हरसूद के विस्थापन की लड़ाई तो 80 के दशक में शुरू हो गई, लेकिन 1989 में आन्दोलन ने बड़ा रूप ले लिया। हरसूद शहर में एक बड़ी सभा हुई, जिसमें बाबा आम्टे, शबाना आजमी, मेधा पाटकर जैसी हस्तियां वहां आर्इं और इस शहर को डूबने न देने का संकल्प लिया, लेकिन यह संकल्प किसी काम नहीं आया और शहर को डुबो दिया गया। वहां खड़ा स्तंभ आज भी हरसूदवासियों को संकल्प और हकीकत को याद दिला देता है। इस स्तंभ के नीचे एल्युमीनियम के बॉक्स में हरसूद का लिखित इतिहास, कुछ पात्र और अन्य सामग्री भी दफन कीं।