
Harshad's 14th anniversary today
खंडवा. परिवार में शादी को लेकर खुशियों का माहौल था। हरसूद से जाने की तिथि घोषित कर दी गई। मकान खाली करने नोटिस थमा दिए। यह सुन शादी की खुशियां गम में तब्दील हो गई। परिवार 27 जून को बारात लेकर छिंदवाड़ा रवाना हुआ। शादी कर 30 जून को घर लौटे तो देखा हरसूद पूरे तरीके से उजड़ चुका था। समझ नहीं आ रहा था कि शादी की खुशियां मनाएं या फिर सपनों के उजडऩे का गम। यह कहानी हरसूद निवासी विजय मार्कण्डेय की है। वे बताते है कि छिदवाड़ा निवासी सपना से शादी हुई। यहां नई दुल्हन को रोकने की भी व्यवस्था नहीं थी। फिर भी पड़ोस के एक मकान में उसे रोका। रस्में पूरी होने के बाद पुराना रेलवे स्टेशन के पास किराए का मकान लिया और वहां शादीशुदा जिंदगी की शुरूआत की।
बेटियां पूछती हैं हम कहां रहते थे
विस्थापन के बाद नया हरसूद में खुद का आशियाना बनाया और परिवार को स्थाई किया। दो बेटियां अवनि और तानिया हैं। बेटियां बचपन से ही हरसूद डूबने की कहानियां सुनती आ रही हैं। वहीं पत्नी सपना भी पुराने घर को याद करती है। जब भी घर में खाली बैठता हूं तो बेटियां अक्सर पूछती हैं पापा पहले हम कहां रहते थे। बच्चों और पत्नी की जिज्ञासा देख उन्हें पुराना हरसूद लेकर जाता हूं। जहां पत्नी को रेलवे स्टेशन स्थित किराए का मकान याद आ जाता है। वह हमेशा बेटियों को वहां के किस्से सुनाती हैं। तो बच्चे बोलते हैं काश! आज भी हम यहीं रहते होते।
...तो बच्चों के नाम रख दिए अनुदान और मुआवजा
हरसूद विस्थापतों के बीच एक दर्दभरी कहानी सामने आई है। विस्थापन के दौरान एक परिवार में दो जुड़वा बच्चों ने जन्म लिया। इसी बीच उचित मुआवजे को लेकर हरसूद में जंग छिड़ गई, लेकिन शासन द्वारा सुनवाई नहीं हुई। इससे विस्थापतों में शासन के प्रति रोष तो अपना सब कुछ उजडऩे को लेकर दर्द था। तभी लोगों ने इन जुड़वा भाइयों को अनुदान और मुआवजा नाम से पुकारना शुरू कर दिया। दोनों भाइयों के यह नाम हरसूद में विख्यात हुए। हर कोई उन्हें इसी नाम से पुकारने लगा, लेकिन स्कूल में प्रवेश दौरान इन भाइयों के नाम माधव और राघव माहेश्वरी रखे गए। हालांकि कुछ खास परिचित अब भी माधव और राघव को अनुदान और मुआवजा नाम से ही पुकारते हैं।
Published on:
30 Jun 2018 12:32 pm
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