
mahasweta
बांग्ला की जानी-मानी साहित्यकार और सामाजिक कार्यकर्ता महाश्वेता देवी का गुरुवार को कोलकाता में निधन हो गया है। वह 90 साल की थीं। दो माह से वह कोलकाता के बेले व्यू अस्पताल में भर्ती थीं।
23 जुलाई को उन्हें दिल का दौरा पड़ा था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत कई हस्तियों ने दुख व्यक्त किया। उन्हें पद्मविभूषण, ज्ञानपीठ, साहित्य अकादमी, रेमन मैग्सेसे सम्मानों से नवाजा गया था। वह पुरस्कार राशि आदिवासियों पर खर्च कर देती थीं।
चर्चित किताबें
1956 में महाश्वेता देवी की पहली रचना 'झांसी की रानी' प्रकाशित हुई। अग्रिगर्भ, जंगल के दावेदार, 1084 की मां, माहेश्वर, ग्राम बांग्ला और छोटी कहानियों के बीस संग्रह।
कृतियों पर फिल्में बनीं
1968 में संघर्ष, 1993 में रुदाली, 1998 में हजार चौरासी की मां और 2006 में माटी माई।
आदिवासियों ने अपनी मां खो दी...
भारतीय साहित्य में अग्रिम पंक्ति की लेखिका थीं। उनकी कथाकृतियां द्वितीय हैं। वे महान विभूति थीं। उनकी रचनाओं में समाज के वंचित, शोषित, दलित और हाशिए पर रह रहे लोगों की करुण गाथा है। यही वजह है कि उनकी कहानियों और उपन्यासों में ज्यादातर ऐसे ही वंचित पात्र हैं। उनके जाने से ऐसे लोगों ने एक तरह से अपनी मां को खो दिया है। आखिरी समय तक वह सामाजिक सरोकारों के लिए जूझती रहीं हैं।
साहित्यकार के साथ-साथ वे सामाजिक कार्यकर्ता भी बहुत बड़ी थीं। स्त्री अधिकारों की बात हो या फिर दलितों, आदिवासियों के इंसाफ की बात, ताउम्र वे उनके लिए जूझती रहीं। उनके निधन से पूरे देश ने ही नहीं समूचे संसार ने अपना रचनाकार खो दिया है। 'हजार चौरासी की मां ' के जरिए उन्होंने ऐसे ही हाशिए पर रह रहे लोगों की जिंदगी की दास्तां बयां की है।
भारत ने महान लेखिका, बंगाल ने एक महान मां और मैंने अपना निजी गाइड खो दिया है।
ममता बनर्जी, प. बंगाल की मुख्यमंत्री
( जाने-माने कथाकार विश्वनाथ त्रिपाठी से दिनेश मिश्र की बातचीत)
Published on:
29 Jul 2016 08:14 am
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