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नहीं उठा सकते हिल्स स्टेशन का खर्च तो आइए इस गुफा में, यहां बाहर से 17 डिग्री कम हो जाता है तापमान

छत्तीसगढ़ में कई गुफाएं (Caves In Chhattisgarh) है जो कि आकर्षण का केंन्द्र है। इन्हीं में से एक है कवर्धा की भवंरटोक गुफा। (Holiday Destination in summer)

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Cave in chhattisgarh

नहीं उठा सकते हिल्स स्टेशन का खर्च तो आइए इस गुफा में, यहां बाहर से 17 डिग्री कम हो जाता है तापमान

कवर्धा. छत्तीसगढ़ में कई गुफाएं (Caves In Chhattisgarh) है जो कि आकर्षण का केंन्द्र है। इन्हीं में से एक है कवर्धा की भवंरटोक गुफा। यह एक बहुत ही प्राचीन गुफा है। गर्मियों में इसका आकर्षण और भी बढ़ जाता है। क्यूंकि गुफा के अंदर का तापमान बाहर से 17 डिग्री तक कम हो जाता है। इस गुफा में कई जगह कमांडों की तरह कोहनी और घुटनों के सहारा चलना पड़ता है। अगर आप महंगे हिल्स स्टेशन (Cheap Holiday Destination) का खर्चा नहीं उठा सकते तो ये जगह आपके लिए छुट्टियां बिताने के लिए बहुत अच्छी है। इसी की जांच के लिए राजधानी से शोधकर्ता भी उस गुफा का मुआयना करने पहुंचे।

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छत्तीसगढ़ का कवर्धा जिला जैव विविधता, नैसर्गिक, शोधपरक स्थल और रहस्यों का खजाना है। यहां बहुत सी प्राचीन गुफाएं हैं जिसकी शोध करने शोधकर्ता गुफा पहुंचे। जहां उन्होंने दो गुफाओं का मुआयना किया और जानकारी एकत्रित किए।

इस दौरान रायपुर के गुफा शोधकर्ता और उनकी टीम को स्कूल के दो बच्चों ने गुफा तक का रास्ता दिखाया। टीम गुफा देखने व उन पर शोध करने पंडरिया से 8 किमी दूर मैकल पर्वत श्रेणी के भंवरटोंक पहुंची। जमीन से 350 फीट की ऊंचाई पर स्थित यहां दो गुफा है। पहला गुफा 30 फीट नीचे उतरने के बाद अंदर 150 फीट लंबी डोलोमाइट पत्थर से निर्मित स्टेलेक्टाइट का सुंदर नमूना है।

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दूसरा गुफा और ज्यादा खूबसूरत है। यह 200 फीट लंबी है। ये दोनों प्राचीनकाल की गुफाएं हैं। टीम द्वारा गुफाओं पर पूरा रिसर्ज किया गया। पत्थरों के नमूने लिए गए। विडियोग्राफी, फोटोग्राफी, वातावरण को मापा गया सहित शोध संबंधित पूरे कार्य किए गए। वहीं कीट शोधकर्ता ने वहां से आवाज करने वाले झींगूर पकड़े और अपने साथ ले गई। प्रयोगशाला में झींगूर पर रिसर्ज करेंगे।

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टीम ने गुफा में दोपहर 2 बजे चढऩा शुरू किए। एक घंटे के बाद वहां पहुंचे। बाहर का तापमान 44 डिग्री था, जबकि गुफा के भीतर तापमान 27 डिग्री था (places visit in summer) और ठंडी हवा बह रही थी। गुफा के भीतर भी रास्ता काफी कठिन था। कई जगह पर टीम को कमांडों की तरह कोहनी और घुटनों के सहारा चलना पड़ा।

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