scriptनिगम में बंपर जीत के बाद अमृता बनीं ‘मैडम मेयर’, अरुण यादव की दूरी और औवेसी बने कांग्रेस की हार का कारण | bumper victory in corporation amrita became khandwa mayor | Patrika News

निगम में बंपर जीत के बाद अमृता बनीं ‘मैडम मेयर’, अरुण यादव की दूरी और औवेसी बने कांग्रेस की हार का कारण

locationखंडवाPublished: Jul 18, 2022 02:39:12 pm

Submitted by:

Faiz

खंडवा नगर निगम में पांचवी बार सरकार बनाकर भाजपा ने अपना गढ़ बरकरार रखने में बड़ी सफलता हासिल की है। अरुण यादव की दूरी और औवेसी को बताया जा रहा कांग्रेस की हार का बड़ा कारण।

News

निगम में बंपर जीत के बाद अमृता बनीं ‘मैडम मेयर’, अरुण यादव की दूरी और औवेसी बने कांग्रेस की हार का कारण

खंडवा. मध्य प्रदेश में नगर सरकार के नतीजे रविवार को घोषित हो चुके हैं। 11 में से 7 शहरों में भाजपा के मेयर को जनता ने कमान सौंपी है। अगर बात करें खंडवा की तो यहां नगर निगम में पांचवी बार सरकार बनाकर भाजपा ने अपना गढ़ बरकरार रखने में बड़ी सफलता हासिल की है। भाजपा को थोड़ा बहुत भितरघात का सामना तो करना पड़ा, लेकिन पहलवान पुत्रों के प्रचार का दम और बड़े नेताओं की सक्रीयता से कांग्रेस को 7 साल बाद 7 गुना बढ़कर हार का सामना करना पड़ा है।

बात करें, वर्ष 2015 में हुए शहर सरकार के चुनाव की तो उस दौरान कांग्रेस 3200 मतों से पीछे रहते हुए मेयर की सीट पर दावेदारी नहीं कर सकी थी। लेकिन, इस बार ये आंकड़ा 19 हजार 765 पर पहुंच गया। जबकि, मुकाबला सरकार वर्सेस जनता होकर कांटेदार था। कांग्रेस की इस बड़ी हार की वजह चुनावी मैनेजमेंट से अरुण यादव के साथ साथ उनके समर्थकों को दूर रखना तो माना ही जा रहा है। इसके साथ साथ मुस्लिम, ब्राह्मण, राजपूत समेत व्यापारिक जातिगत फैक्टर में उलझना। औवेसी ट्रेंड को हल्के में लेना माना जा रहा है।

 

यह भी पढ़ें- कांग्रेस ने ढहाया 18 साल पुराना भाजपा का किला, बंपर जीत के बाद शहर में ‘जगत’ राज


इस तरह चले मतगणना के राउंड

नगरीय निकाय चुनाव में 6 जुलाई को जनता ने अपना फैसला इवीएम में सुरक्षित कर दिया। रविवार को इवीएम खुली और जनता का फैसला सामने आया। मतगणना में भाजपा महापौर प्रत्याशी अमृता अमर यादव ने 8 में से 6 चरणों में लगातार बढ़त बनाते हुए 51925 मत प्राप्त किए। कांग्रेस की आशा मिश्रा को कुल 32160 मत मिले। पहली बार चुनाव मैदान में उतरी एआइएमआइएम की प्रत्याशी कनीज बी ने 9601 मत प्राप्त किए। नोटा में 1041 मत पड़े। 8 चरणों में हुई महापौर के लिए मतों की गणना में पहले ही चरण से भाजपा ने बढ़त बना ली थी। 6 चरण तक सातवें राउंड में कांग्रेस ने 95 मत और 8वें राउंड में 209 मतों की लीड ली, लेकिन तब तक देर हो चुकी थी। 8वें राउंड के बाद जिला निर्वाचन अधिकारी, कलेक्टर अनूप कुमार सिंह ने अमृता अमर यादव को 19765 मतों से विजयी घोषित किया।

50 वार्डों के लिए हुए वार्ड पार्षद के चुनाव में भी भाजपा ने बाजी मारी। भाजपा के 49 वार्ड में प्रत्याशी थे, 28 पार्षद भाजपा के जीत दर्ज कराने में सफल रहे। हालांकि पिछली परिषद की तुलना में 4 सीट कम रही। कांग्रेस ने 13 सीट पर दर्ज कराई, जो पिछली परिषद के बराबर रही।

 

यह भी पढ़ें- क्यों इतने कम अंतर से हुआ भाजपा-कांग्रेस के बीच हार-जीत का फैसला ? ये हैं बड़े कारण


