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30 करोड़ की लागत से बने 13 बेस कैप हुए बेकार, खाली भवनों पर अवैध कब्जे का खतरा…

CG News: कबीरधाम जिला हाल ही में नक्सल प्रभावित से मुक्त जिला बना है, जिसके बाद जंगल में एक बार फिर लाल आतंक की दहशत नहीं बल्कि शांति का वातावरण बन गया है।

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30 करोड़ की लागत से बने 13 बेस कैप हुए बेका(photo-patrika)

30 करोड़ की लागत से बने 13 बेस कैप हुए बेका(photo-patrika)

CG News: छत्तीसगढ़ के कबीरधाम जिला हाल ही में नक्सल प्रभावित से मुक्त जिला बना है, जिसके बाद जंगल में एक बार फिर लाल आतंक की दहशत नहीं बल्कि शांति का वातावरण बन गया है। लोग आसानी से अपनी मर्जी की जगह आ जा पा रहे हैं। क्षेत्र में शांति स्थापना के बाद जंगल में बने जवानों के कैंप अब खाली हो रहे हैं जिन्हें केन्द्र सरकार ने सर्वसुविधायुक्त सुरक्षा के लिहाज से बनवाया था, जिनका अब दूसरा उपयोग किया जा सकता है।

CG News: अवैध कब्जे का खतरा मंडरा रहा

जिले में कुल 13 कैप है जिन पर 30 करोड़ से अधिक की राशि खर्च गई थी, ताकि जवानों को सुविधा मिल सके। भवन, सड़क, बिजली, पानी, जनरेटर, मोबाइल टावर जैसी सुविधा दी गई, लेकिन अब ये किसी काम के नहीं है। क्योंकि डेढ़ दशक से लाल आतंक से जूझ रहे कबीरधाम अब नक्सल प्रभावित जिले से बाहर आकर लीगेसी श्रेणी में शामिल हो चुका है।

इसके चलते कैप में मौजूद टीम को वापस बुला लिया गया है। ऐसे में कैप अब लगभग खाली हो चुके हैं। कहीं-कहीं कुछ जवान ही मौजूद है जो जल्द ही कैप खाली कर देंगे। फाॅर्स के लगातार बढ़ते दबाव के चलते अब कबीरधाम जिले को केंद्र सरकार ने नक्सल प्रभावित जिले से हटाकर लीगेसी श्रेणी में शामिल किया है।

जिसके चलते अब केंद्र व राज्य शासन से अलग से फंड जारी नहीं होगा। हालांकि सुरक्षा के लिए, थाना व चौकी बनाने और विकास कार्यों के लिए राशि मिलती रहेगी। अब मुय बात है कि खाली हो रहे कैप का क्या उपयोग किया जाए, ताकि यह खंडहर में न बदल जाए।

जिले में होते रहे मुठभेड़

कबीरधाम जिले के वनांचल के कई ऐसे इलाके हैं, जहां पुलिस का पहुंच मुश्किल रहा, उन जगहों पर नक्सली अपनी पैठ जमाया। ग्रामीण भी डर में आकर ज्यादा कुछ नहीं बोल पाए। क्षेत्र में दहशत फैलाने के लिए कुछ साल पहले झलमला थानाक्षेत्र के ग्रामीण को नक्सली पुलिस का मुखबिर बताकर मौत का घाट उतार दिया। पुलिस ने भी इसका बदला लिया।

अब तक मुठभेड़ में दो वर्दीधारी महिला नक्सली व एक वर्दीधारी पुरुष नक्सली मारे हो चुके हैं। वहीं केन्द्र और राज्य सरकार द्वारा लगातार चलाए गए ऑपरेशन के चलते नक्सली पिछले कुछ सालों से बैकफुट पर आ गए। यही कारण है कि पिछले कुछ सालों में जिले में नक्सलियों ने कोई बड़ी घटना को अंजाम नहीं दिया। वहीं बड़ी संया में नक्सलियों ने आत्मसमर्पण भी किया, जिसके चलते उनकी संया घटती चली गई।

शासकीय भवन का कई तरह से उपयोग

सुरक्षा जवानों के लिए बनाए गए ऐसे इन खाली कैंपों को किसी दूसरे जरूरी कामों के लिए किया जा सकता है। इसका उपयोग स्कूल संचालन, आंगनबाड़ी केन्द्र, अस्पताल, प्रशिक्षण केंद्र, वर्कशॉप, व्यवसाय के रूप में या अन्य किसी बेहतर कार्य के लिए किया जा सकता है।, ताकि इसका सदुपयोग हो सके।

खंडहर होने से पहले उपयोग हो

पुलिस अधीक्षक धर्मेन्द्र सिंह का कहना है कि भवन जो जवानों के लिए बनाए गए थे वो अब धीरे-धीरे कर खाली हो रहे हैं, जिनका उपयोग सरकार अपने जरूरत के हिसाब से कर सकती है। विभाग की ओर से तुरंत हेंडओव्हर कर दिया जाएगा, ताकि वह खंडहर होने से पहले बेहतर उपयोग किया जा सके।

नक्सल जिला बना

बस्तर से पैर उखड़ने के बाद नक्सली नए ठिकाने की तलाश में रहे। नक्सली गढ़चिरौली, गोंदिया, शेरपार, गातापार, कबीरधाम और बालाघाट क्षेत्र में आवाजाही कर नुकसान पहुंचाते थे। उनके लिए कबीरधाम जिले का मध्यप्रदेश के कान्हा नेशनल पार्क से लगा एरिया नया ठिकाना बना। कबीरधाम जिले में साल 2015 से नक्सली तेजी से फैलाव में सफ ल हुए। इसी वर्ष जिले को नक्सली प्रभावित जिला भी घोषित किया गया था, जो 10 साल बाद हटा।