अंधेरे में ग्राम घोघलगांव के रहवासी
आंदोलन के प्रमुख आलोक अग्रवाल ने बताया यह विडंबना है कि बिजली परियोजना से होने वाले प्रभावित बगैर पुनर्वास हुए अंधेरे में रहने मजबूर हैं। यह उन लोगों के आदेश पर हो रहा है जो कभी एक घंटे बगैर बिजली के नहीं रहे हैं। ग्राम घोघलगांव में बिजली आपूर्ति बंद की गई है। इससे ग्रामवासी अंधेरे में रात बिता रहे हैं। जबकि आसपास पानी होने से जलीय-जीव का खतरा बना रहता है। इस समय 450 से अधिक लोगों को पुर्नवास पैकेज, घर व प्लाट सहित अन्य पुनर्वास के अधिकार मिलना बाकी है। फिर भी बांध में पानी भरना शुरू कर दिया गया है। जबकि सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों में साफ है कि पुर्नवास पूरा होने के बाद ही पानी भरा जा सकता है। ऐसे में ओंकारेश्वर बांध में लाई जा रही डूब गैर कानूनी, असंवैधानिक है।
आंदोलन के प्रमुख आलोक अग्रवाल ने बताया यह विडंबना है कि बिजली परियोजना से होने वाले प्रभावित बगैर पुनर्वास हुए अंधेरे में रहने मजबूर हैं। यह उन लोगों के आदेश पर हो रहा है जो कभी एक घंटे बगैर बिजली के नहीं रहे हैं। ग्राम घोघलगांव में बिजली आपूर्ति बंद की गई है। इससे ग्रामवासी अंधेरे में रात बिता रहे हैं। जबकि आसपास पानी होने से जलीय-जीव का खतरा बना रहता है। इस समय 450 से अधिक लोगों को पुर्नवास पैकेज, घर व प्लाट सहित अन्य पुनर्वास के अधिकार मिलना बाकी है। फिर भी बांध में पानी भरना शुरू कर दिया गया है। जबकि सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों में साफ है कि पुर्नवास पूरा होने के बाद ही पानी भरा जा सकता है। ऐसे में ओंकारेश्वर बांध में लाई जा रही डूब गैर कानूनी, असंवैधानिक है।
क्या है मामला उल्लेखनीय है कि ओंकारेश्वर बांध के प्रभावित गत 12 वर्षों से अपने अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं गत 13 मार्च 2019 को माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने ओंकारेश्वर बांध के बांध प्रभावितों के पक्ष में निर्णय देते हुए राज्य सरकार के पूर्व में घोषित पैकेज पर 15% वार्षिक ब्याज की बढ़ोतरी की थी साथ ही प्रभावितों द्वारा जमा की गई राशि पर भी 15% वार्षिक ब्याज देने का निर्णय लिया गया था. इस आदेश के प्रकाश में राज्य शासन द्वारा 31 जुलाई 2019 को विस्थापितों को पुनर्वास अधिकार देने का आदेश दिया था. अभी सैकड़ों प्रभावितों को सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार यह पैकेज दिया जाना बाकी है. इसके साथ ही सैकड़ों प्रभावितों को घर प्लॉट एवं अन्य पुनर्वास की सुविधाएं दिया जाना भी बाकी हैं. कानून स्पष्ट है कि सभी प्रभावितों का पुनर्वास डूब आने के 6 माह पहले होना जरूरी है अतः बिना पुनर्वास के पानी भरने की कोई भी कार्रवाई पूर्णतः गैरकानूनी होगी!