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विश्व विरासत दिवस विशेष: ताले में कैद प्राचीन मूतियां, विरासत पड़ीं बेजान

जिले में खुदाई में मिली कल्चुरीकाल की प्राचीन मूर्तियां बिलहरी में कैद, विरासत को सहेजने नहीं पहल, कागजों में दफन हुआ बिलहरी में पुरातत्व संग्रहालय खोलने का प्रस्ताव

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कटनी

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Balmeek Pandey

Apr 18, 2025

World Heritage Day Special

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कटनी. जिले में खुदाई में मिली कल्चुरीकाल की प्राचीन मूर्तियां ताले की कैद से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं। इन्हें लोग देख नहीं पा रहे हैं और न ही इतिहास और विरासत को नजदीक से जान पा रहे हैं। लंबे समय से उपेक्षित जिले की धरोहरों को सहेजने के लिए पहल नहीं हो रही है। राजा कर्ण की राजधानी पुष्पावती नगरी (बिलहरी) में पुरातत्व संग्रहालय खोलने योजना बनाई गई, इसके लिए पुरातत्व विभाग ने कटनी जिला प्रशासन से बिलहरी में जमीन भी मांगी लेकिन यह योजना भी कागजों में दफन हो गई। जानकारी के अनुसार पूर्व के वर्षों में बिलहरी में खुदाई में कल्चुरीकालीन प्राचीन और नायाब शिल्प वाली प्रतिमाएं मिली थीं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने खुदाई में मिली बहुमूल्य प्राचीन प्रतिमाएं एक कमरे में ताले में बंद करके सुरक्षित तो रखा है लेकिन संग्रहालय में सहेजे जाने के लिए पहल नहीं हुई।
जानकारी के अनुसार जिले में ऐसे कई एतिहासिक धरोहर व विरासत हैं जो पर्यटन के क्षेत्र में जिले को देश के नक्शे पर प्रमुख स्थान पर ला सकती हैं। दरकार है इन स्थानों को चिन्हित कर टूरिस्ट सर्किट के रूप में विकसित करने की। जिससे सैकड़ों युवाओं के लिए रोजगार के नए अवसर तैयार हो सकें। पर्यटक विभाग व पुरातत्व विभाग द्वारा ध्यान न दिए जाने से जिले की विरासतें बेजान पड़ी हैं। ऑर्कियोलाजिस्ट बताते हैं कि कटनी जिले में पुरातत्व महत्व की कई एतिहासिक धरोहर हैं। रूपनाथ मंदिर स्थित सम्राट अशोक के संदेश देती शिलालेख तो इस स्थान को दुनियाभर के चुनिंदा स्थानों पर ला खड़ा करती है। दुनियाभर में ऐसे 40 शिलालेख मिले हैं। इनमें से एक कटनी जिले के बहोरीबंद के रूपनाथ धाम में है। इसमें बौद्ध धर्म की बारीकियों पर कम और मनुष्यों को आदर्श जीवन जीने की सीखें अधिक मिलती हैं। यह हमारी अमूल्य धरोहर है। आज की युवा पीढ़ी इसे जानकर गौरवान्वित होगी, लेकिन दुर्भाग्य है कि स्थानीय प्रशासन द्वारा ऐसे धरोहरों के संरक्षण को लेकर किए जाने वाले प्रयास नाकाफी हैं।

देशभर में संग्रहालयों की शोभा बढ़ा रही हमारी प्रतिमाएं

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने भले ही जिले से मिले हुई प्राचीन और नायाब शिल्प वाली प्रतिमाओं को सहेजने पहल नहीं की है लेकिन हमारी प्रतिमाएं को जिले से बाहर जरूर कई बार भेजा गया है। जिले में खुदाई के दौरान निकले बेशकीमती व पुरातात्विक महत्व वाली प्रतिमाएं जबलपुर, नागपुर, रायपुर, कलकत्ता व ग्वालियर स्थित संग्रहालयों की शोभा बढ़ा रही हैं।

