
शक्कर की माला खरीदते लोग।
कटनी. कभी होली में गांव-गांव शक्कर की बनी रंग-बिरंगी माला एक-दूसरे को पहनाकर लोग गुलाल-रंग लगाकर पर्व की बधाई देते थे। परंपरा के चलते शहर के बताशा बाजार में 15 दिन पहले से व्यापारी माला बनाने में जुट जाते थे। पर्व में जैसे-जैसे परंपरा कम होती गई मीठे माला का व्यापार भी सिमटता चला गया। बताशा बाजार में वर्तमान में सिर्फ 20 प्रतिशत ही व्यापार रह गया है। झंडाबाजार का बताशा बाजार होली में रंग बिरंगी शक्कर मालाओं से 15 दिनों तक सजा रहा रहता था लेकिन अब मुश्किल से तीन से चार दिन ही लोग खरीदी करने आते हैं। पहले एक दर्जन व्यापारी माला बनाने का काम महाशिवरात्रि पर्व के बाद शुरू कर देते थे और माला कटनी के साथ ही आसपास के लगभग चार जिलों को सप्लाई होता था। वर्तमान में तीन व्यापारी ही होली में माला बनाते हैं।
70 से 80 क्विंटल का होता था व्यापार
बताशा गली में होली पर्व में शक्कर की माला की मांग अधिक होने के दौरान व्यापारी 15 दिन में 70 से 80 क्विंटल तक माला बेच लेते थे। वर्तमान में स्थिति यह है कि मुश्किल से पर्व में 10 क्विंटल का व्यापार होता है। व्यापारियों के अनुसार पहले चूने की भठ्ठे थे और उनमें काम करने वाले मजदूर सबसे अधिक शक्कर की माला खरीदने आते थे लेकिन भठ्ठे बंद होने से भी बताशा के बाजार के व्यापार में फर्क आया है।
इनका कहना है...
पहले होली में घर-घर शक्कर माला पहनाकर रंग-गुलाल लगाने की परंपरा थी। धीरे-धीरे परंपरा समाप्त होती जा रही है और उसी के आधार पर व्यापार भी कम होता जा रहा है। वर्तमान में होली में शक्कर की माला का २० प्रतिशत ही व्यापार बचा है।
गोपालदास गुप्ता, बताशा व्यापारी
पहले पर्व के दौरान एक दर्जन से अधिक व्यापारी महाशिवरात्रि के बाद से ही माला बनाने के काम में जुट जाते थे। लगभग 80 क्विंटल शक्कर की माला की खपत होती थी लेकिन अब मुश्किल से 10 क्विंटल का ही व्यापार हो पाता है। दो-तीन व्यापारी ही काम कर रहे हैं।
प्रदीप गुप्ता, बताशा व्यापारी
Published on:
09 Mar 2020 10:08 am
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