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डेढ़ साल बेवजह जेल में रहा यह युवक, जानिए क्यों

कोर्ट की कार्रवाई : परिवादी के वकील ने राहुल नचनानी की जगह राहुल गुरबानी लिखकर भेज दिया था नोटिस

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खंडवा

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Rajesh Patel

Aug 31, 2023

#Ratlam 15 साल तक कोर्ट में लड़ी लड़ाई, अब मिली कर्मचारी को जीत

#Ratlam 15 साल तक कोर्ट में लड़ी लड़ाई, अब मिली कर्मचारी को जीत

खंडवा. नाम की गफलत में एक युवक की जिंदगी मुहाल बनकर रह गई। एक नोटिस की वजह से उसे करीब डेढ़ साल तक पुलिस और कोर्ट के चक्कर लगाना पड़े। बेगुनाह होने के बाद भी पुलिस ने उसे गिरफ्तार तक किया। जमानत पर कुछ देर बाहर रहने के बाद जब फैसले की घड़ी आई तो उसे बताया गया की वह बेकसूर है। उसका नाम गलती से लिखा गया था। यह अजीबो गरीब मामला जिला न्यायालय का है। अधिवक्ता विक्रम लश्करी ने बताया कि उनके पक्षकार राहुल पिता गोपीचंद गुरबानी सिंधी कालोनी को एक गलत नोटिस की वजह से बेकसूर होने के बावजूद पुलिस और कोर्ट की कार्रवाई से गुजरना पड़ा।

मामला यह है कि सिंधी कॉलोनी निवासी विजय कोटवानी और राहुल पिता दौलतराम नचनानी के बीच एक लाख दस हजार रुपए का लेनदेन है। राहुल ने विजय को उससे लिए रुपए का चेक दिया था। करीब डेढ़ साल पहले चेक बाउंस होने पर विजय ने राहुल के विरूद्ध चेक बाउंस का केस लगा दिया। उसके वकील ने नोटिस पर राहुल नचनानी की जगह राहुल गुरबानी लिख दिया। पुलिस ने राहुल गुरबानी को गिरफ्तार किया। उस समय राहुल गुरबानी में कहा कि उसका किसी से लेन-देन नहीं है। लेकिन वारंट पर राहुल गुरबानी लिखा होने से पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया था। करीब डेढ़ साल बाद कोर्ट में सही पहचान पर राहत मिली।

यह वह राहुल नहीं है

परिवादी ने कहा यह वह राहुल नहींन्यायिक मजिस्ट्रेट कोर्ट में शनिवार को इस मामले की आखिरी सुनवाई थी। परिवादी विजय कोटवानी भी कोर्ट पहुंचा। जिस पर केस लगाया था राहुल गुरबानी भी कोर्ट में पेश हुआ। इस दौरान कोर्ट में विजय ने कहा कि यह वह राहुल नहीं है। यह कोई और है, इसे तो वह भी नहीं पहचानता। उससे जिसने रुपए लिए थे वह तो राहुल नचनानी है। इसके बाद कोर्ट ने राहुल गुरबानी को इस केस से बाहर करते हुए यह माना कि इस मामले में असल आरोपी राहुल नचनानी है। कोर्ट ने आरोपी राहुल नचनानी पर केस चलाने का आदेश दिया।

20 हजार रुपए तक खर्च हुए

राहुल गुरबानी को कोर्ट केस में 20 हजार रुपये खर्च हो गए। अधिवक्ता लश्करी का कहना है कि परिवादी के अधिवक्ता की एक गलती की वजह से उसके पक्षकार को मानसिक त्रास से गुजरना पड़ा। उससे आर्थिक रूप से भी परेशान होना पड़ा है।