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मोबाइल की लत से बच्चों की आंखें हो रही भैंगी, ऑपरेशन की नौबत

हर माह उपचार के लिए 80 बच्चे हर माह पहुंच रहे आई ओपीडी

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खंडवा. बच्चों का मन बहलाने के लिए अक्सर परिवार उन्हें मोबाइल थमा देता हैं। बच्चे घंटों तक मोबाइल पर नाच गाने के वीडियो देखने के साथ ही गेम खेलते रहते हैं। लेकिन अब इसके घातक परिणाम सामने आने लगे है। मोबाइल की लत बच्चों को बीमार कर रही है। इसका उनकी आंखों पर बुरा असर पड़ रहा है। जिला अस्पताल की आई ओपीडी में हर माह 05 से 08 साल के 80 बच्चे परामर्श ऐसे पहुंच रहे हैं। यह तिरछा देखने लगे हैं। आंखों में भेंगापन का रोग हो गया है।

नेत्र रोग विशेषज्ञ मेडिकल कालेज नेत्र विभाग की प्रभारी चांदनी करोले बताती है कि आई ओपीडी में परामर्श के लिए उनके पास आने वाले मरीजों में बच्चे भी हैं। कोरोना के समय से बच्चों में मोबाइल के उपयोग की लत बढ़ी है। परिवार या तो उन्हें मन बहलाने के लिए मोबाइल थमा देता है या फिर बच्चे ऑन लाइन क्लास के चलते मोबाइल से जुड गए हैं। इससे बच्चों को मोबाइल स्क्रीन टाइम बढ़ गया है। इससे बच्चों की आंखों की दृष्टि पर बुरा प्रभाव पड़ा है। मोबाइल की रोशनी से आंखों की रोशनी कम होना, आंखों में रूखापन आना, आंखों में जलन व चुभन जैसी बीमारियां सामने आ रही है।बच्चों में बढ़ रहा भेंगापन का रोग

आई ओपीडी में रोज ही बच्चों को लेकर परिवार आते हैं। इसमें तीन से चार बच्चे ऐसे होते है जिनकी आंख में भेंगापन आ गया है। वे तिरछा देखने लगे हैं। हालांकि शुरुआती दौर में यह रोग चश्मा लगाने से ठीक हो जाता है लेकिन बाद में ऑपरेशन से ही ठीक होता है। इसलिए परिवार को कहा जाता है कि बच्चों को अधिक समय तक मोबाइल ने दे। हो सके तो उन्हें मोबाइल से दूर रखे।अपनाए 20-20 का फार्मुला

नेत्र रोग विशेषज्ञ करोले बताया कि मोबाइल या लेपटॉप पर काम करते समय 20-20 का फार्मूला अपनाना चाहिए। इसमें 20 मिनट तक लगातार काम के बाद 20 सेकेंड के लिए ब्रेक लें और 20 मीटर दूरी की तरफ देंखे और 20 बार आंखें झपकाए। इससे आंखों को रिलैक्स मिलता है।