ग (आदिवासी) के नाम पर भूमि स्वामी हक में दर्ज थी। गुग्गी पुत्री अगनू भुमिया की खसरा नंबर 661 रकबा 0.61 है, गुगला वल्द दंगा भुमिया की खसरा नंबर 658 रकबा 1.85, दसैया वल्द दद्दी कोल, भगवानदीन वल्द नोहरा कोल, भूरी बाई पत्नी स्व लघुबा कोल, श्रीराम वल्द स्व लघुबा कोल की खसरा 300 रकबा 0.09 हे., खसरा नंबर 365 रकबा 0.53 हे., खसरा नंबर 387 रकचा 0.35 हे, खसरा नंबर 446 रकबा 0.35 हे, खसरा नंबर 505 रकबा 0.07 हे कुल रकबा 1.39 हेक्टेयर जमीन दिलीप कुमार द्वारा क्रय की गई है।

नगर निगम की लापरवाही: छह माह से फॉगिंग मशीनें बनीं शोपीस, शहर मच्छरों के कहर से बेहाल

नामांतरण के बाद किया खेल

दिलीप कुमार के द्वारा आदिवासी से भूमि खरीदने के उपरांत उसका संशोधन पंजी के माध्यम से नामांतरण भी अपने नाम पर करा लिया गया। राजस्व अभिलेख खसरा पांचसाला में पहले अपना नाम दिलीप कुमार पिता हासानंद कोल लिखाया और बाद में पटवारी और तहसीलदार की मिलीभगत से राजस्व अभिलेख, खसरा पांचसाला से ‘कोल’ शब्द हटवा दिया। राजस्व अभिलेख में ऐसी प्रविष्टि हटाने के संबंध में राजस्व प्रकरण संधारित करने के बाद ही आदेश पारित होने पर कोई सुधार हो सकता है। राजस्व अभिलेख में सुधार करने की आईडी व पासवर्ड तहसीलदार के पास होता है। तहसीलदार व पटवारी द्वारा अनावेदकगणों के साथ मिलकर ‘कोल’ शब्द हटाकर धोखाधड़ी का अपराध किया गया है।

कलेक्टर की अनुमति जरूरी

अधिवक्ता मिथलेश जैन का कहना है कि मप्र भू राजस्व संहिता की धारा 165 (6) के प्रावधान के अनुसार आदिवासी की भूमि का विक्रय पत्र (अंतरण) कलेक्टर की अनुमति के बिना नहीं किया जा सकता। 1959 से नियम लागू है, इसके बाद भी 1999 में यह बड़ा खेल हुआ और फिर 2024-25 में खसरे में बगैर किसी सक्षम अधिकारी के आदेश का हवाला दिए कोल शब्द विलोपित करना गभीर अपराध है। कैफियत का कॉलम खाली है। इस मामले में संबंधित अधिकारियों को मामले की गंभीरता से जांच कराते हुए दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए।

मामले में जांच के आदेश

कमलेश जैन की शिकायत के बाद प्रशासन ने मामले को जांच में लिया है। 6 मार्च को इस प्रकरण की जांच पत्र क्रमांक 3696/राकेले/2025 के माध्यम से अनुविभागीय अधिकारी को सौंपी गई है। इस पूरे मामले में विधिक प्रावधानों के तहत जांच-कार्रवाई करने प्रभारी अधिकारी प्रस्तुतकार शाखा ने की है।

79 स्कूल पर लटकी मन्यता की तलवार, हजारों बच्चों के भविष्य से हो रहा खिलवाड़

आदिवासियों की 2100 एकड़ बिक चुकी हैं जमीन

जिले में आदिवासियों की जमीन को बिकवाने में कुछ वर्षों में बड़ा खेल हुआ है। दो दशक में कलेक्टरों की अनुमति से 2100 एकड़ से अधिक जमीन बेच दी गई है। 281 अनुमति लेकर 860 हेक्टेयर जमीनें गैर आदिवासियों को बेची व खरीदी गई हैं। भोले-भाले आदिवासियों की जमीन खरीद-खरोख्त का सबसे बड़ा खेल 2006 से लेकर 2008 के बीच हुआ है। इस दौरान 123 लोगों की जमीन के वारे-न्यारे किए गए हैं। बेटी के विवाह, गंभीर बीमारी, अन्य आपात स्थितियां बताकर जमीनें बेची गई हैं। बड़ी गड़बड़ी सामने आने पर तत्कालीन कलेक्टर अंजू सिंह बघेल पर कार्रवाई भी हो चुकी है। इनके द्वारा अपने पुत्र के नाम आदिवासियों की कई एकड़ जमीन नाम में कर दी गई थी। हालांकि अधिकांश अफसरों पर अभयदान रहा है। समाज के अंतिम पंक्ति में आने वाले इन गरीब-आदिवासियों के जीवन स्तर को ऊपर उठाने की पहल का अफसरों ने ही दम घोट दिया है। अब इन आदिवासियों की सुध लेने वाला कोई नहीं है।

बड़वारा में भी है यही कहानी


बड़वारा विधानसभा जो आदिवासी आबादी के नाम से जाना जाता है यहां अधिकांश आदिवासी समुदाय की भूमि पर गैर आदिवासी ही काबिज हैं। तहसील क्षेत्र के रोहनिया ग्राम पंचायत अंतर्गत आने वाले पटवारी हल्का नंबर 11 से सामने आया है जहां श्री रामानुज सिंह गोड़ पिता कुंजल सिंह गोड़ की भूमि उत्तर प्रदेश निवासी भगवती देवी पति रामलाल मौर्य के नाम पर खरीद ली गई है। मंगलवार को रोहनिया ग्राम निवासी राघवेंद्र सिंह ने कलेक्टर के नाम तहसीलदार को की गई शिकायत में आरोप लगाया है कि भगवती देवी ग्राम बिसौली जिला चंदौली उत्तर प्रदेश ने अपनी वास्तविक पहचान छिपाते हुए आदिवासी बनकर राम अनुज गौड़ से कौडिय़ों के दाम पर 6.90 हेक्टयर भूमि क्रय कर ली है और अब उस भूमि को किसी अन्य व्यक्ति को विक्रय करने की जद्दोजहद की जा रही है।

क्रेता ने दिया यह तर्क

दिलीप कुमार आशुदानी, क्रेता का कहना है कि इस मामले से मेरा कोई लेना-देना नहीं है। मैंने कोई आदिवासी बनकर जमीन नहीं खरीदी और ना ही रिकॉर्ड दुरुस्त कराया। मामला निराधार है।

गंभीरता से कराई जाएगी जांच


प्रदीप मिश्रा, एसडीएम का कहना है कि यह गंभीर प्रवृत्ति का मामला है। शासन से कूटरचना की धोखाधड़ी की शिकायत है। इस मामले की गंभीरता से जांच कराते हुए शीघ्र ही वैधानिक कार्रवाई की जाएगी।