ऐसे समझे कांग्रेस प्रत्याशी की हार के प्रमुख कारण

-यादव समर्थक का टिकट मिश्रा को दिया

कांग्रेस में महापौर प्रत्याशी को लेकर एक ही नाम लक्ष्मी यादव गूंज रहा था, जिस दिन आशा मिश्रा का टिकट हुआ उस दिन समाचार-पत्रों के फ्रंट पेज पर खंडवा से लक्ष्मी यादव का नाम था। यह नाम पूर्व पीसीसी चीफ अरुण यादव ने कमलनाथ से फायनल करवाया था। लेकिन अरुण यादव से दूरी रखने वाले कमलनाथ समर्थक कुंदन मालवीय और राजनारायणसिंह ने भोपाल जाकर बल्ली मिश्रा की बहू का टिकट करवा दिया। ओबीसी सीट पर ब्राह्मण बहू को टिकट मिला तो यह फैक्टर चला कि ओबीसी और ब्राह्मण कांग्रेस के साथ आ जाएंगे। जबकि, कांग्रेस बीते दो चुनावों में ब्राह्मण समाज से उम्मीदवार उतार चुकी थी।


-औवेसी को भाजपा की टीम B तो कहा, पर हल्के में लिया

असुद्दीन औवेसी की पार्टी एआईएमआईएम मैदान में उतरी तो कांग्रेस ने समझा कि यह नोटा की बराबरी भी नहीं कर पाएगी। जब औवेसी ने खंडवा में चुनावी सभा की तो 5 हजार लोग जुटें, तब भी कांग्रेस कहती रही कि यह भाजपा की बी टीम है। अरुण यादव, राजनारायणसिंह से लेकर कमलनाथ ने मंच से कहा कि मुस्लिम वोटर्स कांग्रेस में ही गिरेंगे। बीजेपी को फायदा यह हुआ कि वह हिंदू संगठनों के माध्यम से अपने पक्ष में माहौल बनाने में सफल हो गई। आखिर में औवेसी की पार्टी से महापौर प्रत्याशी 10 हजार वोट लेकर आई।

-पहलवान पुत्रों की छवि का असर

भाजपा से पूर्व विधायक स्व. हुकुमचंद यादव की बहू अमृता यादव को टिकट मिला उसी दिन से माहौल भाजपा के पक्ष में चला गया। कांग्रेस कोई विजन रखने की बजाय सरकार पर आराेप मढ़ते रहीं। जलसंकट, रिंगरोड बायपास और स्विमिंग पुल का मुद्दा उठाया लेकिन यह मुद्दे सालों से चले आ रहे है। इसके बदले पहलवान पुत्रों ने संगठन को साधा, भिरतघात करने वाले नेताओं को पहले ही चेता दिया कि कद्दारी की तो अंजाम बुरा होगा। चुनाव प्रचार में खूब दम भरा, पानी की तरह पैसा लुटाया।


-कांग्रेस के पार्षद प्रत्याशियों ने सिर्फ अपने लिए ही वोट मांगे

कांग्रेस के पार्षद प्रत्याशी अपनी संगठनात्मक कमजोरी से वाकिफ थे। वे जानते थे कि महापौर के वोट का गच्छा अपनी झोली में न जा जाए इसलिए चुनाव प्रचार में सिर्फ अपने लिए वोट मांगे न कि महापौर प्रत्याशी आशा मिश्रा के लिए। मिश्रा परिवार के साथ-साथ संगठन के किसी भी नेता ने जमीनी जंग नहीं लड़ी। इसके उलट भाजपा से बागी प्रत्याशियों ने तो अपने साथ-साथ अमृता यादव के लिए भी वोट मांगे।


-बूथ लेवल मैनेजमेंट की कमी

भाजपा के बूथ लेवल मैंनेजमेंट के मुकाबले कांग्रेस का मैनेजमेंट 10 परसेंट भी नहीं था। मतदान के दौरान कांग्रेस के नेता सिर्फ फर्जी वोटिंग की बात करते रहे। वहीं दूसरी तरफ भाजपा प्रत्याशी, उनके पति और दाेनों जेठ के अलावा संगठन, संघ के नेता बार-बार पोलिंग बूथ पर पहुंचे। हर बूथ पर अपडेट लेते रहे। संघ से जुड़े वार्ड प्रत्याशियों की हार देखकर संघ भी मैदान में कूद पड़ा। दादाजी धुनीवाले वार्ड से आशीष चटकेले को जीताकर छोड़ा।

 

बड़ा हादसा- नर्मदा नदी में गिरी बस, अभी तक निकाले जा चुके 13 शव, देखें वीडियो

https://www.dailymotion.com/embed/video/x8cj7ba
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो