
unique secret of Bilhari Chandi Mata Temple
कटनी. देशभर में शारदेय नवरात्र की आराधना धूमधाम से चल रही है। श्रद्धालु मां आदिशक्ति की भक्ति में डूबे हुए हैं और अलग-अलग ढंग से अपनी आस्था प्रकट कर रहे हैं। कटनी जिले से महज 15 किलोमीटर दूर स्थित ऐतिहासिक नगरी बिलहरी, जिसे प्राचीन काल में राजा कर्ण की राजधानी माना जाता था, आज भी अपनी आस्था और इतिहास के लिए प्रसिद्ध है। यहां का मां चंडी मंदिर न सिर्फ धार्मिक मान्यता का केंद्र है बल्कि रहस्यमयी घटनाओं और दानशीलता की ऐतिहासिक कहानियों को भी संजोए हुए है।
मंदिर से जुड़ी लोककथाओं के अनुसार, राजा कर्ण प्रतिदिन सूर्योदय से पूर्व मां चंडी के मंदिर पहुंचते थे। वहां विशाल कढ़ाव में तेल खौलता रहता था। राजा कर्ण बिना भय के उसमें कूद जाते थे। इसके बाद माता चंडी उन पर अमृत छिडकक़र उन्हें जीवित कर देती थीं और वरदान स्वरूप ढाई मन सोना प्रदान करती थीं। राजा कर्ण प्रतिदिन इसमें से सवा मन सोना गरीबों को दान में दे दिया करते थे। इसी कारण वे दानवीर कर्ण के नाम से प्रसिद्ध हुए।
कहा जाता है कि एक बार राजा विक्रमादित्य एक बालक की खोज में बिलहरी पहुंचे। उन्होंने इस अद्भुत परंपरा को देखा और रहस्य जानने के लिए जासूसी की। जब सच्चाई सामने आई तो उन्होंने स्वयं राजा कर्ण के स्थान पर कढ़ाहे में कूदकर देवी की कृपा प्राप्त की। माता ने उन्हें सोना देने वाला अक्षय पात्र और अमृत कलश भेंट किया। बिलहरी को प्राचीन काल में पुष्पावती नगरी भी कहा जाता था। यहां के पत्थरों पर उकेरी गई कलाकृतियां और नक्काशी उस समय की भव्यता और शिल्पकला का बेजोड़ उदाहरण प्रस्तुत करती हैं। इन ऐतिहासिक धरोहरों के बीच विराजमान मां चंडी का मंदिर आज भी आस्था और भक्ति का प्रतीक बना हुआ है।
शारदेय नवरात्र के पावन पर्व पर मंदिर में बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंच रहे हैं। माता के दर्शन-पूजन के लिए भक्तों का तांता लगा हुआ है। यहां धार्मिक आयोजन भी निरंतर हो रहे हैं। अष्टमी और नवमीं पर तो मंदिर प्रांगण में श्रद्धालुओं का सैलाब उमडऩे की संभावना है। मां चंडी का मंदिर न केवल आस्था का धाम है, बल्कि यह इतिहास, मान्यता का अद्भुत संगम है, जहां श्रद्धा और दान की परंपरा आज भी लोगों के मन को प्रेरित करती है।
Published on:
23 Sept 2025 07:38 am
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