
नारी को अपवित्र माना जाए तो उससे जन्म लेने वाली संतान पवित्र कैसे हो सकती है : कमलमुनि कमलेश
कोलकाता . नारी को अपवित्र माना जाए तो उससे जन्म लेने वाली संतान पवित्र कैसे हो सकती है। देवी भी नारी का रूप है। नारी का मासिक धर्म शरीर का स्वभाव है फिर उसे अपवित्र क्यों नहीं मानते हैं। उसे क्यों पूजा जाता है? उक्त विचार राष्ट्रसंत कमलमुनि कमलेश ने महावीर सदन में नारी और उपासना पर आयोजित सेमिनार को संबोधित करते हुए कहा कि पुरुष हो या नारी सभी हाड़ मास का पिंजरा मल मूत्र से भरा गंदगी का भंडार है। मुनि कमलेश ने कहा कि पसीने की बूंदें शरीर का विकार है। वैसे ही मासिक धर्म भी विकार है। उसके आधार पर साधना के लिए अयोग्य घोषित करने वालों से पूछना चाहता हूं कि जब नारी साध्वी बनती है आजीवन के लिए तब क्या उसके शरीर में यह परिवर्तन नहीं आएगा क्या? उस समय वह परिवेश का क्या कर देगी। साधना प्राणों से भी प्यारी होती है। राष्ट्रसंत ने कहा कि भक्त रैदास अपवित्र स्थान पर बैठ कर गंदगी के बीच साधना करके अपने प्रभु भक्ति के लक्ष्य को प्राप्त किया या नहीं। यह शरीर जब जन्म लेता है तब मल मूत्र में लिपटा रहता है और वृद्धावस्था में भी शरीर के अंग शिथिल हो जाते हैं। इनमें से नाक से पानी बहना मुंह से लार टपकना मल मूत्र का विसर्जन होना आम बात है तो भी वह उपासना कर सकता है। जैन संत ने कहा कि जब तक मन की पवित्रता नहीं होगी तब तक बाहर से कितना भी पवित्र हो जाए उपासना का अधिकारी नहीं बन सकता है। रामायण में लिखा है मन मलीन सुंदर तनु केसे वि श रस भरा कनक घट जैसे उन्होंने केंद्रीय स्मृति ईरानी से शास्त्रार्थ करने की चुनौती देते हुए कहा जनता को गुमराह और भ्रमित करने का पाप ने कमाए इंसान के क्या पशु तक भी प्रभु की उपासना कर सकता है। महापुरुष ने सभी को समानता का अधिकार दिया है। कौशल मुनि ने मंगलाचरण किया घनश्याम मुनि ने विचार व्यक्त किए। सभा में शांति बहन बोहरा, बबीता भूरट, अंतर देवी बाघमार, अरुणा शाह, नीतू जैन आदि ने नारी को उपासना का अधिकार दिलाने के लिए संघर्ष का संकल्प लिया।
Published on:
24 Oct 2018 09:03 pm
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