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​कथा से पहले एक घंटे क्रिकेट खेलते हैं कथा वाचक पंडित इंद्रेश उपाध्याय

कथा वाचक पंडित इंद्रेश उपाध्याय ने पत्रिका से विशेष चर्चा में सांझा किए अपने अनुभव

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​कथा से पहले एक घंटे क्रिकेट खेलते हैं कथा वाचक पंडित इंद्रेश उपाध्याय

इंदौर रोड पर सन्मति नगर के सामने मैदान में क्रिकेट खेलते कथा वाचक पंडित इंद्रेश उपाध्याय।

खंडवा. भागवत कथा के माध्यम से देश भर धर्म की गंगा बहा रहे कथा वाचक पंडित इंद्रेश उपाध्याय का क्रिकेटर का रूप सामने आया है। वे रोज सुबह बच्चों के साथ एक घंटे क्रिकेट खेलते हैं। वे देशभर में जहां भी कथा करते हैं वहां लोगों के साथ बल्ला थाम लेते हैं। बेटिंग करना उन्हें अधिक पसंद है। खेल के माध्यम से वे बच्चों को जोड़ते हैं ओर फिर बच्चों को कथा से जोड़ने की कोशिश करते हैं। उनके रोजाना क्रिकेट खेलने के पीछे भी एक रोचक किस्सा जुड़ा है।

कथा वाचक पंडित इंद्रेश उपाध्याय ने बताया कि क्रिकेट खेलना बिहार से प्रारंभ किया था। जिस पंडाल में कथा थी। वहां पंडाल के पास मैदान जो बच्चे आते थे वे नशा बहुत करते थे। वहीं पास ही क्रिकेट खेला करते थे लेकिन पंडाल में कथा सुनने नही आते थे। एक दिन कथा से उतरकर के हम उनके पास पहुंच गए। उनसे कहा कि लाओ बेट हमको दो हम आज क्रिकेट खेलेंगे। बच्चों ने कहा कि ये महाराज की आज हमारे साथ क्रिकेट खेलेंगे। हमने कहा हां हम खेलेंगे और तुम हमको आउट करके दिखाओ। इसके बाद उनके साथ क्रिकेट मैच खेला, अगले दिन जब कथा शुरू हुई तो वहीं बच्चे जो नशा करते थे पंडाल में कथा सुनने बैठे हुए थे। यह देख अच्छा लगा। इसके बाद से कथा के पहले सुबह बच्चों के साथ क्रिकेट खेलना शुरू हुआ है। जिस नगर में भी कथा होती है वहां बच्चों के साथ खेलते हैं। इसमें दो भाव है शरीर भी स्वस्थ रहता है और जो नगर जहां कथा होती है वहां जो बच्चे ज्यादा खेलकुद में रूचि रखते है वे हमें खेल में देखकर के कथा में भी आ जाते हैं। कथा सुनते तो हैं।

वास्तविक रूप को सदैव जीवित रखे

व्यक्ति जब किसी पद पर पहुंच जाता है तो अपनी वास्तविकता को भुला देता है। एसडीएम, कलेक्टर,मंत्री व प्रधानमंत्री बन गए। हम लोग क्या करते हैं कि जब किसी पदवी पर जाते हैं तो हम अपने वास्तविक अपने रूप को मार देते हैं। व्यक्ति को चाहिए की वह अपने वास्तविक रूप को सदैव जीवित रखे। हम भले ही कथा वक्ता है। कथा करते हैं। सब लोग हमें प्रणाम करते हैं। कोई गुरुजी तो महाराज कहता है। वास्तविक रूप में हम बालक है। खेलने का मन करता है।

चित्त में हो हिंदू राष्ट्र

हिंदू राष्ट्र को लेकर कहा कि हिंदू का मतलब किसी को पीडि़त देखकर जिसके ह्दय में विचलंता होती है वह हर एक व्यक्ति हिंदू है। किसी को पीडि़त देखकर पिड़ा न होती वह हिंदू नहीं है। हिंदू होने का मतलब भारत में जन्म लेना या किसी हिंदू परिवार में जन्म लेना नहीं होता है। हिंदू का मतलब होता है स्वभाव, व्यवहार और आपके अंदर की अंतरात्मा होती है। जो किसी को पीडि़त न देख सके व हिंदू हैं। ऐसे राष्ट्र की रचना करने में क्या बुराई है। ऐसे भाव हमारे हिंदू भाईयों के जगत में रहे। हम लोगों के ह्दय में रहे कि किसी को हम पीडि़त न देख सके। इसमें बुराई क्या है यही हिंदू राष्ट्र है। अब यहां पर क्या हो गया है कि आजकल लोग नारेबाजी में रहते हैं हिंदू राष्ट्र चाहिए के नारे लगाते हैं। झगड रहे हैं चिल्ला रहे हैं पर वास्तविकता कोई जानता ही नहीं है। वो तो चित्त में आएगा। बाहर से हिंदू राष्ट्र होने का कोई फायदा नहीं। वह तो चित्त में होना चाहिए।