कारीतलाई के शिलालेख जबलपुर और ग्वालियर में

खजुराहो की कलाकृतियों की तरह विजयराघवगढ़ विकासखंड के कारीतलाई में विष्णु वराह मंदिर भव्यता के साथ पुरातात्तिवक महत्व लिए हुए है। यहां 493 ईस्वी के अवशेष विद्यमान हैं। भगवान गणेश, विष्णु-वाराह, शिव-पार्वती की प्रतिमाएं, गोड़ों की प्राचनी बस्ती, विस्तीर्ण तालाब, प्राचीन पाठशाला, स्मारक, संग्रहालय है। यहां खुदाई में मिले शिलालेख रायपुर संग्राहालय, रानीदुर्गावती संग्राहालय जबलपुर व ग्वालियर में संरक्षित हैं। स्थानीय लोग बताते हैं कि कारीतलाई का यह स्थान देश के प्रमुख पर्यटन स्थलों में शुमार हो सकता है। यहां कल्चुरी कॉलीन अवशेषों के साथ ही जमीन के अंदर अमूल्य विरासत दबी हुई है। कुछ वर्ष पहले खुदाई में एक बावली मिली थी। यहां आसपास मूर्तियां बिखरी पड़ी है। कुछ मूर्तियों को कक्ष के अंदर रखा गया जिसे लोगों के देखने के लिए बाहर रखा जाना चाहिए। संरक्षण के अभाव में लोग पत्थरों को ले जा रहे हैं।

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ऐतिहासिक किला बहा रहा बदहाली के आंसू

स्वाधीनता संग्राम व 1857 की क्रांति की गवाही दे रहा विजयराघवगढ़ का किला आखिरकर होटल-हेरीटेज में तब्दील होने के लिए पर्यटन विभाग में पहुंच गया है। विरोध के स्वर काम आए ना ही राजघराने की आपत्ति। स्वतंत्रता संग्राम में सबसे पहले अंग्रेजी हुकूमत की बगावत करने वाले व अंग्रेज को पहली गोली दागने वाले क्षेत्र की शान विजयराघवगढ़ युवराज ठाकुर राजा सरयू प्रसाद का किला प्रमुख धरोहरों में से एक है। 1857 में ब्रिटिश हुकूमत ने जब्त कर लिया था, आजादी के बाद शासन के आधीन रहा, सीएम अर्जुन सिंह के कार्यकाल में पुरातत्व विभाग में शामिल हो गया था। पुरातत्व विभाग द्वारा कई बार जीर्णोद्धार भी कराया गया। 2018 से इसे पर्यटन विभाग को सौंप दिया गया।

इन विरासत से भी जिले की अलग पहचान

झिंझरी शैलवन- कटनी शहर से 7 किमी दूर है। यहां पाषाणु युग की कलाकृति एवं अवशेष संरक्षित है। पाषाण युग में मानव सयता को प्रदर्शित करते दुर्लभ शैलचित्र चट्टानों पर बनें है। गुफाओं के अंदर सुंदर दृश्य है।

रुपनाथ धाम - जिले के बहोरीबंद के नजदीक है। सम्राट अशोक के संदेह वाले शिलालेख जो कि ईश्वी 232 वर्ष पूर्व लिखवाए गए है, उन शिलालेखों में से एक रुपनाथ धाम में है।

तिलक स्कूल- कटनी शहर में स्थापित सबसे पुराने स्कूलों में से एक है। यहा स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान वर्ष 1933 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी आए थे। वे जिस कमरे में रुके थे, उसकी यादें अभी भी है।

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खोला जाए संग्रहालय

राजेन्द्र सिंह ठाकुर, सह संयोजक, इंटेक कटनी चेप्टर ने कहा कि कल्चुरीकालीन धरोहरों को सहेजने को लेकर जिले में पहल नहीं हो रही है। कटनी जिले में कारीतलाई, बडग़ांव, तिगवां और बिलहरी में अलग-अलग पुरातत्व संग्रहालय खोला जाना चाहिए। बिलहरी में संग्रहालय की स्थापना किए जाने की प्रक्रिया शुरू हुई थी लेकिन वह भी अब कागजों में दफन हो रही है।

जिम्मेदार ने कही यह बात

शिवाकांत बाजपेयी, अधीक्षण, पुरातत्वविद, जबलपुर ने कहा कि बिलहरी में पुरातत्व संग्रहालय की स्थापना होना है। यहां 300 मीटर का क्षेत्र सुरक्षित है। इसके दायरे के बाहर पुरातत्व संग्रहालय की स्थापना के लिए भूमि चाहिए है। संग्रहालय के लिए प्रक्रिया चल रही है।