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नर्मदा की धार से शंकर, अब कम होती जा रही है प्राकृतिक शिवलिंग की संख्या, दुनिया में है डिमांड

Sawan Somwar 2025: प्राचीनकाल से है शिवलिंग पूजा की परंपरा, सावन में माना जाता है शिव पूजा का विशेष महत्व, मध्य प्रदेश में मां नर्मदा की धार से बनने वाले प्राकृतिक शिवलिंगों की डिमांड देश, दुनिया में, लेकिन अब कम होती जा रही इनकी संख्या.. पढ़ें मनीष अरोरा की रिपोर्ट..

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Natural Shivling in narmada river

Natural Shivling in narmada river: मान्यतानुसार मां नर्मदा की धार से होता है शिवलिंग का निर्माण, लेकिन अब कम होती जा रही संख्या, पत्थरों को तराशकर हाथों से तैयार किए जा रहे हैं शिवलिंग। (फोटो सोर्स: पत्रिका)

Sawan Somwar 2025: श्रावण मास में भगवान शिव की भक्ति की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। भगवान शंकर के शिवलिंग रूप की पूजा की जाती है। पवित्र पावनी मां नर्मदा से निकलने वाले हर कंकर को शंकर माना जाता है। इसका प्रमुख कारण है कि खंडवा और देवास जिले में नर्मदा तट पर बसे धावड़ी कुंड में प्राकृतिक रूप से शिवलिंग का निर्माण होता है।

मां नर्मदा की धार से पत्थर बन जाते हैं शिवलिंग

मान्यता है, 50 फीट ऊपर से गिरने वाली मां नर्मदा की धार से पत्थर गोल घुमते हुए घिसकर स्वयं शिवलिंग का रूप लेते थे। इसलिए जगह का नाम धाराजी पड़ा। यहां बने प्राकृतिक शिवलिंग की स्थापना के लिए प्राण-प्रतिष्ठा जरूरी नहीं होती। हालांकि अब प्राकृतिक रूप से बनने वाले शिवलिंग की संख्या कम हो गई। यह स्थान 2007 में ओंकारेश्वर बांध की डूब में आ गया। तब से प्राकृतिक शिवलिंग कम मिलते हैं।

अब पत्थरों को तराश कर किया जा रहा शिवलिंग का निर्माण

नर्मदा का तट 1312 किमी लंबा है। धाराजी में प्राकृतिक रूप से शिवलिंग का निर्माण नहीं होने से कई गांवों में नर्मदा में मिलने वाले पत्थरों को तराश कर शिवलिंग का निर्माण किया जाता है। खरगोन के ग्राम बकावा में बनने वाले शिवलिंग की मांग दुनिया में है। यहां 20 परिवार शिवलिंग निर्माण में लगे हुए हैं। श्याम केवट ने बताया कि बकावा में नर्मदा से प्राप्त पत्थर से ही शिवलिंग का निर्माण किया जाता है। यहां सवा दो इंच से साढ़े चार फीट तक के नर्मदा से मिले पत्थर के शिवलिंग बनाए जाते हैं।

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