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खंडवा : बाते हैं बातों का क्या…? कागज की नाव पर सवार झीलोद्यान व दूधतलाई का विकास

हमारे ऐतिहासिक धरोहर बदहाल, दूध तलाई, झीलों उद्यान में पानी के ऊपर तैर रहा कचरा-काई, पर्यटन के रूप में विकसित करने की कवायद कछुआ चाल से भी धीमी, अंग्रेजों के जमाने कभी बुझाते थे प्यास

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खंडवा

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Rajesh Patel

Jul 04, 2025

Municipal Corporation Khandwa

झीलों उद्यान में पानी के ऊपर तैर रहा कचरा-काई

हमारे ऐतिहासिक धरोहर बदहाल, दूध तलाई, झीलों उद्यान में पानी के ऊपर तैर रहा कचरा-काई, पर्यटन के रूप में विकसित करने की कवायद कछुआ चाल से भी धीमी, अंग्रेजों के जमाने कभी बुझाते थे प्यास

निगम अफसरों से लेकर जनप्रतिनिधियों ने झीलोद्यान व दूधतलाई के विकास को लेकर सपनें तो कई दिखाएं हैं लेकिन उन्हें हकीकत मेें अब तक तब्दील नहीं किया है। झीलोद्यान को तो अहमदाबाद की कांकरिया झील जैसे संवारने के दावे किए गए थे। जनता के पैसे भी लगा दिए, लेकिन नतीजा सिफर रहा। झीलोद्यान के भैरो तालाब में जलकुंभी तालाब में पसर गई है। झीलोद्यान में चौपाटी विकसित करने के लिए बाउंड्रीवॉल, पेवर ब्लॉक व अन्य काम हुए। लेकिन यहां न चौपाटी विकसित हो पाई और न हॉकर्स जोन बन पाया।

ऐतिहासिक जलस्रोत की बेकद्री

शहर के ऐतिहासिक धरोहर में दर्ज दूध तलाई और झीलों उद्यान ( भैरो तालाब ) में पानी के ऊपर काई के साथ कचरा तैर रहा है। 75 साल पुराने तालाबों का इतिहास कई पुस्तकों में दर्ज है। निमाड़ की सांस्कृतिक धरोहर को समेटे तालाबों का जिक्र साहित्य और सांस्कृतिक पुस्तकों में है। कन्या महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ प्रतापराव कदम कहते हैं कि दूध तलाई का जिक्र पद्मश्री रामनारायण उपाध्याय की निमाड़ का साहित्य एवं सांस्कृतिक पुस्तक का विस्तृत इतिहास लिखा है।

....इसलिए कहते हैं दूध तलाई

तालाब से दूध तलाई यूं ही नहीं नाम पड़ा। दरअसल, अंग्रेजों के जमाने में यहां पशु पालन हुआ करता था। अंग्रेज भी यहां से दूध ले जाते थे। दूध तलाई से रामगंज, हरिगंज और परदेशी पुरा का पुराना नाता हैै। अंग्रेजों के जमाने में झीलों उद्यान में कमल गट्ठा का फूल खिलता था। इस ऐतिहासिक झील से शहर की प्यास बुझाती थी। भैरो तालाब के रूप में धार्मिक पर्यटन हुआ करता था। वर्तमान समय न तो झीलों उद्यान में झील बची है और न ही दूध तलाई में दूध है। तलाई में पानी के ऊपर कचरा और झाडिय़ां तैर रही है। झीलों उद्यान बदहाल है।

उदयपुर की दूध तलाई से लें सीख

राजस्थान में झीलों की नगर उदयपुर का नाम पर्यटन के क्षेत्र में प्रमुख है। इसका कारण है, वहां के झीलों की देखरेख। उदयपुर शहर में भी एक दूधतलाई है, जहां लाखों पर्यटक आते हैं। वहां भी जलस्रोत है लेकिन रखरखाव सही तरीके से किया गया है। खंडवा की दूधतलाई भी इस तरह के प्रयास से पर्यटन को बढ़ा सकती है। आवश्यकता केवल सामूहिक जिम्मेदारी की है।

डेढ़ साल में विकसित नहीं हो सका तालाब

-निगम दोनों तालाबों को अमृत-2 योजना में शामिल किया। पर्यटन के रूप में विकसित कर रहा हैै। निगम की कछुआ चाल योजना से डेढ़ साल बाद भी अभी तक तस्वीर नहीं बदली।

40 प्रतिशत कार्य पूरा

40 प्रतिशत निर्माण कार्य पूर्ण हो गया है। अगस्त तक पूर्ण करने की डेडलाइन दी है।