इन शिक्षकों ने अपने जीवन में कई संघर्ष झेले। समाज की धारणाओं, आर्थिक तंगी और शारीरिक कठिनाइयों के बावजूद, उन्होंने शिक्षा को अपना लक्ष्य बनाया। कई शिक्षक ऐसे हैं जिन्होंने ग्रामीण परिवेश में कठिन हालातों के बीच अपनी पढ़ाई पूरी की और आज बच्चों को शिक्षित कर रहे हैं। उनके छात्र भी उनकी मेहनत से प्रेरित होकर अपने जीवन में आगे बढऩे का संकल्प लेते हैं। दिव्यांग शिक्षक सिर्फ बच्चों के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे समाज के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। ये शिक्षक यह संदेश देते हैं कि कोई भी शारीरिक चुनौती इंसान की राह में तब तक बाधा नहीं बन सकती, जब तक उसके पास आत्मविश्वास और मजबूत इरादा हो।
अब्बल दर्जे का अनुशासन
कविता जैन प्रधान पाठक शासकीय माध्यमिक विद्यालय एनकेजे, जो कि दोनों पैर से दिव्यांग होने के बावजूद भी इनकी हौसलों की उड़ान इतनी मजबूत है, कि प्रति दिन विद्यालय समय टाइम से पहुंचकर पढ़ा रही हैं। समय पर प्रार्थना कराना, पूरे शिक्षकों को पढ़ाई से जुड़े काम बांटना, समय विभाग चक्र के मुताबिक साला में हर कालखंड की पढ़ाई करवाना, शालेय विद्यार्थियों को तरह तरह की शह शैक्षिक गतिविधियों का आयोजन कराने में इनकी दिव्यांगता तनिक भी बाधक नहीं है। शाला के विद्यार्थियों में अब्बल दर्जे का अनुशासन इन्हीं के बल पर कायम है।
संजय कुमार श्रीवास्तव ये शिक्षक एक पैर से दिव्यांग अस्थि बाधित हैं, बाबजूद इसके इनके विद्यालय शासकीय प्राथमिक शाला प्रेमनगर में अध्ययन के लिए आने वाले लगभग 20 दिव्यांग बच्चे जो की सक्षम छात्रावास से इनके विद्यालय में अपना भविष्य सजाने संवारने जाते हैं। उनकी देखभाल प्रधान अध्यापक के रूप में कार्य करने वाले शिक्षक विधिवत अपने खुद की संतान की तरह करते हैं। इनकी एक पीड़ा अवश्य रहती है, कि ये चाहते हैं कि दिव्यांग बच्चों के नाम पर मानसिक रूप से विकृति वाले बच्चों को इन नेत्रहीन और मूक बधिर बच्चों के लिए विशेष व्यवस्था हो। ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ प्रधानाध्यापक के रूप में चर्चित हैं।
बालकेंद्रित है कार्यप्रणाली
अर्चना बिलैया शासकीय स्वर्णकार प्राथमिक विद्यालय में कार्यरत हैं। दोनों पैर से पूर्णत नि:शक्त होने के बाद भी सामान्य शिक्षकों की तरह ही नियमित समय पर विद्यालय पहुंचकर कर अपने ज्ञान का प्रकाश बिखेरती हैं। पढ़ाई-लिखाई की प्रशंसा अनेकों अनेक जांच दल के अधिकारियों द्वारा मुक्तकंठ की जा चुकी है। काम पूर्णतया बालकेंद्रित है। दिव्यांग होने के बाद भी कभी पीछे मुडकऱ नहीं देखती। बच्चों का भविष्य संवार रहीं हैं।
कमलकांत जायसवाल शासकीय सिविल लाइन उच्चतर माध्यमिक शाला में एक आदर्श शिक्षक के रूप में पहचान बनाई है। दोनों पैरों से पूरी तरह से नि:शक्त हैं, लेकिन आपके अंदर के आत्मविश्वास की जितनी प्रशंसा की जाए कम है। क्षमता से बढकऱ बच्चों को संस्कारित करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ते। इनकी विषय का परीक्षा परिणाम हमेशा शतप्रतिशत रहता है। सामाजिक क्षेत्रों में सक्रिय भूमिका निभाते हैं। आप विद्यालय में अतिरिक्त कक्षा लगाकर बच्चों का भविष्य संचार रहे हैं।
रामकुमार पटेल प्राचार्य शासकीय हाई स्कूल जोबीकला में कार्यरत हैं। एक पैर से पूरी तरह अपंग होने के बाद भी हौसलों के उड़ान में कहीं पीछे नहीं हैं। शासन-प्रशासन द्वारा आपके कार्य प्रणाली से प्रसन्न होकर आए महत्वपूर्ण जबाबदारी देकर काम लिया जा रहा है। मेरिट में रहकर विभाग की सेवा कर रहे हैं। शिक्षा विभाग के प्रति पूर्ण निष्ठित और कर्तव्य परायण हैं। उच्च पद प्रभार की काउंसलिंग में उत्कृष्ट तरीके से मेहनत करके सम्पन्न कराई गई काउंसलिंग में बेहतर योगदान दिया है।
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दिव्यांगों को दिला रहे अधिकार
मार्तण्ड सिंह राजपूत सहायक शिक्षक और प्रांतीय संरक्षक बहु उद्देशीय विकलांग कल्याण एसोसिएशन शिक्षा देने के साथ-साथ दिव्यांगों को अधिकार सम्मत बनाना, उनके अधिकारों की लड़ाई लडऩा, उन्हें न्याय दिलाने के लिए पूरे प्रदेश का भ्रमण करना, इनके सोच में दिव्यांगों का उत्थान और उनका चौतरफ विकास भरा है। दिव्यांगों के कल्याण के लिए दौड़ लगाना फितरत में शामिल है। ये दिव्यांगों को अधिकार दिलाने के लिए हर संभव प्रयास करते हैं। दिव्यांगों के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने के कारण कलेक्टर द्वारा गणतंत्र दिवस पर सम्मानित किया जा चुका है।
जितेंद्र दुबे माध्यमिक शिक्षक उपनगरीय क्षेत्र न्यू कटनी जंक्शन दोनों पैर से दिव्यांग हैं, लेकिन गणित की पढ़ाई सामान्य और दिव्यांग बच्चों को पढ़ाई जाती है वह बेहद सरल, सहज और वैदिक तरीके से समझ में आने वाली रहती है। दिव्यांग बच्चों से खास लगाव है। तीस बच्चे जो कि सक्षम छात्रावास से शासकीय मिडिल स्कूल न्यू कटनी जंक्शन आते हैं, उनके उत्तम पढ़ाई की जिम्मेदारी अपने ही कंधे पर उठाए हुए हैं। बच्चों के लिए विद्यालय में रैम्प अपने खर्चे से बनवाया है।